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Uttarakhand : पलायन की मार से बेहाल पौड़ी

देहरादून : उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें, तो पलायन का सबसे ज्यादा दंश पौड़ी जिले ने झेला है. बीते 10 बरस में पलायन करने वालों में से 20 फीसदी से अधिक लोग इसी जिले के हैं. इतना ही नहीं, 2011 की जनगणना के अनुसार, पौड़ी और अल्मोड़ा ही ऐसे दो […]

देहरादून : उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की रिपोर्ट की मानें, तो पलायन का सबसे ज्यादा दंश पौड़ी जिले ने झेला है. बीते 10 बरस में पलायन करने वालों में से 20 फीसदी से अधिक लोग इसी जिले के हैं. इतना ही नहीं, 2011 की जनगणना के अनुसार, पौड़ी और अल्मोड़ा ही ऐसे दो जिले हैं, जहां जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गयी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य से कुल जितने लोगों ने पलायन किया है, उनमें से 20 प्रतिशत से ज्यादा ने लोगों ने पिछले एक दशक में पलायन किया. इनमें भी ज्यादातर ने रोजगार की तलाश में अपना घर बार छोड़ा. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा गठित ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पलायन का सबसे ज्यादा दंश नैसर्गिक सौंदर्य से ओतप्रोत पौड़ी जिले ने ही झेला है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों में जनसंख्या में ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गयी है.

आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 सालों में पौड़ी से 25,584 व्यक्ति स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं. यह आंकड़ा, राज्य से पलायन करने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या के 20 फीसदी से भी ज्यादा है. पिछले 10 सालों में पौड़ी से अस्थायी रूप से पलायन करने वालों की संख्या 47,488 है. रिपोर्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि जिले से पलायन करने वालों में से 52.58 फीसदी लोगों ने अपना घर-बार छोड़ने की मुख्य वजह आजीविका के साधन का न होना बताया है. केवल 15.78 फीसदी लोगों ने शिक्षा सुविधाओं तथा 11.26 फीसदी ने स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को अपने पलायन का मुख्य कारण बताया है.

पौड़ी के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष जसपाल सिंह नेगी का कहना है कि राज्य गठन से पहले पौड़ी में खूब रौनक हुआ करती थी. परंतु राज्य गठन के बाद धीरे-धीरे यहां स्थित सभी विभागों के कैंप कार्यालय देहरादून बन गये. उन्होंने कहा, ‘अधिकारी भी कैंप कार्यालयों में बैठकर काम कर रहे हैं और उनका पौड़ी आना कभी-कभार ही होता है. जब कमिश्नरी ही देहरादून से संचालित हो रही है, तो अन्य विभागों की क्या बात की जाये.’

उन्होंने कहा कि विभागों के मुख्यालय पौड़ी में ही बनाये रखने के लिए कई आंदोलन किये गये, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. कभी शिक्षकों का क्षेत्रीय कार्यालय पौड़ी में ही हुआ करता था, जो पृथक राज्य बनने के बाद राज्य मुख्यालय बनकर नैनीताल जिले के मैदानी रामनगर क्षेत्र में शिफ्ट हो गया. कभी खेल विभाग का मंडलीय कार्यालय भी पौड़ी में था, जो बाद में देहरादून चला गया.

पौड़ी कमिश्नरी के जमाने से वहां पर बैठ रहे गढ़वाल आयुक्त और पुलिस उपमहानिरीक्षक रेंज के अधिकारी भी धीरे-धीरे देहरादून की तरफ कूच कर गये. राज्य निर्माण के बाद पौड़ी में कृषि निदेशालय खुला, लेकिन केवल तीन महीने में वह भी देहरादून चला गया. इससे पौड़ी मुख्यालय को आर्थिक और सामाजिक नुकसान हुआ. इसका सीधा असर वहां से हो रहे पलायन के रूप में देखा जा सकता है.

केवल पौड़ी जिले में ही 186 ऐसे गांव हैं, जो लगभग खाली हो चुके हैं. राज्य के कुछ अफसरों ने अपना नाम उजागर न किये जाने की शर्त पर बताया कि हरेक अफसर अपनी तैनाती देहरादून या मैदानी क्षेत्र में ही चाहता है. पौड़ी में अपनी सेवाएं दे चुके एक सरकारी अफसर ने कहा, ‘चाहे वह सिविल में हो या पुलिस में. सबकी ख्वाहिश देहरादून में ही रहकर काम करने की होती है, ताकि उनके बच्चों को शिक्षा की बेहतर सुविधा मिल सके.’

गढ़वाल के पुलिस उपमहानिरीक्षक अजय रौतेला ने इस संबंध में संपर्क किये जाने पर बताया कि काम के अनुसार देखा जाता है कि पौड़ी में कितना बैठना है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर काम देहरादून में होने की वजह से यहीं बैठना पड़ता है. हालांकि, इस सबका खामियाजा पौड़ी मुख्यालय और उसके आसपास के क्षेत्रों को ही भुगतना पड़ रहा है. चाहे होटल हों या दुकानें, पौड़ी का व्यापार ठप होने की कगार पर है.

पौड़ी के ये हालात तब हैं, जब नया राज्य बनने के बाद मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभालने वाले ज्यादातर नेता इसी जिले के रहे हैं. वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत या पूर्व में राज्य की कमान संभाल चुके भुवन चंद्र खंडूरी या रमेश पोखरियाल निशंक या विजय बहुगुणा, सभी पौड़ी जिले के मूल निवासी हैं. हालांकि, अब ये सभी नेता देहरादून को अपना स्थायी बसेरा बना चुके हैं.

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