32.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

जरूरी है संयुक्त राष्ट्र में सुधार

पूरी दुनिया में एक ऐसा माहौल बन गया है कि कहीं से भी युद्ध की चिंगारी भड़क सकती है

शशांक, पूर्व विदेश सचिव

shashank1944@yahoo.co.in

समूह चार के देशों भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान द्वारा संयुक्त राष्ट्र में सुधार और सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता की मांग करना बहुत आवश्यक है. संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं के काम करने का जो तरीका है, उसमें जब तक सामूहिक रूप से प्रयास नहीं किया जायेगा, जब तक कई मामलों में बदलाव होना थोड़ा मुश्किल है. जर्मनी और जापान, संयुक्त राष्ट्र के संस्थाओं में काफी आर्थिक योगदान देते हैं. जबकि भारत और ब्राजील तेजी से उभरती हुई आर्थिक शक्तियां हैं, और ये विश्व के बड़े देशों में शुमार किये जाते हैं और बड़े समूहों का नेतृत्व करते हैं. इसलिए इन चारों देशों को सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्य के रूप में होना ही चाहिए.

इन दिनों संयुक्त राष्ट्र के सामने बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं. इनमें एक तो, कोरोना महामारी ही है, जिसके बारे में कहा जा रहा है, कि इसके एक स्थायी सदस्य देश से ही यह फैली है. इस मामले में एक-दो स्थायी सदस्यों को छोड़कर, बाकि सदस्य चाहते हैं कि कोरोना के उभार और उसके फैलाव को लेकर पूरी पारदर्शिता के साथ जांच हो और दोषी पर कार्रवाई हो. लेकिन उन्हें अभी इनमें सफलता नहीं मिल पा रही है.

दूसरा मामला आतंकवाद का है. यह पूरी दुनिया मे फैलता जा रहा है. पहले यह मध्य-पूर्व के देशों में फैल रहा था, लेकिन यह अब एशिया के देशों में तेजी से फैलने लगा है, क्योंकि अमेरिका, रूस और यूरोप द्वारा मिलकर कार्रवाई करने के कारण आतंकी समूह अब दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया का रुख कर रहे हैं. ऐसे में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों के विरुद्ध आवाज उठाना बहुत जरूरी हो जाता है. भारत से ज्यादा प्रभावी तरीके से यह काम कोई अन्य देश नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक बड़ी व तेजी से उभरती हुई शक्ति है.

कोरोना, चीन की विस्तारवादी नीतियां और पाकिस्तान व कई देशों द्वारा चलायी जा रही आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित है. सुरक्षा परिषद् में ब्राजील का होना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वह बड़ा देश होने के साथ ही लैटिन अमेरिकी देश भी है. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों में एक भी देश इस क्षेत्र से नहीं है. एक बड़ी समस्या आंतरिक शरणार्थियों की भी है. विश्व के अनेक देश इस समस्या से परेशान हैं. इस समस्या ने अनेक देशों को अस्थिर कर दिया है. जो शरणार्थी पलायन कर दूसरे देश गये हैं, वहां उन्होंने आर्थिक, जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक समेत तमाम तरह की समस्याएं पैदा कर दी हैं.

इतना ही नहीं, चूंकि इन्हें आसानी से दूसरे देशों में नौकरी नहीं मिलती, ऐसे में पैसे का लालच दिखा उन्हें कोई भी आतंक की दुनिया में शामिल कर सकता है. तमाम समस्याओं से घिरे होने के कारण हम विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद् में नीतिगत सुधार होना बहुत जरूरी है. जहां तक अफ्रीकी देशों के स्थायी सदस्यता की बात है, तो इसके सदस्य निर्णय ले सकते हैं. वर्ष 2004 में अफ्रीकी देशों की स्थायी सदस्यता को लेकर बात हुई, लेकिन परिषद् इसे लेकर इतना गंभीर नहीं था, न ही तब दुनिया के ऐसे हालात थे.

उस समय यह निर्णय लिया गया कि अफ्रीकी यूनियन यह निर्णय ले कि कौन सा देश परिषद् का स्थायी सदस्य हो. इस प्रकार यह मामला टल गया. लेकिन अब यदि चारों देशों की मांग को टाल दिया गया, तो संयुक्त राष्ट्र संस्थानों का जो प्रमुख उद्देश्य है, विश्वशांति बनाये रखना और गरीबी मिटाना, दुनिया को रोगमुक्त बनाना, मानवाधिकार की रक्षा आदि वह पूरा नहीं हो पायेगा. शरणार्थियों की संख्या, आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन बढ़ता जा रहा है. एक के बाद एक बीमारी फैलती जा रही है, और संस्था इन्हें रोकने में नाकाम हो रही है.

स्थायी सदस्यों द्वारा परिषद् में सदस्य संख्या बढ़ाये जाने और सुधार को लेकर टालमटोल करने के दो कारण हैं. पहला, वे सोचते हैं कि स्थायी सदस्यों का समूह जितना छोटा होगा, वह उतने प्रभावी तरीके से काम कर पायेगा. दूसरा, वे खुद ही काम नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में यदि वे सदस्यों की संख्या बढ़ाते हैं, तो सब देशों की अपनी अलग-अलग सामरिक भागीदारी और सबकी अलग-अलग राय है. ऐसे में वे नहीं चाहेंगे कि स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़े.

चीन ने जिस तरीके से अपने यहां के मुसलमानों को डिटेंशन कैंप में रखा है, उसे लगता है कि यदि भारत स्थायी सदस्य बन गया तो वह मुसलमानों के दमन, आतंकवाद, उसकी विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ आवाज उठायेगा. इसी तरीके से अमेरिका में चुनाव होते ही सरकार बदलने के साथ नीतियां बदल जाती हैं. यूरोप के सबसे ज्यादा स्थायी सदस्य हैं, लेकिन वो अपनी ही मुश्किलों में घिरे हैं. रूस के खिलाफ अमेरिका और यूरोप ने प्रतिबंध लगा रखा है. ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकलना चाह रहा है. तो सब तरफ लाचारी और भ्रम की स्थिति दिखायी दे रही है.

संयुक्त राष्ट्र के निर्णय न लेने से उसके जो उद्देश्य हैं वे पूरे नहीं हो पा रहे हैं. पिछले कुछ समय से संस्था एकदम अलग-थलग पड़ती जा रही है. पूरी दुनिया में एक ऐसा माहौल बन गया है कि कहीं से भी युद्ध की चिंगारी भड़क सकती है और पूरे विश्व को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि जो भी देश शांति चाहते हैं, उनकी बात सुनी जाये.

(बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें