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भारतीय नौसेना दिवस: 90 मिनट में दहल गया था पाकिस्तान

जमशेदपुर से खास रिपोर्टचार दिसंबर को 1971 को भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू किया था. नौ सेना ने मात्र 90 मिनट में पाकिस्तान के चार जहाज और कराची बंदरगाह का फ्यूल टैंक पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था, जिसमें करीब 500 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे. इस हमले से पूरा […]

जमशेदपुर से खास रिपोर्ट
चार दिसंबर को 1971 को भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू किया था. नौ सेना ने मात्र 90 मिनट में पाकिस्तान के चार जहाज और कराची बंदरगाह का फ्यूल टैंक पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था, जिसमें करीब 500 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे. इस हमले से पूरा पाकिस्तान दहल गया था. उसके बाद से यह दिन नौसेना दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. देश की सुरक्षा में हर वक्त चौकस रहने वाली नौसेना ने वक्त के साथ अपनी क्षमताओं को काफी विकसित किया है. जिससे हमारी भारतीय नौसेना दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाओं में शामिल है. भारतीय नौसेना के पास ना सिर्फ आधुनिक हथियार और युद्धपोत हैं, बल्कि हमारे सैनिकों में वह जज्बा भी है जिसे देखकर कोई भी दुश्मन भारत की तरफ आंख उठाने के पहले कई बार सोचता है. नौसेना के पास बड़ी संख्या में युद्धपोत और अन्य जहाज हैं, जिनमें से अधिकतर स्वदेशी हैं.शीघ्र ही देश में बनी पहली पनडुब्बी आइएनएस कलवरी भी नौसेना में शामिल होनेवाली है. नौसेना दिवस पर संजीव भारद्वाज की रिपोर्ट

भारतीय नौ सेना की शक्ति व सामर्थ्य

नौसेना का नीति वाक्य है शं नो वरुण:. इसका मतलब है कि जल के देवता वरुण हमारे लिए मंगलकारी रहें. आजादी के बाद से नौसेना ने अपनी शक्तियों में लगातार इजाफा किया है. हमारे युद्धपोत और मिसाइलें समुद्र के नीचे, समुद्र के ऊपर और समुद्री सतह पर लक्ष्य भेद कर सकती हैं. न सिर्फ तटों की रक्षा बल्कि नयी तकनीक तैयार करने और आपदा के समय राहत कार्यों में भी नौसेना हमेशा आगे रहती है. तीनों सेनाओं में मेक इन इंडिया का सिद्धांत सबसे पहले नौसेना ने ही शुरू किया. थल सेना व वायु सेना के मुकाबले नौसेना में अधिक स्वदेशी लड़ाकू उपकरण हैं. भारतीय नौसेना आस्ट्रेलिया, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, इंडोनेशिया, म्यांमार, रूस, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका व जापान के साथ युद्धाभ्यास करती है. जापान और अमेरिका के साथ इस साल जुलाई में दक्षिण चीन सागर में किये गये मालाबार युद्धाभ्यास ने चीन की नींद उड़ा दी. यह भारतीय नौसेना की शक्ति का प्रतीक है.

1950 में हुआ भारतीय नौ सेना का नामकरण

1612 में ब्रिटिश सेना ने अपने व्यापार की रक्षा करने के लिए गुजरात में सूरत के पास एक छोटी नौसेना की स्थापना की. इसे ऑनरेबल ईस्ट इंडिया मरीन नाम दिया गया. 1686 में जब अंग्रेजों ने बंबई (अब मुंबई) से व्यापार करना शुरू किया तो सेना को बंबई मरीन नाम दिया गया. 1892 में इसे रॉयल इंडियन मरीन नाम से पुकारा जाने लगा. 26 जनवरी, 1950 को भारत के लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के बाद इसका नाम बदलकर भारतीय नौसेना किया गया. 22 अप्रैल, 1958 को वाइस एडमिरल आर डी कटारी को नौसेना का पहला भारतीय प्रमुख नियुक्त किया गया.

जहाजों का बेड़ा

भारतीय नौसेना ने अपनी स्थापना से अब तक खुद को सभी दिशाओं में विस्तार किया है. द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में नौसेना के पास महज आठ युद्धपोत थे. आज नौसेना के पास लड़ाकू विमान ले जाने वाला युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य है. 11 विध्वंसक, 14 फ्रिगेट, 24 लड़ाकू जलपोत, 29 पहरा देने वाले जहाज, दो परमाणु पनडुब्बियों सहित 13 अन्य पनडुब्बियों और अन्य कई जलयानों की बड़ी फौज है.

-भारतीय तट की लंबाई-7,517 किमी, नौसेना में सक्रिय कर्मी- 67,109, युद्धपोतों की संख्या-135

पाक के बोटों को विमल ओझा की टीम ने खदेड़ा
विमल ओझा
नौ सेना में 1988 में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर योगदान दिया

आ दित्यपुर सहारा गार्डेन में रहनेवाले विमल अाेझा ने नाै सेना में 1988 में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर याेगदान दिया. 20 साल की सेवा अवधि में देश के सभी युद्धपाेत आइएनएस दीपक, आइएनएस विक्रांत, आइएनएस कृष्णा आैर आइएनएस गाेदावरी में रहकर देश की सेवा करने का माैका मिला. 1999 का वाक्या उन्हें कभी नहीं भूलता है. अपने आइएनएस कृष्णा जहाज की कुछ आवश्यक रिपेयरिंग के लिए वे अपनी टीम के साथ मुंबई आये हुए थे. एक जहाज रिपेयर काे तीन-चार माह का वक्त लगता है. उन्हें वरीय अधिकारियाें का निर्देश अाया कि जितनी जल्दी हाे सके, जहाज काे रिपेयर करें. बाकी बचा हुआ काम समुद्र में तैनाती के दाैरान ही करें. उन्हाेंने 10-15 दिनाें के जहाज की मरम्मत का सिर्फ जरूरी काम कराया, इसके बाद उन्हें मूवमेंट का अॉर्डर मिल गया. जहाज लेकर वे लाेग सीधे गुजरात में कच्छ के समुद्र में तैनात हाे गये. आइएनएस कृष्णा इंजीनियिरंग सेवा देनेवाला जहाज है, लेकिन जब युद्ध की बात आती है ताे फिर किसी भी सैनिका-जहाज का किसी भी रूप में उपयाेग संभव है. पाकिस्तान की तरफ से कई छाेटी-छाेटी बोट के सहारे समुद्र में भारतीय सीमा की आेर मूवमेंट की काेशिश की गयी. जिसे उन्हाेंने बखूबी खदेड़ने का काम किया. ऐसी शिप स्पाइ का काम करती है आैर सामनेवाले काे उलझा कर दूसरी तरफ से नापाक हरकत की काेशिश करती हैं. मैकेनिकल इंजीनियर विमल आेझा ने बताया कि युद्ध की स्थिति या फिर हाई अलर्ट की स्थिति में लगातार दुश्मन की हर गतिविधि पर नजर रखना नेवी सैनिकाें के लिए बड़ी चुनाैती का काम हाेता है. समुद्र में सामने से कम नीचे आैर उपर से अधिक खतरा मंडरता है. इस दाैरान यदि जहाज में काेई खराबी आती है ताे उसे समुद्र के बीच में ही दुरुस्त करना अपने आप में चुनाैती भरा काम है. इसके लिए पहले से ही काफी प्रशिक्षण दिया जाता है. किसी भी खराबी काे चार घंटे के अंदर ठीक करना हाेता है. अधिकांश खराबियां कंडेसर, बॉयलर में ही आती हैं. एक घटना में तेल निकालने के दाैरान उनके दाे सैनिकाें काे गंभीर रूप से चाेटे भी आ गयी थी.

पाकिस्तान को दिया करारा जवाब
वरुण कुमार
प्रदेश सचिव पूर्व सैनिक सेवा परिषद

दुनिया के सबसे अनोखे युद्दों में से एक भारत पाकितान का 1971 का युद्ध कई मायनों में ऐतिहासिक और भौगोलिक साक्ष्यों का गवाह बना. सिर्फ 93,000 पाकिसतानियों को घुटनों के बल आत्मसमर्पण ही नहीं करना पड़ा, बल्कि एक नये देश बांग्लादेश का उदय दुनिया के मानचित्र पर भी हुआ. नेवी के रणनीतिकारों द्वारा लिये गये सटीक और विश्वननीय निर्णय ने तीन दिसंबर की रात जब आपरेशन ट्राइडेंट और फिर 8 दिसंबर को अॉपरेशन पायथोन को समुद्र की लहरों के बीच वास्तविकता में उतारा गया तो पाकिस्तानियों के बीच हड़कंप मच गया. जी हां, एडमिरल एसएम नंदा और उनकी टीम के अहम और तत्कालीन फ्लीट अॉपरेशन अफसर हिरानंदनी के निर्णय को स्वरूप देने का जिम्मा मिला स्ट्राइक ग्रुप के कोर कमांडर बबरु भान यादव को दिया गया. ऐसे गौरव पल को अंजाम देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ भारतीय नौ सैनिक जहाज विनाश निपात और निर्घट को जबकि किलतान और किच्चल पनडुब्बी को इस मिशन में 10.30 बजे रात को पाकिस्तान की सबसे महत्वपूर्ण मानी जानीवाली आर्थिक राजधानी कराची को नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी मिली. 259 नॉटिकल मील दूर कराची को बर्बादी का पहला प्रहार का जिम्मा निपात को मिला. 10.30 बजे जबर्दस्त मिसाइल प्रहार से पाकिस्तानी शाहजहां समंदर की गर्त में समाने लगा. हाहाकार मच गया. पाकिस्तानी नेवी के मुख्यालय में. रात 11.20 बजे पाकिस्तान के मुहाफिज को बर्बाद किया भारतीय जहाज वीर से निकली मिसाइल के अचूक निशाने ने. इस तरह पाकिस्तान तबाही के कगार पर पहुंच गया. पाकिस्तान के तीन जहाज डूबा दिये गये आैर कई अन्य काे क्षति पहुंचायी गयी. कराची बंदरगाह का तेल भंडार धू-धू कर जल उठा और मिशन ट्राइडेंट कामयाब हो गया और यह कामयाबी सिर्फ 90 मिनट में मिली. इतिहास के पन्नों में नौ सैनिक द्वारा किये गये इस शौर्यपूर्ण कार्य को 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाने लगा.

कारगिल युद्ध के दौरान परिजनों से भी बात करने की नहीं थी अनुमति
राजेश पांडेय
नेवी में पेटी ऑफिसर के रूप में योगदान दिया

मानगाे आशियाना निवासी राजेश पांडेय ने भारतीय नाै सेना में 1999 में याेगदान दिया था. पेटी अॉफिसर रहे राजेश पांडेय की तैनाती कराची के पास संभावित युद्ध क्षेत्र में कर दी गयी थी. कारगिल युद्ध के दाैरान वे हाई अलर्ट पर थे. मिशन की जानकारी किसी काे नहीं देना, यहां तक की अपनी मूवमेंट के बारे में परिवार काे भी बताने पर मनाही थी. परिवार के लाेगाें के साथ बातचीत नहीं कर सकते थे. कराची क्षेत्र की सीमा पर घेराबंदी के बाद उन्हें गुजरात के कच्छ लाैटना हाेता था. इसी क्रम में एक बार पाकिस्तान पेट्राेलिंग जहाज ने उनके जहाज काे घेर लिया था. उस वक्त जहाज पर वे अपने 350 से अधिक सैनिकाें के साथ माैजूद थे. इसकी सूचना तुरंत वरीय अधिकारियाें ने पास आउट की. जहाज पर तैनात 4.5 इंच की ताेपगन काे लाेड कर वे पाेजिशन पर आ गये. इसके बाद सभी ने पाेजिशन ले ली, सिर्फ इंतजार था हमला के आदेश का. लगातार 48 घंटे तक सभी लाेग डटे रहे.दाेनाें देशाें के बीच वार्ता के बाद समुद्री एरिया में युद्ध की स्थिति टल गयी, जिसके बाद इस अॉपरेशन के लिए सभी ें काे विजय चक्र से सम्मानित किया गया.

सिद्धनाथ का पाकिस्तानी जहाज से हाे गया था आमना-सामना
सिद्धनाथ सिंह
नेवी में 1994 में मुंबई में योगदान दिया

बाराद्वारी निवासी भारतीय नाै सेना के जवान सिद्धनाथ सिंह ने 1994 में मुंबई में याेगदान दिया. उन्हें शक्ति टैंकर पर तैनाती मिली. इस पर चार हजार आैर एयरक्रॉफ्ट चलते हैं. उन्हें मूवमेंट का अॉर्डर मिला. इसके बाद वे लाेग चल पड़े. कुछ दूर आगे जाने पर उनका टावर कम्यूनिकेशन सिस्टम पूरी तरह से फेल हाे गया. जब तक वे कुछ साेच पाते उन्हें जानकारी मिल गयी कि वे पाकिस्तानी सीमा के पास हैं आैर दुश्मन के जहाज ने अपनी रेंज में ले लिया है. 1998 की यह घटना उन्हें हर वक्त याद रहती है. पाकिस्तानी जहाज से अनाउंस किया जा रहा था कि उन्हें घेर लिया गया है. हमारे जहाज का काेई भी सिग्नल पास नहीं हाे पा रहा था. लगभग तीन-चार घंटे बाद भारतीय नाै सेना का राजपूत फाइटर जहाज वहां पहुंच गया. राजपूत हाई स्पीड जहाज है. उस पर मिसाइल तैनात रहते हैं. उसने पाकिस्तानी जहाज काे पांच मिनट में पीछे हटने की चेतावनी दी. पाकिस्तानी फाैज की संख्या कम थी. माैका पाकर शक्ति जहाज काे इंटरनेशनल सी में लेकर कैप्टन लाैट आया.

पाकिस्तान से जंग की तमन्ना आज भी दिल में

योगेश्वर नंद सिंह
नेवी में पेटी ऑफिसर मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर योगदान दिया

खड़ंगाझाड़ राधिका नगर में रहनेवाले याेगेश्वर नंद सिंह ने 2002 में नेवी में पेटी अॉफिसर मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर याेगदान दिया. इसके बाद आेड़िशा के चिलका बेस कैंप में प्रशिक्षण के बाद आइएनएस शिवाजी पुणे के प्रशिक्षण केंद्र में भेज दिया गया. वहां से उनकी पहली पाेस्टिंग मझगांव पाेस्ट मुंबई में हुई. उनकी तमन्ना थल सेना में जाने की थी. जल सेना में रहते हुए भी उन्हाेंने स्पेशल फाेर्सेस मेरिन कमांडाें की ट्रेनिंग ली, किसी कारणवश उसमें उनका सलेक्शन नहीं हाे पाया ताे उन्हाेंने मरीन नेवल डाइवर का प्रशिक्षण हासिल किया. उनकी ट्रेनिंग काेच्चिन में हुई. जिसके बाद वे फिर मुंबई मझगांव पाेस्ट निरुपक शिप में तैनात कर दिये गये. सेवा कार्य के दाैरान देश-विदेश के कई भागाें में जाने का अवसर नेवी अॉफिसर याेगेश्वर काे हासिल हुआ. सेना एक ऐसा अंग है, जिसे किसी भी काम में लगाया दिया जाये ताे उसकी सफलता की गारंटी शत-प्रतिशत बढ़ जाती है. चाहे वह युद्ध का मैदान हाे या फिर मानवता का काम. ऐसे ही काम में उनके आइएनएस निरुपक काे मेडिकल शिप बनाकर इंडाेनेशिया में आये सुनामी में लगाया गया. परेशान आैर समुद्र में फंसे लाेगाें काे बड़े जहाज से छाेटे लाइफ वाेट-जेमिनी में उतर कर बचाया. कई लाेगाें का अॉपरेशन जहाज पर ही उनकी टीम के साथ डॉक्टराें ने किया. याेगेश्वर सिंह दक्ष नेवल डाइवर थे, इसलिए उनका इस्तेमाल केंद्रीय शिप में सर्वे कार्याें के लिए अधिक किया जाता था. मालदीप आैर आस-पास के क्षेत्राें में समुद्र के अंदर जाकर जानकारियां एकत्र करना उनका अहम काम हाेता है. 2009 में उन्हाेंने काफी अहम जानकारियां माले के आस-पास से एकत्र की. उन्हाेंने कहा कि 1971 की जंग में नेवी का इस्तेमाल हुआ था. उनकी तमन्ना थी कि पाकिस्तान के साथ सीधी जंग का वे हिस्सा बने, इसीलिए उन्हाेंने मरीन कमांडाें का प्रशिक्षण लेना चाहा, लेकिन माैका नहीं मिला. फाैज में याेगदान देनेवाली की हार्दिक इच्छा हाेती है कि वह अपना बलिदान युद्ध भूमि पर ही दे. अभी भी उन्हें कॉलिंग पीरियड में रखा गया है. सीधी लड़ाई में ताे नहीं, सपोर्ट सर्विस में काम करेंगे. इसलिए वे अपने आप काे हमेशा फिट टू फाइट की स्थिति रखते हैं. झारखंड सरकार, जिला प्रशासन के साथ-साथ शहर के लाेगाें काे भी यदि उनकी जरूरत पड़ेगी ताे वे इसके लिए तैयार हैं. उनकी तमन्ना है कि पाकिस्तान के चार टुकड़े हाे. उन्हें पुकारा जायेगा ताे वे बिना देर किये चल पड़ेंगे.

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