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मंत्रियों को देखकर मुझे करेले का ध्यान आता है, जिसके बारे में किसी वनस्पति विज्ञानी ने बहुत सूक्ष्म निरीक्षण के बाद यह कहावत गढ़ी थी कि एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा. जैसा कि कहावत से स्पष्ट है, करेले को नीम पर चढ़ने का बहुत शौक होता है, जिसका कारण यह बताया जाता है कि […]

मंत्रियों को देखकर मुझे करेले का ध्यान आता है, जिसके बारे में किसी वनस्पति विज्ञानी ने बहुत सूक्ष्म निरीक्षण के बाद यह कहावत गढ़ी थी कि एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा. जैसा कि कहावत से स्पष्ट है, करेले को नीम पर चढ़ने का बहुत शौक होता है, जिसका कारण यह बताया जाता है कि उसे अपने खुद के कड़वेपन से संतोष नहीं होता और फलत: और अधिक कड़वा होने के लिए वह नजदीक उगे नीम पर जा चढ़ता है. नीम की इस बारे में क्या प्रतिक्रिया होती है, इसका अलबत्ता पता नहीं चल पाया.

इसी तरह नेता भी और अधिक खूंख्वार होने के लिए मंत्री-पद पर चढ़ने की जुगत भिड़ाते हैं. इधर वे मंत्री-पद पर चढ़ते हैं, उधर उन पर ज्ञान उतरने लगता है, मतलब जो-कुछ भी उतरता है, उसे वे ज्ञान ही समझते हैं, जिसे वे मौके-बेमौके, बल्कि मौके कम और बेमौके ज्यादा, बांटने लगते हैं. उन्होंने ही संसार को बताया कि अगस्त का महीना बच्चों के लिए काल के समान होता है और उसमें बच्चे मरते ही हैं. या फिर यह कि किसानों को आत्महत्या का शौक होता है, जिसकी पूर्ति के लिए वे कर्ज को जहर की पुड़िया की तरह निगल लेते हैं. उन्हें आत्महत्या से बचाने के लिए सरकार उनका दस-बीस रुपये का कर्जा तक माफ कर देती है, पर वे बाज नहीं आते. औरतों और खासकर उनके साथ होनेवाले रेप के मामले में तो उनका ज्ञान दिव्यता की सीमा छू लेता है.

नेताओं का ज्ञान और श्रेष्ठता-बोध शिक्षकों के सामने सबसे ज्यादा उछालें मारता है, जिसे देख लोग यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि कहीं इनके शिक्षकों ने इन्हें जमकर मुर्गा तो नहीं बनाया था? पिछले दिनों गवैये से नेता बने एक सांसद ने एक शिक्षिका को गाने की फरमाइश करने पर यह कहकर लताड़ा था कि तुम्हें पता नहीं, सांसद से कैसे बात की जाती है? लेकिन फिर उसी सांसद को सरे-आम एक अभिनेत्री के सामने घुटने टेककर ‘लगावेलू जब लिपस्टिक’ गाने में कोई अमर्यादा नहीं लगी.

और अब एक मंत्री ने एक स्कूल के निरीक्षण के दौरान कैमिस्ट्री की एक क्लास में जाकर शिक्षिका से पूछ लिया कि माइनस प्लस माइनस बराबर क्या? शिक्षिका ने इसका उत्तर माइनस बताया, जबकि मंत्री ने प्लस. मेरे खयाल से तो दोनों अपनी जगह ठीक थे और अपने अनुभव से बोल रहे थे. नेता-मंत्रियों ने देश को माइनस पर माइनस करके अपना खूब प्लस बनाया है, जबकि शिक्षकों ने अपनी तमाम सीमाओं और कमियों के बावजूद माइनस से माइनस बच्चे को भी प्लस बनाने की कोशिश की है. फिर भी उन्हें, खासकर शिक्षिकाओं को, मंत्री महोदय का एहसानमंद होना चाहिए, जो अपने ही शब्दों में उन्हें केवल महिला होने के कारण छोड़कर चले गये, क्योंकि बहुत-से नेता-मंत्री तो उन्हें इसी कारण नहीं छोड़ते, लताड़ देते हैं.

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

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