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विश्व कैंसर दिवस विशेष : इन्‍होंने हौसलों से हासिल की जिंदगी

कैंसर से लड़ना, जीत कर लौटना और नये सिरे से जिंदगी को जीना आसान नहीं. लेकिन वे लड़ीं और लौटीं. उन्होंने अपने मन को मजबूत कर इस बीमारी का सामना किया. अपनों का साथ उनका हौसला बना, दवा और डॉक्टर उनके सबसे बड़े मददगार बने. आगामी 4 फरवरी को दुनिया भर में विश्व कैंसर दिवस […]

कैंसर से लड़ना, जीत कर लौटना और नये सिरे से जिंदगी को जीना आसान नहीं. लेकिन वे लड़ीं और लौटीं. उन्होंने अपने मन को मजबूत कर इस बीमारी का सामना किया. अपनों का साथ उनका हौसला बना, दवा और डॉक्टर उनके सबसे बड़े मददगार बने. आगामी 4 फरवरी को दुनिया भर में विश्व कैंसर दिवस मनाया जायेगा. इस मौके पर कैंसर पर विजय पाकर सामान्य जिंदगी में लौटनेवाली ऐसी ही कुछ महिलाओं की प्ररेणादायक कहानियां…

कैंसर का नाम सुनते ही शरीर में सिहरन होने लगती है. लेकिन, जरा उनके बारे में सोचिए जिन्होंने इस भयावह बीमारी का सामना किया है. क्या बीती होगी उन महिलाओं पर जिनकी हंसती-खेलती जिंदगी को इस जानलेवा बीमारी ने अपनी चपेट में लिया होगा? उनके सपने, उनकी जिंदगी कैसे वापस पटरी पर लौटी होगी, लौटी भी होगी या नहीं? यहां हम आपको ऐसी ही कुछ दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिलाओं के बारे में बता रहे हैं, जो कैंसर को मात देकर सफलतापूर्वक अपने जीवन की दूसरी पारी में आगे बढ़ने को कृतसंकल्प हैं.

दृढ़ इच्छाशक्ति जरूरी

कुलविंदर लांबा तब महज 38 वर्ष थी, जब उन्होंने महसूस किया कि उनके ब्रेस्ट में एक गांठ हो गयी है. जांच में वह गांठ नॉन-कैंसरस पायी गयी. कुलविंदर और उनके परिवार ने चैन की सांस ली. लेकिन कुछ महीने बाद ही उन्होंने अपने ब्रेस्ट में दूसरी गांठ महसूस की. इस बार उन्हें ब्रेस्ट कैंसर था.

दो छोटे बच्चों की मां कुलविंदर कुछ दिनों तक निराशा में डूबी रहीं. लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और अपना ब्रेस्ट हटवाने का फैसला किया. महीनों चली कीमोथेरेपी के बाद आखिरकार उनकी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटी. उनका इलाज आठ साल तक चला और इस दौरान वे एक वाॅलंटियर के रूप में भारतीय कैंसर सोसायटी से जुड़ीं. कुलविंदर कहती है कि कैंसर पर विजय पाने में मजबूत इच्छाशक्ति बहुत जरूरी है. वे जिस विपरित परिस्थिति से गुजरी चुकी हैं उसके बाद वे किसी भी अनहोनी से नहीं डरतीं.

परिवार बना सपोर्ट सिस्टम

सतिंदर कौर को जब पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है, उन्हें अपनी जिंदगी खत्म होती महसूस हुई. उन्होंने खुद को संभाला और तुरंत सर्जरी करवायी. लेकिन कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी के कारण उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ. वे बमुश्किल कुछ खा पातीं. डर के कारण हर कीमोथेरेपी सेशन के पहले उन्हें एंजाइटी अटैक आता.

इस परेशानी के अलावा इलाज का भारी-भरकम खर्च परिवार को वित्तीय संकट में डाल रहा था. लेकिन सतिंदर के पति और बच्चों ने कभी भी इस बात को जाहिर नहीं होने दिया और उनका सपोर्ट सिस्टम बनकर खड़े रहे. अभी कीमोथेरेपी चल ही रही थी कि सतिंदर के पति को हार्ट अटैक आ गया. इस बार संबंधियों ने उनका साथ दिया और धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य हो गया. सतिंदर कहती हैं कि अपने परिवार के कारण ही वे अपने जीवन के इस कठिन दौर से बाहर आ पायीं.

बच्चे बने प्रेरणा

फरीदा रिजवान को जब पता चला कि उन्हें थर्ड स्टेज ब्रेस्ट कैंसर है, उनका बेटा चार वर्ष और बेटी महज 11 महीने की व निश्शक्त थी. पति साथ नहीं दे रहे थे. पिता और बहन पहले से कैंसर से जूझ रहे थे. बेटी का इलाज और परिवार पालने की जिम्मेदारी के साथ संघर्ष कर रही फरीदा ने अपने शुरुआती डर को एक तरफ रख अपने बच्चों के लिए जीने की ठान ली. फरीदा बेंगलुरु के एक अस्पताल की कैंटीन में काम करती थीं. कैंसर होने के बाद उनकी नौकरी चली गयी.

अपने इलाज और बच्चों को पालने के लिए वह गंजे सिर के साथ बीटीएस बसों में सॉफ्ट ट्वॉय बेचने लगीं. कीमो के दौरान एक समय ऐसा भी आया, जब उनका बचना मुश्किल हो गया, लेकिन ब्लड ट्रांसफ्यूजन से उनकी जान बच गयी. फरीदा कहती हैं कि उनके सबसे कठिन दौर में बच्चे उनकी प्रेरणा बने. ठीक होने के बाद फरीदा ने अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और काउंसेलिंग व साइकोथेरेपी में मास्टर डिग्री हासिल की.

‘मैंने अपने जीवन का मोल नहीं समझा था. इसलिए कैंसर एक सबक के रूप में मेरे सामने आया. अब मैं अपने जीवन, परिवार और स्वास्थ्य को पहले से कहीं ज्यादा महत्व देती हूं.’

– मनीषा कोईराला, अभिनेत्री व ओवेरियन कैंसर सर्वाइवर

‘जीवन के एक कठिन पड़ाव से गुजरने के बाद, जिसने कई स्तरों पर मेरी परीक्षा ली, सेट पर लौटना मेरे लिए असली अहसास है. इन सबके बाद अब मेरे पास एक अर्थपूर्ण और अतिरिक्त उद्देश्य है’

– सोनाली बेंद्रे, अभिनेत्री व मेटास्टैटिक

कैंसर सर्वाइवर

‘समय हमारे जीवन के अनमोल पलों का एक माप है. एक कैंसर ग्रेजुएट के रूप में मैं समय की कीमत अब पहले से कहीं अधिक समझती हूं.आज दुनिया में सबसे कीमती चीज समय है.’

– लीजा रे, मॉडल-अभिनेत्री और मल्टीपल

माइलोमा सर्वाइवर

टेक्नो सखी

रखें अपना ख्याल

परिवार व काम के बीच अपनी जरूरतों को नजरअंदाज कर देना महिलाओं के लिए कोई नयी बात नहीं है. इसी के चलते अब ऐसे कई एप तैयार किये जा रहे हैं, जो महिलाओं का ख्याल रखने में उनके मित्र की भूमिका निभा सकते हैं.

पीरियड ट्रैकर एप : कई बार पीरियड की डेट याद रखना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में पीरियड ट्रैकर एप आपकी मुश्किल को आसान बनायेगा. इस एप से आप पीरियड का ट्रैक रख बेफिक्र होकर लाइफ जी सकती है.

ज्ञान ज्योति : मान्यताप्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशा द्वारा बनाया गया यह एप शादीशुदा गांव की महिलाओं को वीडियो के जरिये गर्भनिरोधक ऑप्शंस के बारे में बताता है. ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय द्वारा किये गये एक शोध के अनुसार इस एप ने कुछ ही महीनों में मॉर्डन परिवार नियोजन विधियों का उपयोग करनेवाली महिलाओं की संख्या बढ़ाई है.

हेल्थ साथी : इस एप में महिलाओं और बच्चों के लिए बहुत सारी सर्विस हैं और इसका उद्देश्य पूरे परिवार के लिए एक हेल्दी साथी होना है.

लवडॉक्टर : यह एक वर्चुअल काउंसलिंग प्लेटफॉर्म है, जहां महिलाएं अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में प्रोफेशनल्स से बात कर सकती हैं. महिलाओं के लिए बनायी गयी एक नौकरी पोर्टल साइट शेरोस ने हाल ही में इसका अधिग्रहण किया था.

क्या कहते हैं आंकड़े

70 प्रतिशत से अधिक भारतीय महिलाएं ब्रेस्ट, सर्विकल, ओवेरियन और यूटेराइन कैंसर से पीड़ित होती हैं.

3,71,301 महिलाओं को वर्ष 2018 में कैंसर के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी.

25 प्रतिशत कैंसर पीड़ित भारतीय महिलाओं की मौत के लिए ब्रेस्ट अाैर ओरल कैंसर जिम्मेदार होते हैं .

1,62,468

नये मामले ब्रेस्ट कैंसर के दर्ज किये गये बीते वर्ष देश में, जिसके चलते 87,090 महिलाओं की मृत्यु हो गयी.

नयी खोज

एआई पता लगायेगा ब्रेस्ट कैंसर

गूगल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ऐसा मॉडल तैयार किया है, जो शुरुआती लक्षणों के आधार पर ब्रेस्ट कैंसर का पता लगा सकता है.

यह शोध नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. अपने अध्ययन के दौरान ब्रिटेन और अमेरिका की हजारों महिलाओं का परीक्षण किया गया और एक्स-रे इमेज की समीक्षा की गयी. शोधकर्ताओं ने पाया कि विशेषज्ञ रेडियोग्राफरों की तुलना में उनके एआइ मॉडल ने ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों को आसानी से पहचाना. इतना ही नहीं, इस मॉडल द्वारा गलत पहचान का अनुपात भी कम ही रहा. डॉक्टरों ने जहां 9.4 प्रतिशत मामले में पहचान की गलती की वहीं एआइ मॉडल की जांच के बाद यह आंकड़ा 2.7 फीसदी ही रह गया. ब्रिटेन स्थित गूगल हेल्थ के डोमिनिक किंग के मुताबिक, यह तकनीक विशेषज्ञों को और सक्षम बनाती है, क्योंकि जितनी जल्दी कैंसर की पहचान होती है, मरीज के ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है.

चुनौतियों के बीच तलाशना होता है आगे बढ़ने का रास्ता

पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंदिरा नुई को हमने एक सशक्त महिला के रूप में देखा है. लेकिन, बात जब कॅरियर व पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच तालमेल की आयी, तो एक आम महिला की तरह इंदिरा ने भी खुद को दुविधा में पाया. ऐसा कई बार हुआ जब बच्चों की देखभाल को लेकर वह अपराधबोध से ग्रस्त हुईं. लेकिन सकारात्मकता के साथ उन्होंने आगे का रास्ता तलाशा. इंदिरा कहती हैं कि एक महिला के जीवन में करियर व परिवार दोनों ही जिम्मेदारियां समानांतर चलती हैं.

जब बच्चे होते हैं, उसी समय करियर भी बनाना होता है और जब आप करियर में तरक्की करने लगते हैं, तब बच्चों को भी आपकी जरूरत होती है, क्योंकि वे बड़े हो रहे होते हैं. पति को भी आपके साथ की उम्मीद होती है. यही वह वक्त होता है, जब आपके माता-पिता बूढ़े हो रहे होते हैं, उन्हें भी आपकी देखभाल चाहिए होती है. इन जिम्मेदारियों को संभालना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है.

जब मेरी बेटियां स्कूल में थीं, तब मुझे सप्ताह में एक दिन उनके स्कूल जाना होता था, लेकिन मैं नहीं जा पाती थी. वे मुझसे इस बात की शिकायत करती थीं, तो मुझे बहुत ग्लानि होती थी. मैंने इन शिकायतों को दूर करने का रास्ता निकाला. मैंने स्कूल में फोन करके पूछा कि मेरे जैसी और कितनी मांएं हैं, जो स्कूल एक्टिविटी में शामिल नहीं हो पाती. फिर मैंने बेटियों को समझाया कि मैं अकेली ऐसी मां नहीं हूं. धीरे-धीरे बच्चों को मेरी बात समझ में आने लगी. काम और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच तालमेल बैठाने के लिए आपको हर छोटी बात को मैनेज करना होता है. जब मेरी बेटी तारा छोटी थी, तब मैं कंपनी के सीनियर मैनेजमेंट में थी और काफी व्यस्त रहती थी.

ऐसे में मैंने अपनी सेक्रेटरी से लेकर जूनियर स्टाफ तक को बीच-बीच में फोन पर तारा से बात-चीत करने और गाइड करने की जिम्मेदारी दे रखी थी. अगर मैंने अपने स्टाफ का सहयोग नहीं लिया होता, तो काम के साथ बेटियों की देखभाल नहीं कर पाती. जीवन की तमाम चुनौतियों के बीच हमें आगे बढ़ने का रास्ता खुद ही तलाशना होता है.

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