38.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

“तीन तलाक” खत्म होने के बाद अब सभी के लिए ‘‘तलाक का समान आधार” करने की मांग

उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप सभी नागरिकों के लिये ‘‘तलाक का समान आधार'' सुनिश्चित करने को लेकर केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है . याचिका में केंद्र को तलाक के कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाने तथा धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी पूर्वाग्रह के बगैर सभी नागरिकों के लिए उन्हें समान बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है.

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर संविधान की भावना और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप सभी नागरिकों के लिये ‘‘तलाक का समान आधार” सुनिश्चित करने को लेकर केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है . याचिका में केंद्र को तलाक के कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाने तथा धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी पूर्वाग्रह के बगैर सभी नागरिकों के लिए उन्हें समान बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है.

भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में कहा गया है , ‘‘न्यायालय यह घोषित कर सकता है कि तलाक के पक्षपातपूर्ण आधार, (संविधान के) अनुच्छेद 14, 15, 21 का उल्लंघन करते हैं तथा सभी नागरिकों के लिए ‘तलाक के समान आधार’ का दिशानिर्देश तैयार किया जाए.”

Also Read: शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलन करने वाले शहजाद अली भाजपा में शामिल

याचिका में कहा गया है, ‘‘इसके अलावा, यह न्यायालय विधि आयोग को तलाक संबंधी कानूनों की पड़ताल करने तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं अंतरराष्ट्रीय समझौतों को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 14, 15, 21 के अनुरूप और सभी नागरिकों के लिए ‘तलाक के समान आधार’ का तीन महीने के भीतर सुझाव देने का निर्देश दे सकता है.”

जनहित याचिका में कहा गया है, ‘‘हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक की अर्जी देनी पड़ती है. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं. अलग-अलग धर्मों के दंपति विशेष विवाह अधिनियम, 1956 के तहत तलाक मांग सकते हैं.” याचिका में कहा गया कि दंपति में अगर एक जीवनसाथी विदेशी नागरिक है तो उसे विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत तलाक की अर्जी देनी होगी. इस तरह, तलाक के लिये आधार न तो लैंगिक रूप से निष्पक्ष है ना ही धार्मिक रूप से निष्पक्ष है.

याचिका में कहा गया है कि इसके चलते लोगों को बहुत परेशानी होती है क्योंकि पुरूष और महिला, दोनों के लिये तलाक पाना सर्वाधिक पीड़ा देने वाला अनुभव होता है, लेकिन देश की आजादी के इतने साल बाद भी तलाक की प्रक्रिया बहुत जटिल है. याचिका में कहा गया है, ‘‘नपुंसकता, हिंदू-मुसलमान में तलाक के लिये एक आधार है.

लेकिन ईसाई-पारसी में ऐसा नहीं है. नाबालिग उम्र में विवाह हिंदुओं में तलाक के लिये एक आधार है, लेकिन ईसाई, पारसी और मुस्लिम समुदायों में ऐसा नहीं है. ” इसमें कहा गया है कि मौजूदा अंतर, पितृसत्तात्मक मानसिकता पर आधारित है और यह रूढ़ीवादी है तथा इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह महिलाओं के खिलाफ असामानता है तथा वैश्विक प्रवृत्ति के खिलाफ जाता है.

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें