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बैंकिंग सुधार जरूरी

कारोबार शुरू करना हो, उसे विस्तार देना हो या किसी तात्कालिक वित्तीय परेशानी से उबारना हो, तो व्यवसायियों और कंपनियों के लिए पहला और प्रमुख सहारा बैंक ही होते हैं, लेकिन बीते कई सालों से देश का बैकिंग-तंत्र ‘बैड लोन’ की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है. बैंकों के दिये गये कर्ज में वक्त […]

कारोबार शुरू करना हो, उसे विस्तार देना हो या किसी तात्कालिक वित्तीय परेशानी से उबारना हो, तो व्यवसायियों और कंपनियों के लिए पहला और प्रमुख सहारा बैंक ही होते हैं, लेकिन बीते कई सालों से देश का बैकिंग-तंत्र ‘बैड लोन’ की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है. बैंकों के दिये गये कर्ज में वक्त गुजरने के साथ खूब तेजी आयी, पर उसकी वसूली निर्धारित अवधि में नहीं की जा सकी. इस कर्ज की रकम का कुछ हिस्सा लगातार एनपीए (गैर निष्पादक परिसंपत्ति) में तब्दील होता रहा है.

इस कारण बैकों के मुनाफे में कमी आयी है और बैंक नये कर्जे देने में हिचकिचा रहे हैं. वर्ष 2008 से 2014 के बीच सरकारी बैंकों का कर्ज बढ़कर 34 लाख करोड़ रुपये हो गया और इसका एक बड़ा हिस्सा (8.5 लाख करोड़ से अधिक) अब एनपीए बन गया है, यानी सरकारी बैंकों ने कर्ज की इस राशि के बारे में मान लिया है कि उसकी वसूली लगभग असंभव है. बैंकिंग-तंत्र की वित्तीय हालत सुधारने के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बड़ा कदम उठाते हुए एलान किया है कि सरकार अगले दो सालों में सरकारी बैंकों में अलग-अलग उपायों से 2.11 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगी.

इससे सरकारी बैंकों का अपने घटते मुनाफे की चिंता से उबरने में और नये लोन देने में मदद मिलेगी. सरकार के इस कदम को पहले किये गये उपायों के पूरक के रूप में देखा जा सकता है. वर्ष 2015 में भी सरकारी बैकों में निवेश की घोषणा हुई थी. तब सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपये के निवेश का फैसला किया था. इसकी 80 फीसदी रकम सरकारी बैंकों में डाली जा चुकी है.

इस फैसले को दो महत्वपूर्ण तथ्यों से जोड़कर देखा जाना चाहिए. एक तो सरकार धन के निवेश के मामले में उन बैंकों को प्राथमिकता देगी, जिनकी माली हालत बाकियों की तुलना में ज्यादा बेहतर है. ऐसा न करने से आशंका रहती कि बैंक फिर से पहले की तरह बिना विशेष सावधानी बरते लोन बांटना शुरू कर देंगे. दूसरे, बैंकों की वित्तीय हालत सुधारने का कदम सड़क-निर्माण की परियोजना के साथ उठाया गया है. निश्चित रूप से यह फैसला बैंकिंग तंत्र में बड़े सुधार की सरकारी कोशिशों की कड़ी में है, जिनके तहत बैंकों की पुनरसंरचना हो रही है. बैंकों के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था का हाल एक-दूसरे से गहरे जुड़े होते हैं.

ऐसे में अच्छा प्रदर्शन कर रहे बैंकों को पूंजी मुहैया कराने के साथ उनके बेहतर प्रबंधन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि ‘बैड लोन’ जैसी मुसीबतें न बढ़ सकें तथा बैंक बोझ की चिंता से मुक्त होकर नयी खाता-बही के साथ वित्तीय काम को अंजाम दें. साथ ही, फंसी हुई रकम को निकालने के लिए किये जा रहे प्रयासों को भी तेज करने की जरूरत है.

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