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48 साल से चाईबासा से दूर रही है बॉक्सिंग

चाईबासा : भले ही आज टाटा घराने ने पश्चिम सिंहभूम जिले में बॉक्सिंग जैसे खेल को नया जीवन देने की पहल की हो, लेकिन आज से चार दशक पूर्व ( 70 के दशक में) चाईबासा में बॉक्सिंग अपने उत्कर्ष पर था. चाईबासा से विधायक रहे हीबर गुड़िया, उद्योगपति राजकुमार शाह, गोपाल सिंह, सुशील डे आदि […]

चाईबासा : भले ही आज टाटा घराने ने पश्चिम सिंहभूम जिले में बॉक्सिंग जैसे खेल को नया जीवन देने की पहल की हो, लेकिन आज से चार दशक पूर्व ( 70 के दशक में) चाईबासा में बॉक्सिंग अपने उत्कर्ष पर था. चाईबासा से विधायक रहे हीबर गुड़िया, उद्योगपति राजकुमार शाह, गोपाल सिंह, सुशील डे आदि ने मिलकर 70 के दशक में डायमंड क्लब की स्थापना की.

पहले शरीर बनाने की कवायद शुरू हुई, फिर बॉक्सिंग का दौर भी शुरू हुआ. जेवियर स्कूल और टाटा कॉलेज में इसकी शुरुआत की गई. पूर्व विधायक और बॉक्सर रहे हीबर गुड़िया ने अभावों के बीच भी बॉक्सिंग रिंग का निर्माण कराया. चाईबासा की बॉक्सिंग रिंग राजनीति की शिकार हो गई. हालांकि तमाम परिस्थितियों के बीच चाईबासा से युवाओं की एक टोली जमशेदपुर पहुंची.

बॉक्सर हिबर गुड़िया ने नेशनल प्रतियोगिता में कम्पीट किया. फाइनल राउंड तक पहुंचे, लेकिन उन्हें यह कह कर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया कि वे रजिस्टर्ड क्लब से नहीं हैं. हीबर का दिल दुखा, लेकिन वे टूटे नहीं. वे अपनी टीम के साथ चक्रधरपुर पहुंचे और बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत गए.

विधायक रहते अपने गृह जिले में बॉक्सरों की प्रतिभा को देखते हुए कई बार आवाज़ उठाई, मगर बिहार सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. खेल के मामले में सरकारें कुछ खास लोगों की ही सुनती हैं. पैरवी उन्हीं की चलती है. जिसके चलते दूसरे राज्यों के खिलाड़ी चाईबासा के कोटे से खेल कर नाम-दाम कमा लेते हैं. झारखंड बनने के बाद भी यह परंपरा बदस्तूर जारी है. सिंहभूम में बॉक्सिंग की तरह कई खेल राजनीति के शिकार हो रहे हैं.
हीबर गुड़िया, पूर्व बॉक्सर और पूर्व विधायक

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