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हिमतक्षेस समृद्धि और सुरक्षा के लिए सहयोग

।। प्रवीणकुमार ।। – हिंद महासागर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा माना जाता है. यही कारण है कि इसके तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से 1997 में गठित संगठन ‘हिमतक्षेस’ में दुनिया के विकसित देश भी रुचि ले रहे हैं. ‘हिमतक्षेस’ ने पिछले दिनों मॉरीशस में आयोजित बैठक में सुरक्षा और […]

।। प्रवीणकुमार ।।

– हिंद महासागर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा माना जाता है. यही कारण है कि इसके तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से 1997 में गठित संगठन हिमतक्षेसमें दुनिया के विकसित देश भी रुचि ले रहे हैं. हिमतक्षेसने पिछले दिनों मॉरीशस में आयोजित बैठक में सुरक्षा और समृद्धि के लिए आपसी सहयोग को और प्रगाढ़ बनाने पर जोर दिया. क्या है हिमतक्षेसऔर आज के समय में इसकी अहमियत, बता रहा है नॉलेज.

हिंद महासागर के तटवर्ती देश आपस में आर्थिक संबंधों को और सशक्त बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसी रणनीति के तहत गठित इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (आइओआरएआरसी) अथवा हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संगठन (हिमतक्षेस) के पहले इकोनॉमिक एंड बिजनेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन पिछले दिनों मॉरीशस में किया गया. इसमें सदस्य देशों के मंत्रियों, कारोबार जगत के प्रतिनिधियों और वार्ता के साझेदार देशों यानी डायलॉग पार्टनर देशों ने शिरकत की.

भारत और मॉरीशस द्वारा संयुक्त रूप से पोर्ट लुइस में आयोजित इस सम्मेलन में संतुलित, समावेशी और सतत वृद्धि के लिए सदस्य देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने पर जोर दिया गया. सम्मेलन की आधिकारिक विज्ञप्ति में ओपेन रिजनलिज्मयानी किसी बाहरी देश के साथ कोई भेदभाव किये बिना क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया गया है. साथ ही, आर्थिक वृद्धि और अहम सेक्टरों में वाणिज्यिक संबंधों को प्रगाढ़ बना कर सदस्य देशों के बीच बेहतर व्यापारिक तालमेल बिठाने की बातें कही गयी हैं.

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हिमतक्षेस समृद्धि और सुरक्षा के लिए सहयोग 2


* संगठन
के उद्देश्य

इस संगठन का उद्देश्य है सदस्य देशों में सतत और संतुलित विकास को प्रोत्साहन, साझे हित लाभ से जुड़े आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना. इसके साथ ही, व्यापारिक उदारीकरण की संभावनाओं को तलाशना और क्षेत्र में वस्तुओं, सेवाओं, निवेश तथा तकनीकों के प्रवाह में बाधाओं को कम करना, व्यापार और उद्योग, शैक्षिक संस्थाओं, विद्वानों और सदस्य देशों की जनता के बीच मेलजोल को प्रोत्साहन देना आदि.

* सहयोग के छह अहम क्षेत्र

सदस्य देशों ने मौजूदा वैश्विक परिस्थिति के लिहाज से छह अहम क्षेत्रों को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है. पहला समुद्री सुरक्षा, जिसके तहत हिंद महासागर में नौवहन की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है. दूसरा, व्यापार और निवेश सरलीकरण है. तीसरा, मत्स्य प्रबंधन और चौथा आपदा से जुड़े खतरों को कम करना, जिसके तहत समुद्र में तेल रिसाव की स्थिति में सहयोग करना भी शामिल है. पाचवां, शिक्षा और विज्ञान तकनीक के क्षेत्र में सहयोग और पर्यटन प्रोत्साहन समेत सांस्कृतिक आदानप्रदान.

* क्या है अहमियत

हिंद महासागर की अहमियत भारत के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है. रणनीतिक तौर पर हिंद महासागर की स्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण है ही, आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह बहुत अहम है. इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा कहा जाता है. जर्नल ऑफ इंडियन ओसन रीजन के मुताबिक, पेट्रोलियम पदार्थों से लदे विश्व के 80 प्रतिशत से अधिक जहाज हिंद महासागर से होकर गुजरते हैं.

खाड़ी क्षेत्र से पेट्रोलियम और दूसरे सामानों को लेकर चीन, जापान समेत विभिन्न देशों के जहाज इसी रास्ते से जाते हैं. मात्रा के हिसाब से भारत का करीब 97 प्रतिशत व्यापार हिंद महासागर के जरिये ही होता है. इसके अलावा यह महासागर बहुमूल्य धातुओं, खनिजों और दूसरे प्राकृतिक समुद्री संसाधनों से परिपूर्ण है.

हिंद महासागर में समुद्री लुटेरों द्वारा व्यापारिक जहाजों पर कब्जा और फिरौती की मांग से जुड़ी घटनाओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन और विश्व खाद्य कार्यक्रम समेत अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने समुद्री लूटपाट की घटनाओं पर चिंता जतायी है. ओसन बियोंड पाइरेसी (ओबीपी) के मुताबिक, समुद्री लूटपाट की वजह से समुद्री परिवहन लागत बढ़ता जा रहा है और सालाना छह से सात अरब डॉलर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है. समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना एक बड़ी चुनौती है.

भारत की सुरक्षा के लिहाज से भी हिंद महासागर का व्यापक महत्व है. मुंबई में 26/11 आतंकी हमले को अंजाम देनेवाले भी अरब सागर के जरिये ही दाखिल हुए थे. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भी हिमतक्षेस देशों से और घनिष्टता की उम्मीद कर सकता है. इसके अलावा, ऐसे समय में जब म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान में बंदरगाह और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण और आर्थिक सहयोग के नकाब में चीन स्ट्रिंग आफ पल्र्सके जरिये भारत को घेरने की फिराक में है, इस संगठन का महत्व और बढ़ जाता है.

* प्रमुख चुनौतियां

यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें विविध भाषा, संस्कृति और पहचान के लोग रहते हैं. इस क्षेत्र के देशों के बीच आकार, क्षेत्रफल और आर्थिक ताकत के लिहाज से भी समानता नहीं है. लेकिन सबमें एक बात समान है कि सभी देश हिंद महासागर से जुड़े हुए हैं और साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के शिकार रहे हैं.

मौजूदा दौर में आईओआर देश सभी क्षेत्रों में तो नहीं, लेकिन अनेक सेक्टरों में वैश्विक स्तर पर विकसित देशों को टक्कर दे रहे हैं. साथ ही, अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं. इनका फायदा क्षेत्रीय सहयोग के जरिये अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. इस क्षेत्र में पर्याप्त मानव संसाधन और तकनीकी क्षमता भी है. हिमतक्षेस देशों के पास विश्व का दोतिहाई तेल भंडार और एकतिहाई गैस भंडार मौजूद है.

इन तमाम विशेषताओं के बावजूद इस क्षेत्र में मौजूद व्यापार और निवेश क्षमता का पूरा दोहन किया जाना शेष है. ऐसा मुख्य रूप से कारोबार के लिए औपचारिक प्लेटफार्म के अभाव, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और सूचनाओं के आदानप्रदान का अभाव होने की वजह से है. हालांकि, इन समस्याओं से निबटने के लिए व्यापार और निवेश पर एक कार्यकारी समूह का गठन किया गया है, पर इससे अब तक इच्छित सफलता नहीं मिली है. इसलिए हिमतक्षेस देशों ने बिजनेस टू बिजनेस सम्मेलन करने का फैसला किया है.

* क्या हैं उम्मीदें

इकोनोमिक एंड बिजनेस कॉन्फ्रेंस में सदस्य देशों ने 10 क्षेत्रोंव्यापार सहयोग, शुल्क, खाद्य क्षेत्र में व्यापार, खनन, दवा और परंपरागत औषधि, एग्जिम बैंकों के बीच परस्पर सहयोग, निवेश और व्यापार सरलीकरण, मानक स्तरीय सहयोग और क्षेत्रीय वैल्यू चेन में सहयोग बढ़ने की उम्मीद जतायी है. हालांकि, अब भी शुल्क की ऊंची दरों और स्थानीय मुद्रा में व्यापार के लिए किसी प्रकार के तंत्र के अभाव जैसे मुद्दों को सुलझाया जाना बाकी है.

फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की अध्यक्ष नैनालाल किदवई का कहना है कि औसत शुल्क में कमी आयी है, फिर भी कारोबार के लिहाज से विभिन्न देशों द्वारा लगायी जानेवाली शुल्क की दरें ऊंची हैं. साथ ही, कारोबारियों को सदस्य देशों के भीतर विविध व्यापारिक नीतियों से दोचार होना पड़ता है. इसलिए इन देशों को व्यापारिक नीतियों में एकरूपता लाने पर ध्यान देना होगा और तमाम बाधाओं से पार पाते हुए मुक्त व्यापार क्षेत्र के निर्माण की ओर कदम बढ़ाना चाहिए.

इसके लिए वाणिज्य और निवेश की राह में रही बाधाओं को दूर करने के लिए लगातार प्रतिबद्धता के साथ काम करने की जरूरत है. इससे केवल इस क्षेत्र में खुशहाली आयेगी बल्कि सभी देश एकदूसरे को और अधिक निकट पायेंगे. साथ ही, संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन जैसे वैश्विक मंचों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े सम्मेलनों में अपनी बात ज्यादा स्पष्टता और प्रभावशाली ढंग से रख पायेंगे.

चर्चा में निजी क्षेत्र को शामिल करना एक महत्वाकांक्षी पहल है. इससे हिमतक्षेस में मौजूद क्षमता के दोहन, खाद्य सुरक्षा समेत ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सहूलियत होगी. पर अब चुनौती है सही दिशा में लगातार आगे बढ़ने और लक्षित उद्देश्यों को हासिल करने की. जब दक्षेस या सार्क में पाकिस्तान के अड़ियल रवैये की वजह से बात नहीं बन पा रही है, तो ऐसी स्थिति में भारत को हिमतक्षेस के जरिये आगे बढ़ना चाहिए.

* क्या है हिमतक्षेस

हिमतक्षेसहिंद महासागर के तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित एक संगठन है. मार्च, 1997 में भारत और 13 अन्य देशों ने इसकी स्थापना की थी. इस संगठन में एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के वे देश शामिल हैं जो हिंद महासागर के तट पर बसे हुए हैं. फिलहाल 20 देश इसके सदस्य हैंभारत, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ईरान, केन्या, मलयेशिया, मेडागास्कर, मॉरीशस, मोजाम्बिक, ओमान, सेशल्स, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तंजानिया, थाईलैंड, यमन, संयुक्त अरब अमीरात. पिछले वर्ष गुड़गांव में आयोजित सम्मेलन में इसमें कोमोरोस को भी शामिल किया गया है.

हिमतक्षेसक्षेत्र की आबादी करीब दो अरब साठ करोड़ है, जो दुनिया की आबादी का करीब एक तिहाई है. वैश्विक जीडीपी में इसका योगदान करीब 10 फीसदी है. संगठन का सचिवालय मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस में है.

* छह डायलॉग पार्टनर

हिंद महासागर से जुड़ी घटनाओं में पूरी दुनिया की रुचि है. हिंद महासागर के तटवर्ती देश नहीं होने के बावजूद वे इस संगठन से जुड़ने में दिलचस्पी रखते हैं. इसीलिए सदस्य देशों के अलावा इसके छह डायलॉग पार्टनर भी हैंचीन, मिस्र, फ्रांस, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका. इनमें से कई देश सदस्य बनने के भी इच्छुक हैं. इसके अलावा हिमतक्षेस में दो प्रेक्षक हैंइंडियन ओसन रिसर्च ग्रुप और इंडियन ओसन टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन.


* पाकिस्तान
को रखा गया है दूर

पाकिस्तान की कोशिशों और हिंद महासागर के तटवर्ती देश होने के बावजूद उसे इसका सदस्य या डायलॉग पार्टनर नहीं बनाया गया है. ऐसा हिमतक्षेस को द्विपक्षीय की जगह बहुपक्षीय संबंधों का केंद्र बनाने के लिए किया गया है.

* निर्णय के लिए सीओएम

हिमतक्षेस से जुड़े सभी अहम निर्णय काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स (सीओएम) की बैठक में लिये जाते हैं. प्रत्येक वर्ष इस बैठक का आयोजन किया जाता है. पिछले वर्ष नवंबर में सीओएम की 12वीं बैठक गुड़गांव में हुई थी. बैठक में सदस्य देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य बढ़ाने के लिए बिजनेस टू बिजनेस बैठक आयोजित करने पर सहमति हुई थी. अभी भारत सीओएम का अध्यक्ष है.

सीओएम हिमतक्षेस के महासचिव की नियुक्ति तीन वर्ष के लिए करता है जिसे और एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है. सदस्य देशों द्वारा नामित व्यक्तियों में से योग्यता, अनुभव और पात्रता के आधार पर महासचिव की नियुक्ति की जाती है. इसके वर्तमान महासचिव के वी भगीरथ हैं, जो भारत के हैं.

* 1997 में हिमतक्षेस की स्थापना के चार्टर को अपनाया गया था

* 777 बिलियन डॉलर का है हिमतक्षेस का अंतरक्षेत्रीय व्यापार

* 233 बिलियन डॉलर का अंतरक्षेत्रीय व्यापार था वर्ष 1994 में

* 33 फीसदी गैस भंडार मौजूद है हिमतक्षेस में

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