गीता पर विषद व्याख्या के लिए प्रकांड पंडित तुमुल शास्त्रीजी को आमंत्रित किया गया. उन्हें सुनने के लिए पंडाल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. शास्त्रीजी ने व्याख्यान शुरू करने से पहले सामने बैठी लोगों की भीड़ से पूछा, ‘आपमें से गीता का 20वां अध्याय किस-किस ने पढ़ा है.
जिसने पढ़ा है, वे हाथ ऊपर उठायें.’ एक श्रोता को छोड़ कर सभी ने हाथ उठा दिया. शास्त्रीजी ने आयोजक की ओर बड़ी निराशा से देखते हुए कहा- गीता की व्याख्या से पहले मैं सत्य बोलने की व्याख्या करूंगा. लगभग सभी श्रोता सत्य को नकार रहे हैं, क्योंकि गीता में मात्र 18 अध्याय होते हैं.
फिर उन्होंने सोचा-चलो कम-से-कम एक श्रोता तो है, जो सत्य के प्रति निष्ठावान है. वे शाबासी देने के लिए उस श्रोता के पास गये. उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले- तुमने हाथ ऊपर क्यों नहीं उठाया? क्या तुमने गीता का 20वां अध्याय नहीं पढ़ा है?
कुछ घबरा कर उस व्यक्ति ने कहा-गुरुजी, मुङो कम सुनाई देता है. मैं आपका सवाल सुन नहीं पाया था. दरअसल, मैं तो गीता का 20वां अध्याय रोज पढ़ता हूं. शास्त्रीजी ने अपना सिर पकड़ लिया. उनकी आशा की अंतिम किरण भी धूल में मिल गयी थी.
दोस्तों, सत्य आपके भीतर है. अनावश्यक झूठ के कारण आपको शर्मिदगी उठानी पड़ सकती है.
इस कहानी से सीख लेना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कई लोगों की आदत होती है कि वे अनावश्यक रूप से झूठ बोलते हैं. हालांकि, इसका यह मतलब भी नहीं कि आवश्यकता पड़ने पर झूठ बोला जा सकता है. झूठ से जितना ज्यादा बचेंगे, लाइफ उतनी ही अच्छे से चलेगी.
कई लोग झूठ सिर्फ शेखी बघारने के लिए बोलते हैं और यह आदत तभी छोड़ते हैं, जब कभी बुरे फंसते हैं, जिसकी संभावना ज्यादा होती है. ऐसे लोग यही सोचते हैं कि सामनेवाले से झूठ बोल कर वे उसे बेवकूफ बना रहे हैं, जबकि सामनेवाला अगर समझदार निकल जाये, तो लेने के देने पड़ सकते हैं. सवाल उठता है कि फिर झूठ बोलना ही क्यों?
बात पते की..
– सच्चाई को जीवन में शामिल करें. अगर आप सच बोलेंगे, तो लोग आप पर भरोसा करेंगे और सफलता आपके कदम चूमेगी.
– शेखी बघारने के लिए झूठ बिल्कुल न बोलें, क्योंकि अगर सामनेवाला आपसे तेज निकला, तो आपको लेने के देने पड़ सकते हैं.