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बिहार में 200 साल पुराने बरगद पेड़ को बचाने की उठी मांग, ब्रिटिश जज के साथ जुड़ी है ऐतिहासिक कहानी,

भागलपुर के सैंडिस कम्पाउंड मैदान का सौंदर्यीकरण कार्य चल रहा है. सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भागलपुर का यह मैदान शहरवासियों के लिए काफी महत्व रखता है. सेहत के लिए रोजाना टहलने वाले लोग भारी संख्या में देखे जाते हैं. वहीं एक छोर पर व्यायाम व योगा तो स्टेडियम के अंदर युवाओं को खेलने की भी सुविधा मिली हुई है. यह मैदान कई ऐतिहासिक घटनाओं को भी अपने साथ जोड़े हुए है. जिसकी यादें आज भी इस परिसर में बची हुई हैं. अब उसे संजोने के लिए हाल में ही शहर के वरीय चिकित्सक ने सोशल मीडिया पर आवाज उठाई है.

भागलपुर के सैंडिस कम्पाउंड मैदान का सौंदर्यीकरण कार्य चल रहा है. सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भागलपुर का यह मैदान शहरवासियों के लिए काफी महत्व रखता है. सेहत के लिए रोजाना टहलने वाले लोग भारी संख्या में देखे जाते हैं. वहीं एक छोर पर व्यायाम व योगा तो स्टेडियम के अंदर युवाओं को खेलने की भी सुविधा मिली हुई है. यह मैदान कई ऐतिहासिक घटनाओं को भी अपने साथ जोड़े हुए है. जिसकी यादें आज भी इस परिसर में बची हुई हैं. अब उसे संजोने के लिए हाल में ही शहर के वरीय चिकित्सक ने सोशल मीडिया पर आवाज उठाई है.

भागलपुर के वरीय चिकित्सक डॉ हेमशंकर शर्मा ने सैंकड़ो साल पुराने एक बरगद के पेड़ को बचाने की आवाज सोशल मीडिया पर उठाई. यह पेड़ सैंडिस कम्पाउंड के बाहरी भाग में है जो अब जर्जर हालत में आकर गिरने के कगार पर है. जिसके बाद कई लोगों ने इस पेड़ से जुड़ी पुरानी यादों को साझा किया. लोग अब इसे बचाने की मांग कर रहे हैं.

इस बरगद के पेड़ का इतिहास बताते हुए तिलकामांझी भागलपुर विश्चविद्यालय के प्रोफेसर व इतिहास के जानकार सुनील सिंह बताते हैं कि बरगद के इस पेड़ का अवशेष उस पेड़ की कहानी है जिसमें सैंडिस कम्पाउंड का इतिहास छुपा है. भागलपुर की कचहरी के निर्माण के समय ही इस कम्पाउंड का अधिग्रहण जिला प्रशासन के द्वारा परेड ग्राउंड के रूप में किया गया. वर्ष 1857 से 1860 मे एक मि. आई सैंडिस नाम के जिला जज हुए, जो पहले जिला जज थे. सैंडिस दूसरी बार 1863 में भी जिला जज बने. इनकी एक अजीब आदत थी वो इस कम्पाउंड में अवस्थित इस बरगद को बहुत प्यार करते थे और अक्सर इसके नीचे कोर्ट लगा दिया करते थे. वो कभी कभार इस पेड़ पर बैठकर भी वह बहस सुना करते थे.

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आई सैंडिस रोज एक जगह एक डलिया या बाल्टी मिट्टी उत्तर पश्चिम दिशा में एक जगह फेंका करते थे. उनके इस काम का देखा-देखी उनका अमला भी यह काम करने लगाऔर उनके काल में ही यहाँ मिट्टी का एक टीला तैयार हो गया जिसे आज भी देखा जाता है. वो बताते हैं कि जिला जज सैंडिस की याद में ही इस मैदान का नाम सैंडिस कम्पाउंड पड़ा.

सुनील सिंह कहते हैं कि यदि यह अपने पुराने जलवे में रहता तो कोलकता के अलीपुर जू स्थित बरगद के टक्कर का होता, हम यदि इसके अवशेष को भी बचा लें तो एक धरोहर की रक्षा होगी. वहीं प्रभात खबर में इस खबर के प्रकाशित होने के बाद डॉ हेमशंकर शर्मा ने कहा कि इस ऐतिहासिक छतरी को बचाने की जिम्मेदारी हम सबों की है. सबों को इसके लिए साथ आना चाहिए.

Posted By :Thakur Shaktilochan

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