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उच्चतम न्यायालय में ‘किशोर’ शब्द की नये सिरे से व्याख्या की याचिकाएं खारिज

नयी दिल्ली:उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय कानून के तहत ‘किशोर’ शब्द की नये सिरे से व्याख्या के लिये दायर याचिकाएं आज खारिज कर दीं. इन याचिकाओं में कहा गया था कि जघन्य अपराधों के आरोपी के किशोर होने का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड की बजाय फौजदारी की अदालत को करना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम, […]

नयी दिल्ली:उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय कानून के तहत ‘किशोर’ शब्द की नये सिरे से व्याख्या के लिये दायर याचिकाएं आज खारिज कर दीं. इन याचिकाओं में कहा गया था कि जघन्य अपराधों के आरोपी के किशोर होने का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड की बजाय फौजदारी की अदालत को करना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायूर्ति शिव कीर्ति सिंह की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भाजपा नेता सुब्रह्मणयम स्वामी और 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती के पिता की याचिकायें खारिज कर दीं. इन याचिकाओं में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2000 के तहत ‘किशोर’ शब्द के प्रावधान को चुनौती दी गयी थी.

न्यायाधीशों ने 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार मामले में दोषी किशोर का मामला नये सिरे से सुनवाई के लिये नियमित अदालत को भेजने हेतु पीडिता के पिता की याचिका खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि किशोर का मुकदमा नियमित सुनवाई के लिये फिर से भेजने का सवाल ही नहीं उठता.

न्यायालय ने किशोर न्याय कानून के तहत 18 साल की आयु के अपराधियों के मामलों की सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष करने का प्रावधान असंवैधानिक नहीं है.इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दोनों याचिकाओं का विरोध किया था.

पीडित के पिता ने याचिका में कहा था कि 31 अगस्त, 2013 का किशोर न्याय बोर्ड का फैसला परिवार को स्वीकार्य नहीं है. इसीलिए वह इस कानून को चुनौती दे रहे हैं क्योंकि राहत के लिये संपर्क करने हेतु कोई अन्य प्राधिकार उपलब्ध नहीं है.

उन्होंने किशोर न्याय कानून के उस अधिकार को असंवैधानिक और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया था जो एक किशोर द्वारा भारतीय दंड संहिता के दायरे में आने वाले अपराध के मामले की सुनवाई से फौजदारी अदालत को वंचित करता है.

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