डॉ दीपांकर बराट
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धूम्रपान है लंग्स कैंसर की मुख्य वजह, जानें क्या कहते हैं डॉक्टर
डॉ दीपांकर बराट सीनियर कंसल्टेंट, मेडिसिन, आरएमआरआइ, पटना लंग्स कैंसर या फेफड़े का कैंसर ज्यादातर लोगों को 65 से 70 वर्ष की उम्र में होता है. इसका मुख्य कारण धूम्रपान को माना गया है. जो व्यक्ति जितना अधिक धूम्रपान करता है, उसमें लंग्स कैंसर होने की आशंका उतनी अधिक होती है. शोध ये भी बताते […]
सीनियर कंसल्टेंट, मेडिसिन, आरएमआरआइ, पटना
लंग्स कैंसर या फेफड़े का कैंसर ज्यादातर लोगों को 65 से 70 वर्ष की उम्र में होता है. इसका मुख्य कारण धूम्रपान को माना गया है. जो व्यक्ति जितना अधिक धूम्रपान करता है, उसमें लंग्स कैंसर होने की आशंका उतनी अधिक होती है. शोध ये भी बताते हैं कि औद्योगिकरण के कारण बढ़ते प्रदूषण से भी इस कैंसर के मामले बढ़े हैं. सिगरेट, बीड़ी और हुक्का या फिर इंडस्ट्रियल वेस्ट के जलने से 4000 से अधिक केमिकल कंपाउंड हवा में उत्सर्जित होते हैं. इनमें से दो कंपाउंड Nitrosamine और Polycyclic aromatic hydrocarbons लंग्स कैंसर के लिए जिम्मेवार माने जाते हैं. अन्य कैंसर में उसके हाेने कारण शुरुआत में पता नहीं चल पाता है, पर लंग्स कैंसर में विशेषज्ञ कैलकुलेट करके ये बता सकते हैं कि किसी व्यक्ति में कितने साल के बाद यह कैंसर होने की आशंका है. विशेषज्ञ इसमें कैलकुलेट करते हैं कि व्यक्ति प्रतिदिन कितना सिगरेट पीता है और वह कितने सालों से ऐसा कर रहा है. उसी के हिसाब से पैक इयर निकाला जाता है. यदि पैक इयर 30 से अधिक हो, तो उस व्यक्ति में लंग्स कैंसर की आशंका 90 फीसदी से अधिक होती है. वहीं, यदि व्यक्ति पहले धूम्रपान करता रहा हो और वह अब अपने डोज को कम कर रहा हो या छोड़ने लगा हो, तो उसमें लंग्स कैंसर होने की आशंका भी कम होती जाती है.
लंग्स कैंसर के प्रमुख लक्षण : खांसी, सफेद खखार, खखार के साथ खून, सांसों का फूलना, बुखार व कमजोरी, वजन का तेजी से घटना आदि लंग्स कैंसर के प्रमुख लक्षण हैं. लंग्स कैंसर को पहचानने में कई बार डॉक्टर भी भूल कर जाते हैं क्योंकि सीओपीडी ब्रॉन्काइटिस, इम्फेसीमा आदि के भी लक्षण इससे मिलते-जुलते हैं, इसलिए कई बार डॉक्टर इसमें सीओपीडी समझकर इलाज शुरू करते हैं और जब तक कैंसर का पता लग पाता है, तब तक यह एडवांस्ड स्टेज (तीसरे या चौथे) में चला जाता है, जहां इसे ठीक करना काफी मुश्किल हो जाता है.
प्रमुख जांच : इसमें सबसे जरूरी है कि लक्षण दिखे, तो तुरंत चिकित्सक से मिलें. चूंकि, यह एक्टिव स्मोकर के अलावा पैसिव स्मोकर हो भी हो सकता है, जैसे- सिगरेट पीनेवाले के परिवार के लोगों को जो धूम्रपान के धुएं के संपर्क में नियमित रूप से रहते हैं.
इसलिए सरकार की ओर से भी गुजारिश की जाती है कि पब्लिक प्लेस या बच्चों के आस-पास धूम्रपान न करें. इसका पता लगाने के लिए प्रमुख जांच हैं : खखार या बलगम की जांच, खून में इएसआर ज्यादा हो, चेस्ट एक्स-रे में यदि कोई दाग दिखे, चेस्ट का सीटी स्कैन, एमआरआइ टेस्ट और बायोप्सी टेस्ट. इसमें बायोप्सी टेस्ट को सबसे सटीक माना जाता है. बिहार झारखंड के कई सरकारी अस्पतालों में यह टेस्ट फ्री है.
शुरुआती अवस्था में सर्जरी कारगर
लंग्स कैंसर के शुरुआती अवस्था में सर्जरी सफल है, पर यह इस पर निर्भर करता है कि कैंसरस सेल कितने एरिया में फैला है व आस-पास के अंगों को कितना प्रभावित किया है. शुरुआती स्टेज में यह कुछ भाग को प्रभावित करता है. यदि यह पकड़ में आ जाये, तो सर्जरी आसान हो जाती है. यदि वह ज्यादा एरिया में फैला हो, तो व्यक्ति के 5-6 साल से अधिक जिंदा रहने की संभावना बहुत कम बचती है. इस तरह के इलाज में सर्जरी के बाद रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की जाती है. यह इलाज थोड़ा लंबा और महंगा है. साथ ही कैंसर दुबारा नहीं होगा, इसकी भी गारंटी नहीं होती, इसलिए बेहतर होगा कि धूम्रपान का त्याग करें और खुदको और समाज को लंग्स कैंसर से बचाएं.
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