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बोडो शांति समझौता 2020, शांति की नयी शुरुआत

भारत सरकार, असम सरकार और एनडीएफबी के सभी गुटों के बीच ऐतिहासिक त्रिपक्षीय समझौते पर सहमति बनी. नये समझौते की शर्तों के अनुसार, बोडोलैंड टेरीटोरियल रीजन यानी बीटीआर को अधिक अधिकार मिल जायेंगे.समझौते के बाद एनडीएफबी के 1550 से अधिक कैडरों ने अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. साथ ही सरकार ने इस इलाके […]

भारत सरकार, असम सरकार और एनडीएफबी के सभी गुटों के बीच ऐतिहासिक त्रिपक्षीय समझौते पर सहमति बनी. नये समझौते की शर्तों के अनुसार, बोडोलैंड टेरीटोरियल रीजन यानी बीटीआर को अधिक अधिकार मिल जायेंगे.समझौते के बाद एनडीएफबी के 1550 से अधिक कैडरों ने अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. साथ ही सरकार ने इस इलाके के विकास के लिए विशेष सहायता राशि की घोषणा भी की है. लेकिन, कुछ गुटों में समझौते को लेकर नाराजगी है. क्या है नया बोडो समझौता व उसकी शर्तें, साथ ही भविष्य के कयासों की जानकारी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ पेज…
केंद्रीय गृह मंत्रालय, असम सरकार और बोडो समूहों के बीच हाल में बोडोलैंड प्रादेशिक स्वायत्त जिला (बीटीएडी) की पुनर्संरचना और नाम बदलने को लेकर एक समझौता हुआ है. वर्तमान में असम के बीटीएडी क्षेत्र के अंतर्गत कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुरी आदि जिले आते हैं.
समझौते के अहम बिंदु
वर्तमान में बोडो बाहुल्य एेसे गांव, जो बीटीएडी से बाहर हैं, उन्हें इस क्षेत्र में शामिल किया जायेगा और गैर-बोडो आबादी वाले क्षेत्र को बाहर किया जायेगा.
समझौते के अनुसार, असम सरकार द्वारा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड (एनडीएफबी) गुट के सदस्यों पर दर्ज गैर-जघन्य अपराधों के मामलों को वापस लिया जायेगा. जघन्य आपराधिक मामलों की असम सरकार द्वारा समीक्षा की जायेगी. बोडो आंदोलन के दौरान के मारे गये सदस्यों के प्रत्येक परिवार को पांच लाख रुपये की सहायता दी जायेगी.
बोडो इलाकों में विकास की विशेष योजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा 1500 करोड़ रुपये का विशेष विकास पैकेज दिया जायेगा.
बीटीएडी में नये इलाकों को शामिल करने और चिह्नित क्षेत्र से बाहर करने का निर्णय करने के लिए एक समिति होगी. इस परिवर्तन के बाद, विधानसभा की वर्तमान 40 सीटें बढ़कर 60 हो जायेंगी.
इस समझौते के क्या फायदे होंगे
इस समझौते पर हस्ताक्षर से 50 साल पुराने बोडो संकट का समाधान हो जायेगा. भारत सरकार और असम सरकार द्वारा एनडीएफबी (पी), एनडीएफबी (आरडी) और एनडीएफबी (एस) के लगभग 1500 कैडर के पुनर्वास की व्यवस्था की जायेगी. उन्हें मुख्य धारा में लाया जायेगा.
इस समझौते के बाद एनडीएफबी गुटों के सदस्य हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे. वे अपने हथियार सरेंडर करेंगे और समझौते के एक महीने के अंदर अपने सशस्त्र गुटों का संचालन बंद कर देंगे.
क्या खत्म हो गयी अलग राज्य की मांग?
दशकों तक चले बोडो सशस्त्र आंदोलन के दौरान 4000 से अधिक लोगों की जानें गयीं. गृहमंत्री ने दावा किया है कि इस समझौते के बाद एनडीएफबी के चारों समूहों ने सशस्त्र विद्रोह को खत्म कर दिया है. एबीएसयू के प्रमुख प्रोमोद बोरो ने समझौते को बड़ी उपलब्धि बताया.
हालांकि, बोरो का कहना है कि अलग राज्य की मांग का मुद्दा स्पेशल कन्वेंशन के बाद तय होगा. एबीएसयू नेता का कहना है कि समझौते में कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया है कि एबीएसयू ने राज्य की मांग को छोड़ दिया है. हालांकि, समझौते में कहा गया है कि बोडो समूहों द्वारा असम राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को जारी रखने में सहमति जाहिर की गयी है. बोडो प्रादेशिक स्वायतत्ता जिला (बीटीएडी) का नाम बदलकर बोडोलैंड टेरेटोरियल रीजन (बीटीआर) कर दिया गया है.
पहले भी हुए समझौते
साल 1993 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) के साथ पहला समझौता हुआ, जिसके बाद एक बोडो स्वायत्त परिषद का गठन किया गया. हालांकि, इसके पास सीमित राजनीतिक शक्ति थी. साल 2003 में कुछ और वित्तीय एवं अन्य शक्तियों के साथ बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) का गठन किया गया. संविधान की छठी अनुसूची में उल्लेखित बीडीएडी समेत अन्य इलाकों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से बाहर रखा गया है. इस कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आनेवाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.
क्या है एनडीएफबी
राजनीतिक आंदोलन के अलावा कई सशस्त्र समूह अलग बोडो राज्य के गठन की मांग करते रहे हैं. अक्तूबर, 1986 में रंजन डायमरी ने एक विशेष समूह बोडो सिक्योरिटी फोर्स (बीडीएसएफ) का गठन किया. बाद में बीडीएसएफ का नाम बदलकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड (एनडीएफबी) कर दिया गया. यह संगठन हमला, हत्या और जबरन वसूली जैसे मामलों में लिप्त रहा है.
क्या है बोडो विवाद
बोडो असम का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. राज्य की कुल आबादी में इस समुदाय का करीब पांच-छह फीसदी हिस्सा है. असम के कई हिस्सों में इस समुदाय का दबदबा रहा है. कई जनजातीय समूह वाले चार जिलों कोकराझार, बक्सा, उदालगुरी और चिरांग जिलों को मिलाकर बोडो टेरिटेरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (बीटीएडी) का गठन किया गया. एक राजनीतिक संगठन प्लेंस ट्राइबल्स काउंसिल ऑफ असम (पीटीसीए) के बैनरतले 1966-67 में पहली बार एक अलग बोडोलैंड राज्य के गठन की मांग उठी. साल 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन (एबीएसयू) की अगुवाई में असम को 50-50 में बांटने की मांग तेज हुई. इस आंदोलन का नेतृत्व एबीएसयू के उपेंद्र नाथ ब्रह्मा द्वारा किया जा रहा था. असम आंदोलन (1979-85) की वजह से अशांति बढ़ी. असमसमझौते में असमी लोगों की सुरक्षा और पहचान को प्रमुखता दी गयी. इससे प्रभावित होकर खुद की पहचान स्थापित करने और सुरक्षा के लिए बोडो समुदाय की मुहिम तेज हुई.
समझौते में शामिल समूह
असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में स्थायी शांति लाने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार ने इसी 27 जनवरी को त्रिपक्षीय समझौता िकया. इस त्रिपक्षीय समझौते पर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड (एनडीएफबी), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किये.
स्थायी शांति का प्रश्न
असम में बोडो समुदाय की आकांक्षाओं को संतुष्ट करने के दो प्रयासों (1993 और 2003) की तुलना में वर्तमान समझौते से अधिक आशाएं हैं. पहले के समझौते से अलग रहे नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड के कुछ बहुत अधिक प्रभावशाली गुट इस समझौते में शामिल हुए हैं.
सभी संबद्ध पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि जो राजनीतिक व्यवस्थाएं हो रही हैं, वे सभी असम राज्य के अंतर्गत स्वायत्तता के दायरे में ही होंगी. समझौते में विस्तारित क्षेत्र का नया नामकरण- बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन- किया गया है, डेढ़ हजार करोड़ रुपये के विकास कोष का प्रावधान है तथा बोडो आबादी के क्षेत्रों से अधिक निकटता का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा उग्रवादियों के साथ नरमी से पेश आने और उन्हें क्षमा करने के साथ बोडो आंदोलन के दौरान मारे गये लोगों के परिवारों को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का भी उल्लेख है. बोडो आंदोलन के दौरान लगभग चार हजार लोगों की जानें गयी थीं.
जानकारों का मानना है कि अपनी विशेषताओं के लिहाज से यह समझौता अगस्त, 2015 में हुए नागा समझौते (जिसके बारे में बहुत अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी है) तथा इस वर्ष 16 जनवरी को हुए ब्रू समुदाय को बसाने की व्यवस्था के बीच है. ब्रू व्यवस्था के तहत 1997 में मिजोरम से विस्थापित हुए 34 हजार ब्रू समुदाय के लोगों को त्रिपुरा में बसाने का निर्णय लिया गया है. कुल मिलाकर, बोडो समझौता बोडो समुदाय के सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है. अब प्रश्न यह है कि क्या यह समझौता उस क्षेत्र में स्थायी शांति व स्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकेगा.
इस समझौते की पहली बड़ी परीक्षा बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के चुनाव में होगी. इसमें समझौते में शामिल गुट अपनी अधिक हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे. इस प्रयास में आपसी टकराव बढ़ने की आशंका आधारहीन नहीं है.
वर्ष 2003 में स्थापित इस काउंसिल में अभी तक बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का वर्चस्व रहा है. इस फ्रंट में बोडो लिबरेशन टाइगर्स नामक पूर्व उग्रवादी संगठन के लड़ाके हैं. आगामी चुनाव में समर्पण किये उग्रवादियों और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के भी भाग लेने की संभावना है. विभिन्न समूहों की इस प्रतिस्पर्द्धा और प्रतिद्वंद्विता से अलग-अलग जनजातियों तथा समुदायों के संबंध प्रभावित हो सकते हैं.
बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन में बोडो जनजाति की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक नहीं है. अनेक पर्यवेक्षक मानते हैं कि बोडो समुदाय के प्रति केंद्र के उदार रवैये से आबादी के अन्य घटकों में असुरक्षा की भावना बढ़ने का अंदेशा है. असम के कोकराझार के सांसद, जो गैर-बोडो समुदाय से हैं, ने केंद्र सरकार से अपील की है कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करे कि बोडो समस्या का समाधान किसी गैर-बोडो समस्या को न जन्म दे दे. यदि प्रस्तावित स्वायत्त क्षेत्र में आबादी के विभिन्न हिस्से बराबरी और सहयोग की भावना से काम करेंगे, तभी इस समझौते का उद्देश्य सफल होगा. वर्चस्व स्थापित करने की होड़ फिर इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है.
बोडो समस्या : एक सदी का सफर
19वींसदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ में, ब्रह्मपुत्र घाटी के बोडो और अन्य मूल समुदायों को तत्कालीन पूर्वी बंगाल और मध्य भारत के छोटा नागपुर क्षेत्र से बड़े पैमाने पर प्रवासन करना पड़ा. इसी समय सामाजिक-धार्मिक नेता गुरुदेव कालीचरण ब्रह्मा ने जातीय और भाषायी पहचान को पुनः प्राप्त करने के लिए बोडो और अन्य मैदानी जनजातियों को लामबंद करना शुरू किया.
1929 में कालीचरण ब्रह्मा के नेतृत्व में साइमन कमीशन को एक ज्ञापन दिया गया, जिसमें ब्रिटिश (भारतीय) सेना में बोडो रेजिमेंट, असम के प्रांतीय परिषद् व स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण और मतदाता सूची और जनगणना में बोडो को अलग से शामिल करने की मांग शामिल थी. इनमें से कई मांगें बाद में भारत सरकार के अधिनियम 1935 के जरिये मान ली गयीं.
1967 में प्लेंस ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (पीटीसीए) और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) की स्थापना हुई और इन्होंने मैदानी इलाके के जनजातीय सूमहों के लिए अलग राज्य ‘उदयांचल’ की मांग की.
1986 में पहला बोडो अलगाववादी गुट बोडोलैंड सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) की स्थापना हुई. इसी वर्ष एबीएसयू के अध्यक्ष उपेंद्र नाथ ब्रह्मा ने अलग बोडोलैंड के लिए आंदोलन शुरू कर दिया.1987 के मार्च में असम को विभाजित कर दो राज्य, बोडो के लिए बोडोलैंड और असम की मांग तेज हो गयी.
1993
के फरवरी में केंद्र सरकार, असम सरकार और एबीएसयू ने एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया. इस समझौते के एक खंड को लागू नहीं किये जाने के पश्चात उग्रवादी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) का गठन हुआ. इसी बीच बीएसएफ ने अपना नाम बदलकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोरोलैंड (एनडीएफबी) रख लिया.
2003
में केंद्र, असम सरकार और बीएलटी के बीच दूसरे त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. इस समझौते के बाद संविधान की छठी अनुसूची के तहत बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) का गठन हुआ. जो क्षेत्र बीटीसी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, उन्हें बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (बीटीएडी) के रूप में जाना जाता है और इसमें चार जिले उदलगुरी, बक्सा, चिरांग और कोकराझार शामिल हैं.
2004
में एनडीएफबी और सरकार के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किये गये. हालांकि, बाद में एनडीएफबी के एक वर्ग ने समझौते को तोड़ दिया और पूरे असम में हमले किये. गोबिंदा बसुमतरी ने एनडीएफबी (पी) का गठन किया, लेिकन बड़ी संख्या में कैडर रंजन डायमरी के मूल संगठन एनडीएफबी के साथ बने रहे. वर्ष 2010 में रंजन डायमरी के गिरफ्तार होने के बाद एनडीएफबी ने युद्धविराम की घोषणा कर दी.
2020
जनवरी में तीसरे बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर के तीन दिनों बाद यानी 30 जनवरी को एनडीएफबी के चारों धड़ों के सभी 1550 कैडरों ने गुवाहाटी में आत्मसमर्पण कर दिया.

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