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महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कही बात, सेना के पास युद्ध के लिए 10 दिनों का भी नहीं है गोला-बारूद

नयी दिल्लीः नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आज अगर भारत के साथ पड़ोसी देशों के साथ लड़ार्इ होने की स्थिति में भारतीय सेना के पास 10 तक युद्ध लड़ने के लिए गोला-बारूद नहीं है. भारतीय सेना इन दिनों गोला-बारूद की भारी कमी से जूझ रही है. संसद में रखी […]

नयी दिल्लीः नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आज अगर भारत के साथ पड़ोसी देशों के साथ लड़ार्इ होने की स्थिति में भारतीय सेना के पास 10 तक युद्ध लड़ने के लिए गोला-बारूद नहीं है. भारतीय सेना इन दिनों गोला-बारूद की भारी कमी से जूझ रही है. संसद में रखी गयी कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि कोई युद्ध छिड़ने की स्थिति में सेना के पास महज 10 दिन के लिए ही पर्याप्त गोला-बारूद है. संसद के समक्ष शुक्रवार को रखी गयी कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि कुल 152 तरह के गोला-बारूद में से महज 20% यानी 31 का ही स्टॉक संतोषजनक पाया गया, जबकि 61 प्रकार के गोला बारूद का स्टॉक चिंताजनक रूप से कम पाया गया.

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यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारतीय सेना के पास कम से कम इतना गोला-बारूद होना चाहिए, जिससे वह 20 दिनों के किसी सघन टकराव की स्थिति से निपट सके. हालांकि, इससे पहले सेना को 40 दिनों का सघन युद्ध लड़ने लायक गोला-बारूद अपने वॉर वेस्टेज रिजर्व (डब्ल्यूडब्ल्यूआर) में रखना होता था, जिसे 1999 में घटा कर 20 दिन कर दिया गया था. ऐसे में कैग की यह रिपोर्ट गोला-बारूद की भारी किल्लत उजागर करती है. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2016 में कुल 152 तरह के गोला-बारूद में केवल 31 ही 40 दिनों के लिए, जबकि 12 प्रकार के गोला-बारूद 30 से 40 दिनों के लिए. वहीं, 26 प्रकार के गोला-बारूद 20 दिनों से थोड़ा ज्यादा वक्त के पर्याप्त पाये गये.

इस रिपोर्ट में साथ ही कहा गया है कि इस बीच विस्फोटक और विध्वंस उपकरणों जैसे कुछ महत्वपूर्ण हथियारों का रिजर्व सुधरा है, लेकिन बेहतर फौजी ताकत को बनाये रखने के लिए जरूरी बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों (एएफवी) और तोपों के लिए गोला-बारूद चिंताजनक रूप से कम पाये गये. हालांकि, गोला-बारूद की यह किल्लत कोई नई नहीं है और पिछली यूपीए सरकार ने इसे ध्यान में रखते हुए 2015 तक गोलाबारूद की कमी को दूर के लिए एक रोडमैड भी बनाया था. कैग की इस रिपोर्ट में पाया गया कि मार्च 2013 में बने रोडमैप के बावजूद इन तीन वर्षों में गोलाबारूद के रिजर्व में कोई खास सुधार नहीं देखा गया.

गोलाबारूद की इस चिंताजनक कमी को दूर करने के लिए सरकार ने हाल ही में सेन्या उपप्रमुख के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिये हैं, ताकि तेजी से गोलाबारूद की खरीदारी की सके. वहीं सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना ने 46 प्रकार के गोला-बारूद, करीब आधा दर्जन प्रकार के माइंस और 10 हथियार प्रणालियों की स्थिति बेहद चिंताजनक पायी गयी है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लंबी खरीद प्रक्रिया से बचते हुए अब इन चीज़ों की तत्काल खरीदारी की जायेगी.

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