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सात दशकों का सफर

आजादी के सत्तर साल! सबसे प्राचीन सभ्यताओं में एक की जन्मभूमि रही भारत-भूमि के समय-सागर में किसी बुलबुले के मानिंद हैं ये साल. इतने सालों में सभ्यता तो क्या, उसका हाशिया भी तैयार नहीं होता, लेकिन 15 अगस्त 1947 की आधी रात को उस गौरवशाली क्षण में, जब दुनिया सो रही थी, यह देश नये […]

आजादी के सत्तर साल! सबसे प्राचीन सभ्यताओं में एक की जन्मभूमि रही भारत-भूमि के समय-सागर में किसी बुलबुले के मानिंद हैं ये साल. इतने सालों में सभ्यता तो क्या, उसका हाशिया भी तैयार नहीं होता, लेकिन 15 अगस्त 1947 की आधी रात को उस गौरवशाली क्षण में, जब दुनिया सो रही थी, यह देश नये विहान के संकल्प के साथ जगा हुआ था. फैसला करना था कि अतीत को नये सिरे से सजाना है, पुरानेपन में लौट जाना है या धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र, भाषा और परंपरा के बंधनों को झटककर एक नयी राह- मानवीय स्वतंत्रता की राह- पर चलना है.
उस रात सिंधु सभ्यता के वारिसों ने खुद से एक वादा किया कि उन्हें अतीत के भग्वनावशेषों में कैद नहीं होना है, बल्कि भारत के नाम से ‘राष्ट्र-रूप’ होना है. उस क्षण राष्ट्र ने मानवता के एक नये युग में कदम रखा था. इस देश की आत्मा को वाणी मिली थी, जिसमें अतीत के सारे श्रेष्ठ मूल्यों का उच्चार था और भविष्य के प्रत्येक क्षण को इन मूल्यों से आयत्त करने का उत्साह. उस आधी रात के उस क्षण की तरफ हमें हर साल लौटना होता है.
तिरंगे को आकाश में फहराने से पहले रस्सी की गांठों को बांधते और खोलते दरअसल इस देश का हर आम और खास आदमी अतीत के उस गौरवशाली क्षण से साक्षात्कार करता है. उस क्षण मन में प्रश्न जागते हैं कि बीते सालों की यात्रा में यह देश किन मोर्चों पर आगे बढ़ा और वे कौन-से मुकाम रहे, जहां हम बस गोल-गोल चक्कर काटते रह गये. सवा अरब लोगों की आबादी वाले इस लोकतंत्र में रोटी-कपड़ा-मकान, सेहत, शिक्षा और आगे बढ़ने के अवसर के लिहाज से जो जितना आगे या पीछे है, वहीं से खड़ा होकर देश-जीवन के आगे बढ़ने, पीछे जाने या ठहरे होने के उत्तर तलाशता है.
इन जवाबों में खुशी झांकती है कि ढाई से साढ़े तीन फीसद की सालाना कछुआ-चाल से सरकनेवाली अर्थव्यवस्था आज पूरी दुनिया को चौंकाते हुए किसी चीते की तरह सात फीसद की रफ्तार से छलांग लगा रही है.
अंतरिक्ष से लेकर समुद्र के गर्भ तक भारतीय मेधा की धमक है और आधी से ज्यादा आबादी अपनी नौजवानी की ऊर्जा से विकास का कोई भी लक्ष्य भेद सकती है. और इन जवाबों में यह दुख भी झांकता है कि कतार में खड़े आखिरी आदमी के आंख से आंसू पोंछने का वादा अभी पूरा किया जाना बाकी है. जाति, धर्म, लिंग और क्षेत्र के भेदों को पाटना अभी बाकी है. अधूरे वादों को पूरा करने के संकल्प के साथ प्रभात खबरे की ओर से स्वतंत्रता दिवस की अशेष शुभकामनाएं!

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