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बुखारी नहीं बच सकते जवाबदेही से

मसला चाहे जितना भी बेतुका क्यों न हो, चर्चा में बने रहना जामा मसजिद के इमाम अहमद बुखारी की फितरत है. आजकल वे अपने बेटे को नायब इमाम बनाने के फैसले और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत देने तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाने को लेकर खबरों में हैं. इन […]

मसला चाहे जितना भी बेतुका क्यों न हो, चर्चा में बने रहना जामा मसजिद के इमाम अहमद बुखारी की फितरत है. आजकल वे अपने बेटे को नायब इमाम बनाने के फैसले और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत देने तथा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाने को लेकर खबरों में हैं.
इन बातों के मद्देनजर बुखारी के रवैये पर रोशनी डालना जरूरी है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2005 में निर्णय दिया था कि जामा मसजिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और इमाम बुखारी बोर्ड के कर्मचारी मात्र हैं. उस फैसले में उनसे 30 वर्षो की आमदनी का हिसाब भी मांगा गया था. मसजिद के प्रबंधन को लेकर उन पर सवाल उठते रहते हैं.
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को न्यौता नहीं देने का कारण यह बताया है कि देश के मुसलमान मोदी को अपना प्रधानमंत्री नहीं मानते हैं. संवैधानिक कायदे के मुताबिक देश के प्रधानमंत्री बने मोदी समूचे देश के प्रधानमंत्री हैं. चुनाव में मतों की संख्या उम्मीदवारों की जीत और हार तय करती है, लेकिन फैसले के बाद चुना गया प्रतिनिधि सिर्फ अपने समर्थकों का ही नहीं, बल्कि आम जनता का प्रतिनिधित्व करता है. प्रधानमंत्री या सरकार की आलोचना नागरिक का अधिकार है, लेकिन बुखारी द्वारा उनकी वैधता को ही खारिज करना सही नहीं ठहराया जा सकता है.
किसी जमाने में अटल बिहारी वाजपेयी का फैंस क्लब चलानेवाले बुखारी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे देश की सबसे बड़ी मसजिद के इमाम हैं और मुसलिम समुदाय के नेता होने का दावा भी करते हैं. उन्हें किसी भी तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान देने से परहेज करना चाहिए. वे पहले भी कई बार ऐसा कर चुके हैं, जिसकी वजह से पिछले कुछ वर्षो से मुसलिम समुदाय में उनकी विश्वसनीयता काफी कम हुई है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि ऐसे बयानों की आड़ में बुखारी अपनी खोयी जमीन फिर से पाने की जुगत लगा रहे हैं! बेटे को नायब इमाम बनाने के उनके फैसले का विरोध करते हुए उनके भाई यह्या बुखारी ने कहा है कि पूर्व इमाम सैयद अब्दुल्लाह बुखारी ने 2000 में ही कह दिया था कि रिवायत के मुताबिक अहमद बुखारी के बाद उनका सबसे बड़ा बेटा ही इमाम होगा, लेकिन अहमद बुखारी ने ऐसा नहीं किया. बुखारी के लिए इन सवालों से बच पाना आसान नहीं होगा.

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