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मृदा दिवस की सार्थकता

शफक महजबीन टिप्पणीकार दुनियाभर में बीते पांच दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया गया. साल 2013 में बीस दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संकल्प लेकर प्रति वर्ष पांच दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का ऐलान किया. अब सवाल है कि क्या सिर्फ मृदा दिवस मनाने भर से ही मृदा यानी मिट्टी […]

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

दुनियाभर में बीते पांच दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाया गया. साल 2013 में बीस दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संकल्प लेकर प्रति वर्ष पांच दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का ऐलान किया. अब सवाल है कि क्या सिर्फ मृदा दिवस मनाने भर से ही मृदा यानी मिट्टी की महत्ता को बरकरार रखा जा सकता है, जबकि आये दिन हम मिट्टी को बरबाद करते जा रहे हैं.

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने बिल्कुल ठीक कहा है- ‘एक देश जो अपनी मिट्टी को नष्ट (प्रदूषित) कर देता है, वह अपने आप को नष्ट कर देता है. हमारे जंगल हमारी जमीन के फेफड़े हैं, जो हवा को शुद्ध करते हैं और लोगों को नयी ऊर्जा देते हैं.’

भारत में आज भी आधी से ज्यादा आबादी मिट्टी से जुड़ी है, यानी कृषि और मजदूरी पर निर्भर है. फिर भी हम इस अनमोल चीज को बरबाद करने पर तुले हुए हैं. किसी मृदा दिवस की सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है, जब हम हर हाल में अपनी मिट्टी को प्रदूषित होने से बचायें.

हमारी प्रकृति ने हम इंसानों को बहुत कुछ अनमोल चीजें उपहार में दी हैं. उन्हीं उपहारों में से एक है मिट्टी. मिट्टी का घर ईंट के मकानों की तुलना में ज्यादा अच्छा होता है, जो जाड़े में गर्म और गरमी के मौसम में ठंडा रहता है.

मिट्टी से बनी चीज के फायदे हैं. भारतीय संस्कृति में मिट्टी को मां तक कहा जाता है. लेकिन, आधुनिकता की दौड़ में इंसान इतना आगे निकल गया है कि वह मिट्टी के शरीर पर लगने तक से डरने लगा है. उसे डर होता है कि शरीर में मिट्टी लगने से कहीं कोई संक्रमण न हो जाये. जबकि हमारा शरीर मिट्टी से ही बना है. यही मिट्टी हमारी भूख मिटाने के साथ ही (मिट्टी में उपजे खाद्य पदार्थ), हमें कई रोगों की रोकथाम में भी मदद करती है. यह विडंबना है कि हम उसकी उपयोगिता को समझने के बजाय इसको प्रदूषित कर रहे हैं.

आजकल फसलों को बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं और उर्वरक खादों का उपयोग बहुत बढ़ गया है, जिससे मिट्टी के छोटे-छोटे जीव नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी पहले जैसी उपजाऊ नहीं रह जाती. यही नहीं, इससे उत्पादित अनाजों को खाकर लोगों की सेहत खराब हो रही है.

मिट्टी को जहर बनाने का एक बहुत बड़ा कारण प्लास्टिक भी है. प्लास्टिक में जो रसायन होते हैं, वो मिट्टी और भूमिगत जल को प्रदूषित करते हैं. ऐसे में लोगों को प्लास्टिक के थैलों का प्रयोग कम से कम करने के लिए जागरूक करना जरूरी है.

हमारे किसानों की स्थिति बहुत बुरी है. ज्यादातर किसान कम पढ़े-लिखे हैं. उन्हें प्रशिक्षित करना चाहिए कि किस चीज से मिट्टी नष्ट होती है और रासायनिक खादों का प्रयोग जरूरत के हिसाब से संतुलित मात्रा में हो.

कृषि के लिए किसानों को आधुनिक तकनीक से प्रयोग के बारे में प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि वे अधिक से अधिक लाभ ले सकें. किसानों के साथ-साथ ही ये सभी का फर्ज है कि मिट्टी के प्रदूषण को लेकर हम जागरूक हों, तभी मृदा दिवस मनाने का कोई अर्थ है.

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