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देवघर : गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे ने कहा – वेल में जाने पर स्वत: निलंबन का फैसला प्रजातंत्र के हित में

देवघर : लोकसभा के वेल में जानेवालों की स्वत: निलंबन के फैसले को डॉ निशिकांत दुबे ने ऐतिहासिक करार दिया है. लोकसभा की नियम समिति में शामिल सांसद निशिकांत ने पूरे मामला पर कहा है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि इस पर फैसला इसी सत्र में आये. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे […]

देवघर : लोकसभा के वेल में जानेवालों की स्वत: निलंबन के फैसले को डॉ निशिकांत दुबे ने ऐतिहासिक करार दिया है. लोकसभा की नियम समिति में शामिल सांसद निशिकांत ने पूरे मामला पर कहा है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि इस पर फैसला इसी सत्र में आये. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले को अगली लोकसभा पर छोड़ने के लिए पत्र लिखा था.
इस पर मैंने छत्तीसगढ़ व वर्ष 1997 के प्रस्ताव को हवाला देकर इसे प्रजातंत्र हित जल्द लागू करना की सिफारिश की थी. छत्तीसगढ़ विधानसभा के रूल बुक में यह पहले से ही लागू है कि जो भी वेल में जायेगा उसे माना जायेगा कि वे सस्पेंड हो गये हैं. यदि आप मानते हैं कि जीत कर हम नहीं आ रहे हैं तो यह हमारे ऊपर लागू होगा. इससे कोई परेशानी तो नहीं होेगी.
देश भर में जो यह मैसेज जा रहा है कि सांसद काम नहीं करते हैं. पैसा लेते है. केवल हल्ला-हंगामा करते हैं, उन चीजों को धो डालना चाहता हूं. छह दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ढाह दिया गया. आठ दिसंबर को पार्लियामेंट चालू हो गया. डिवेट हुआ, लंबी-चौड़ी बहस हुई. आज यह होता तो किसी भी कीमत पर पार्लियामेंट चलने नहीं दिया जाता.
लोकसभा के लिए यह प्रस्ताव जरूरी है
हमने कहा कि लोकसभा फादर फिगर है, तो हम क्यों नहीं इसे लागू कर सकते हैं. इसलिए सारा अधिकार स्पीकर को दे दिया था. जो वेल में जायेगा, वो स्वाभाविक तौर पर सस्पेंड हो जायेगा. साथ ही जो अपने स्थान पर रह कर हल्ला-हंगामा करते हैं या दूसरों को बोलने में डिस्टर्ब करते हैं, वे भी सस्पेंड माना जायेगा. प्रजातंत्र कैसे जिंदा रहे इस पर फोकस किया. साथ ही रूल 374 में ए, बी और सी जोड़ा है.
संसद में मुद्दा उठता है, वाद-विवाद होता है, आंदोलन नहीं
सड़क से संसद तक आंदोलन करेंगे ऐसी बातें सुनते आया हूं. मैंने राजनीतिक जीवन में समझा हूं कि सड़क का मतलब होता है कि सड़क पर धरना देना, अनशन करना, जाम करना, प्रदर्शन करना, दुकानें बंद कराना आदि. साथ ही संसद का मतलब होता है मुद्दों को उठाना व भाषण देना. संसद वाद-विवाद का विषय है.
वहां केवल बातचीत होनी चाहिए. किसी भी समस्या का समाधान बातचीत के जरिये ही संभव है. जनता सरकार तक अपनी बातें पहुंचाने के लिए हमें संसद भेजती है. देश की जनता को भरोसा है कि पार्लियामेंट में जो मुद्दा उठेगा उसका समाधान होगा. लेकिन, संसद में मुद्दा ही नहीं उठ रहा है. लोग जबरदस्ती उसे बंद करना चाह रहे हैं.
प्रस्ताव को पारित करना है अनुकूल समय
निशिकांत ने कहा : लोकसभा में मैंने है कि यह अनुकूल समय है. कांग्रेस इसका विरोध कर रही है. कांग्रेस चाहती है कि 2019 चुनाव के बाद इसे लागू किया जाये. मेरा मानना है कि यही उचित समय है. 2019 चुनाव के बाद किसकी सरकार बनेगा यह भविष्य के गर्त में है, लेकिन इस पर निर्णय भी होना जाना चाहिए. यह प्रजातंत्र के हित में है.
आजादी के 50 वर्ष पूरे होने पर लिया गया था प्रस्ताव (बॉक्स)
निशिकांत ने कहा : आजादी के 50 वर्ष पूरा होने पर वर्ष 1997 में एक प्रस्ताव लिया था. उस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री देवगौड़ा साहेब, पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर नरसिम्हा राव, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, सोमनाथ चटर्जी सहित सभी पॉलिटिक्ल पॉर्टी के लोगों ने उस प्रस्ताव पर साइन किया था. एक क्रॉस पार्टी लाइन में कहा गया था कि जो भी बेल में जायेंगे. उनकी सदस्यता दिनभर कार्यवाही से निष्कासित कर दिया जायेगा.
पॉर्लियामेंट में कोड ऑफ इथिक्स लागू किया
वेल में जाने से सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिकल माइलेज मिलता है. यह खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती है. आप किस मुद्दे पर चर्चा करना चाहते हैं कि यह जनता कैसे सुनेगी. आप किस मुद्दे पर बहस कर रहे हैं जबतक आप बताइयेगा नहीं तबतक कैसे जनता सुनेगी.
उस मुद्दे में क्या निगेटिव है, क्या पॉजिटिव है. कैसे पता चलेगा. यही कारण है कि जब रूल कमेटी का सदस्य बना उस वक्त तक सिर्फ एडहॉक रूल था. एक सर्व कमेटी बनी. इसका चेयरमैन/कंवेनर मुझे बनाया गया. मेरे साथ सौगत राय और रमेशचंद्र कौशिक थे.
आडवाणी सहित पॉलिटिकल पार्टियों के साथ बात करके अन्य देशों के पॉर्लियामेंट में क्या हो रहा है. एक आचरण कैसा होना चाहिए. कोड ऑफ इथिक्स लागू किया. आज वह रूल में है. पार्लियामेंट पर लोगों का विश्वास करना है तो आचरण समिति को अमलीजामा पहनाया. यह 2015-16 में लागू हुआ. मुझे खुशी है कि स्पीकर के सोच को आगे बढ़ाया.

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