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अभूतपूर्व प्रदर्शन

ओलिंपिक का अभूतपूर्व प्रदर्शन साबित करता है कि यदि सरकार और समाज का सहयोग मिले, तो देश पदक तालिका में लगातार ऊपर जा सकता है.

खेलों के महाकुंभ ओलिंपिक के शानदार प्रदर्शन के तुरंत बाद तोक्यो में ही आयोजित पैरालिंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. इस आयोजन में कुल 54 खिलाड़ी शामिल हुए थे. भारतीय टीम को 19 पदक मिले हैं, जिनमें से पांच गोल्ड, आठ सिल्वर और छह ब्रोंज मेडल हैं. दुनिया के किसी भी खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता है ओलिंपिक खेलों में भाग लेना और पदक जीतना.

इसे साकार करने के लिए वे दिन-रात मेहनत करते हैं. लेकिन पैरालिंपिक खिलाड़ियों की कहानी उनसे बहुत अलग होती है. जन्मजात शारीरिक समस्याओं या बीमारियों और दुर्घटनाओं का शिकार होने के कारण इन्हें कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ता है. खेलों के प्रशिक्षण के अलावा रोजमर्रा की जिंदगी में इन्हें लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इनके लिए रोजगार या कारोबार भी आसान नहीं होता.

कल्याण योजनाओं और पारिवारिक व सामाजिक सहयोग के बावजूद यह भी एक पीड़ादायक सच है कि हमारे समाज में दिव्यांग लोगों के प्रति एक बेरुखी होती है. उनकी पढ़ाई, लिखाई और कमाई की व्यवस्था बेहद लचर है. फिर भी, अगर इस समुदाय के लोग जीवन की कठिनाइयों से जूझने के साथ-साथ खेलों में शिखर छूने का सपना साकार कर सकते हैं, तो हम सभी का हौसला बढ़ाने के लिए इससे बेहतर आदर्श और उदाहरण कुछ भी नहीं हो सकता. स्वस्थ और सक्षम होने के बाद भी हम मामूली मुश्किलों से घबरा जाते हैं.

ऐसे में हमारे पैराएथलिट केवल अन्य दिव्यांग लोगों के लिए प्रेरणा नहीं हैं, बल्कि हम सबका उत्साह भी बढ़ाते हैं. ओलिंपिक या अन्य वैश्विक आयोजनों के अवसर पर यह चर्चा चलती है कि देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने तथा संबंधित सुविधाओं का विस्तार करने की आवश्यकता है. लगभग सभी एथलिट बहुत सारे अवरोधों को पार कर राष्ट्रीय टीम में जगह बना पाते हैं. यह संघर्ष यात्रा पैराएथलिटों के लिए अधिक कठिन होती है.

ओलिंपिक का अभूतपूर्व प्रदर्शन यह फिर साबित करता है कि यदि सरकार और समाज का सहयोग मिले, तो हमारा देश पदक तालिका में लगातार ऊपर जा सकता है. तोक्यो में इन खिलाड़ियों ने पांच रिकॉर्ड भी बनाये हैं. सुमित अंतिल, अवनि लेखारा, मनीष नरवाल, निषाद कुमार और प्रवीण कुमार के रिकॉर्ड मील का पत्थर बनकर न केवल भारतीय खिलाड़ियों, बल्कि दूसरे देशों के खिलाड़ियों को भी आगामी वर्षों में बेहतर करने की चुनौती देते रहेंगे.

उल्लेखनीय है कि बीते डेढ़ वर्ष से भारत समेत समूची दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है. इस वजह से खिलाड़ियों, खासकर पैराखिलाड़ियों, के लिए प्रशिक्षण लेना तथा स्वास्थ्य ठीक रखना एक अलग ही समस्या रही है. लेकिन उनकी लगन के साथ चिकित्सकों तथा प्रबंधन की मेहनत से इससे पार पा लिया गया. यह सुखद है कि पैराखिलाड़ियों के लिए केंद्र व अनेक राज्य सरकारों तथा निजी प्रतिष्ठानों ने पुरस्कारों और पदों की घोषणा की है. इससे उन्हें आगे खेलने तथा अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करने में सुविधा होगी.

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