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महिला अधिकारों को मिली मजबूती, पत्नी से बिना सहमति शारीरिक संबंध, बलात्कार

सर्वोच्च न्यायालय ने 18 साल से कम उम्र की पत्नियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखने का आदेश दिया है. इस फैसले से बलात्कार के कानून अब नाबालिग लड़कियों से जुड़े अन्य कानूनों के समरूप हो गये हैं. पहले विवाहित संबंधों में 15 से 18 वर्ष की पत्नी से बिना […]

सर्वोच्च न्यायालय ने 18 साल से कम उम्र की पत्नियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखने का आदेश दिया है. इस फैसले से बलात्कार के कानून अब नाबालिग लड़कियों से जुड़े अन्य कानूनों के समरूप हो गये हैं.
पहले विवाहित संबंधों में 15 से 18 वर्ष की पत्नी से बिना सहमति शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार नहीं माना जाता था.इस फैसले के बाद इस बात की गुंजाइश अब मजबूत हुई है कि वैवाहिक संबंधों में जोर के दम पर संसर्ग को भी कानूनी दायरे में लाया जा सकेगा. सर्वेक्षण बताते हैं कि हमारे देश में 94 फीसदी बलात्कार पीड़िता के परिचितों के द्वारा अंजाम दिये जाते हैं तथा इस बात की 40 गुना अधिक आशंका होती है कि महिला किसी अनजान के बजाय अपने पति द्वारा प्रताड़ित हो. इस मुद्दे के विविध पहलुओं पर विश्लेषण के साथ इन दिनों की प्रस्तुति.
फैजान मुस्तफा
वाइस चांसलर, नलसर यूनर्विसिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद
अठारह साल से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध रेप माना जायेगा, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अच्छा तो है, लेकिन सिर्फ कानून बना देने से जमीनी स्तर पर सुधार नहीं होता. हालांकि, यह फैसला इसलिए स्वागतयोग्य जरूर है कि इससे शायद लोग बाल विवाह में एहतियात बरतेंगे. लेकिन, इसके लागू होने में कुछ दिक्कतें भी नजर आ रही हैं.
मसलन, जो शादियां अब से पहले हुई हैं और उनमें पत्नी की उम्र अगर अठारह साल से कम है, तो वे अपने पतियों पर रेप का आरोप लगा सकती हैं. कुछ मामले में यह भी हो सकता है कि उनका आपस में या ससुराल वालों से झगड़ा चल रहा होगा, और अगर अब फिर से कोई झगड़ा हुआ, तब लड़की पति पर रेप का आरोप लगा सकती है. ऐसे में इस कानून से कहीं-न-कहीं खतरा यह है कि आखिर इसे लागू कैसे किया जायेगा उन पर, जो शादियां पहले हो चुकी हैं? फिलहाल यह एक बड़ा मसला दिख रहा है.
पर्सनल लॉ की दखलअंदाजी नहीं
दूसरा मसला यह है कि क्रिमिनल लॉ पर पर्सनल लॉ लागू नहीं होता, यानी किसी अपराध के लिए एक कानून सारे मुल्क में और सभी धर्मों के लोगों के लिए बराबर से लागू है. इसलिए यह फैसला भी सारे मुल्क के लिए है. मैंने अखबार में पढ़ा कि बरेली और दूसरी जगहों के मुसलमानों ने शरियत के हवाले से इस फैसले पर एतराज जाहिर किया है कि यह पर्सनल लॉ की दखलअंदाजी है. दरअसल, शरिया के एतबार से 13-14 साल की उम्र में लड़की की शादी हो सकती है.
लेकिन, शरिया में किसी चीज की इजाजत होने का मतलब यह नहीं है कि अगर आपने उसे नहीं माना, तो आप मजहब के खिलाफ चले गये. मसलन, अगर शरिया में यह दर्ज है कि एक लड़की के 13-14 साल पूरे होते ही उसकी शादी की जा सकती है, लेकिन वहीं देश का कानून शादी की उम्र 18 साल तय करता है, और इस सूरत में अगर 18 से कम की पत्नी के यौन संबंध को रेप मानता है, तो मैं इसे पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी नहीं मानता.
अवयस्क यौन संबंध पर सहमति नहीं
हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि शरिया में दी गयी किसी इजाजत को हम यह न समझें कि वह वाजिब या फर्ज है. मसलन, मुसलमानों में चार शादी न तो फर्ज है, न ही वाजिब है, बल्कि वह तो किसी खास हालात में इसकी इजाजत है और बहुत कठिन शर्त के साथ इजाजत है, यानी सब पत्नियों के साथ पूरा न्याय हो, जो असंभव है. ध्यान रहे, इस्लाम अवयस्क को अपना विवाह समाप्त करने का अधिकार देता है. यह एक ऐतिहासिक प्रावधान था. आज भी अवयस्कों को विश्व में सहमति से यौन संबंध बनाने पर सहमति नहीं है.
कानून का दुरुपयोग एक बड़ा प्रश्न
पूरी दुनिया में सेक्स की आपसी सहमति के लिए एज ऑफ कंसेंट को लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग रवैया है. कहीं पर 14-15 साल है, कहीं पर 16 साल है, कहीं पर 18 साल है, कहीं पर 20 साल है, तो कहीं पर 22 साल भी है.
वहीं कई कारणों से आजकल बच्चे जल्दी जवान होने लगे हैं. ऐसे में अगर कम उम्र में लड़का-लड़की के बीच दोस्ती हो जाती है और वे भावुकता में बहकर सेक्स में उतर जायें और कम उम्र में अगर यौन संबंध बन जाये, तो उसे रेप की कैटेगरी में रखना, मैं समझता हूं कि यह आगे ले जाने के बजाय हमारे लॉ को पीछे ले जायेगा.
सरकार की दुविधा भी यही थी कि एक तो देश के कई हिस्सों में बाल विवाह होते हैं और मुसलमानों के मुकाबले हिंदुओं में ज्यादा बाल विवाह होते हैं. इसलिए हमारी कोशिश तो यह होनी चाहिए कि 18 साल से कम उम्र में शादी ही न होने पाये. लेकिन, अगर कम उम्र में शादी हो गयी, तो उसके बाद यौन संबंध को रेप मानकर क्या सजा दी जाये, कैसे दी जाये, इस मसले पर व्यापक विचार करने की जरूरत है. वहीं इस कानून का कितना दुरुपयोग हो सकता है, यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है.
सरकार निकाले उचित रास्ता
दूसरी बात यह कि जब बच्चे जल्दी जवान हो रहे हैं और सेक्स को लेकर बराबर की सहमति रखते हैं, तो भी फैसले के मुताबिक उम्र कम होने से उनके यौन संबंध को रेप माना जायेगा, तो मैं समझता हूं कि यह स्थिति इस लॉ के दुरुपयोग का रास्ता खोलेगी. इसके लिए सरकार को जरूर कोई-न-कोई उचित रास्ता निकालना चाहिए, क्योंकि ज्यादातर लोगों का मानना है कि एज ऑफ कंसेंट के लिए 18 साल की उम्र तय करना ठीक नहीं है, बल्कि 15 साल या 16 साल किया जा सकता है.
क्रिमिनल लॉ राज्य के हाथ का अस्त्र
क्रिमिनल लॉ का एक बुनियादी वसूल यह है कि समाज में कम-से-कम लोगों को सजा होने पाये, क्योंकि अगर किसी को एक बार सजा हो गयी, तो जिंदगी भी उसका पासपोर्ट नहीं बनेगा, उसको नौकरी नहीं मिलेगी. ऐसे में जब भी हमें किसी चीज के लिए दंड देने का प्रावधान करना है, तो उस प्रावधान को ऐसा बनाना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादातर लोग मुजरिम करार न दिये जाएं.
अगर किसी पर आरोप लगे, तो इस तरह वह आरोप साबित हो कि जरा-सा भी शुबहा न रह जाये कि वह निर्दोष है. अगर जरा-सा भी यह शक है कि अभियुक्त निर्दोष है, तो उस अभियुक्त को इसका लाभ देते हुए उसको सजा होने ही नहीं देना चाहिए. ये सारे प्रावधान इसलिए बनाये गये हैं, ताकि आरोपियों के साथ राज्य कोई दुरुपयोग न करने पाये. क्योंकि, क्रिमिनल लॉ राज्य के हाथ का अस्त्र है.
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भी अच्छा है, लेकिन फिर भी देश के कुछ क्षेत्रों में इस सही तरीके से लागू करने के लिए इसमें एमेंडमेंट के साथ इसके प्रावधानों में कुछ और स्पष्टता होनी चाहिए. (वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
विभिन्न देशों में सहमति की निर्धारित उम्र
सहमति की उम्र कानून द्वारा तय वह उम्र होती है, जिसके बाद व्यक्ति को यौन संबंधों के लिए सहमति देने योग्य माना जाता है. इस कानून का उल्लंघन करने पर बलात्कार संबंधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. अमेरिका के राज्यों और अन्य देशों में यह उम्र सीमा अलग-अलग है.
-अमेरिका में अलग-अलग राज्यों में सहमति की उम्र 16, 17 और 18 वर्ष है.
– बहरीन में यह सीमा सबसे अधिक 21 वर्ष और दक्षिण कोरिया में 20 वर्ष है. बहरीन में यह सीमा उन महिलाओं के लिए है, जो अपने पिता की अनुमति के बगैर शादी करती हैं. वहां सामान्य शादी आधारित सहमति के लिए 15 साल की आयु तय की गयी है.- दुनिया के अधिकतर देशों में यह सीमा 16 से 18 वर्ष के बीच है जिनमें आयरलैंड, ब्रिटेन, घाना, इराक आदि देश हैं.
– नाइजीरिया में यह उम्र सीमा सबसे कम है. वहां सहमति की न्यूनतम उम्र 11 वर्ष है. फिलीपींस और अंगोला में 12 साल तथा बुर्किना फासो, नाइजर, अर्जेंटीना और जापान में यह 13 वर्ष है. चीन, ब्राजील, जर्मनी और इटली में यह सीमा 14 साल है.
– जापान एकमात्र विकसित देश है, जहां सहमति की उम्र बहुत कम है, पर देश के अधिकतर इलाकों में इसे 16 से 18 वर्ष के बीच निर्धारित कर दिया गया है.
-मध्य-पूर्व और अफ्रीका के कई देशों में सहमति की कोई उम्र तय करने का कानून ही नहीं है. अनेक देशों में 9-10 साल में ही लड़कियों की शादी के रिवाज प्रचलन में है.
-जिन देशों में शादी-आधारित सहमति की उम्र सीमा निर्धारित की गयी है, उनमें अफगानिस्तान, ईरान, कुवैत, लीबिया, मालदीव, ओमान, पाकिस्तान, कतर, सूडान, सऊदी अरब, यमन और संयुक्त अरब अमीरात मुख्य हैं.
क्या हैं कानूनी व्यवस्थाएं भारत में
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि दंड संहिता की धारा 375 (जिसके तहत बलात्कार को परिभाषित किया गया है) में जो दूसरी छूट दी गयी है, वह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के विरुद्ध है तथा पोक्सो कानून के अनुरूप नहीं है. इस फैसले के साथ ही अवयस्क पत्नी के साथ शारीरिक संबंध अपराध बन गया है.
अभी तक भारत के बलात्कार और बाल विवाह से संबंधित कानून सहमति की उम्र को लेकर एक-दूसरे से अलग राय रखते थे. धारा 375 के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ शारीरिक संबंध बलात्कार माना जाता है. पर उसमें कहा गया था कि 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति का शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, भले ही यह संबंध पत्नी की सहमति के बिना बनाया गया हो. वर्ष 2013 में दंड संहिता में संशोधन कर सहमति की उम्र को 18 साल कर दिया गया था.
इससे पहले यह 16 वर्ष थी, जो कि 1940 से चली आ रही थी. उम्र बढ़ाने का मतलब यह था कि संसद मानती है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की सहमति देने के लिए योग्य नहीं है. लेकिन, शादीशुदा लड़कियों के मामले में संसद ने सहमति की उम्र को 15 साल ही रखा था, जबकि अन्य कानूनों के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की को अवयस्क माना गया है.

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