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वायुमंडल में बढ़ रहा प्रदूषण का प्रभाव जहरीली होती जा रही प्राणवायु, ये है विश्व के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर

वायुमंडल में मौजूद वायु हमारे लिए प्राणवायु है. इसके बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है, लेकिन मनुष्यों ने प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन किया है कि प्राणवायु अब जहरीली हो चली है और प्राण लेने की वजह बनने लगी है.आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण का शिकार है और भारत इस मामले […]

वायुमंडल में मौजूद वायु हमारे लिए प्राणवायु है. इसके बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है, लेकिन मनुष्यों ने प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन किया है कि प्राणवायु अब जहरीली हो चली है और प्राण लेने की वजह बनने लगी है.आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण का शिकार है और भारत इस मामले में अग्रणी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की हवा को दुनिया की सबसे जहरीली हवा बताया है. बढ़ते वायु प्रदूषण से लोगों को सांस की बीमारियां हो रही हैं और कैंसर का खतरा भी मंडरा रहा है.

आजकल, सर्दियों की आहट सुनायी दे रही है, दूसरी तरफ स्मॉग (धुंध) से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. फिर भी, तमाम बड़े खतरों के बावजूद हमारे बीच वायु प्रदूषण को लेकर जागरूकता नहीं दिखायी नहीं देती. हालिया रिपोर्ट, वायु प्रदूषण के कारण व खतरों, रोकथाम एवं उपायों पर केंद्रित है आज का इन िदनों…

दुनू रॉय

निदेशक, हजार्ड सेंटर

सरकारें पाल रही हैं प्रदूषण के अजगर

दुनिया के हर देश की सरकारें ढोंगी हैं. ये सरकारें प्रदूषण को लेकर ढोंग रचती रहती हैं, ताकि इसके असल कारणों पर लोगों का ध्यान ही न जाये. सरकारें प्रदूषण की बड़ी वजहाें को नजरअंदाज करती हैं. साल में एक बार आनेवाली दिवाली के पटाखों पर शोर मचाया जाता है, लेकिन सालों-साल प्रदूषण के बड़े-बड़े अजगरों को पाला-पोसा जाता है.

सरकार के शब्दों का मायाजाल है कि एक दिन के शोर में बाकी 364 दिन कोई शोर न मचाये. सरकारें इन अजगरों को पालती हैं. और जो लोग इन अजगरों से सचेत कराते हैं, उनकी कोई सुनता ही नहीं है. परिवहन, निर्माण और ऊर्जा के लिए ईंधनों (कोयला, तेल, लकड़ी) का जलना, ये ऐसे स्रोत हैं, जिनसे प्रदूषण के अजगर जन्म लेते हैं. और ये तीनों चीजें हमारे शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं, चूंकि इन्हें ही विकास का पहिया मान लिया गया है. पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारी नीतियां इन्हीं के ईद-गिर्द घूमती हैं और सरकारें ग्रोथ का रोना रोती रहती हैं.

पहले यह माना जाता था कि सरकार जनता के लिए है, लेकिन सरकार ने 1990 में ही अपने हाथ खड़े कर दिये थे कि वह जनता की तरफ से नहीं, बल्कि पूंजी निवेशकों की तरफ से समाज को चलायेंगी. इसका अर्थ यही है कि सरकार पूंजी की रक्षा करेगी, जनता की नहीं. इसलिए सरकारें चाहती हैं कि शहर का उत्पादन बढ़े और सरकारें एवं कंपनियां मुनाफा कमाएं. हमें यह समझना चाहिए कि हमें विकास की जरूरत तो है, लेकिन प्रदूषण के अजगरों को पालकर नहीं, क्योंकि ऐसा करना हमारे साथ ही आगे आनेवाली कई पीढ़ियों तक के लिए बहुत घातक है.

सड़कों पर गाड़ियाें की संख्या जितनी बढ़ेगी, प्रदूषण में बढ़ोतरी भी उतनी ही होती जायेगी. समस्या यह है कि लोगों को यह अजगर दिखायी नहीं देगा, क्योंकि आज हर आदमी अपनी निजी गाड़ी में चलना चाहता है.

दरअसल, ज्यादा गाड़ियाें की संख्या का अर्थ है तेल की खपत का बढ़ना. तेल के जलने से उसका धुआं पेड़-पौधों के कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की ताकत कम कर देता है, जिससे पेड़ों से ऑक्सीजन उत्सर्जन की क्षमता पर असर पड़ता है. यहां तक कि सड़क पर गाड़ियों के पहियों के घिसने से एक प्रकार का महीन धूल बनने लगता है, जो सांस के लिए बहुत घातक है. यह प्रदूषण गंभीर बीमारियां देकर तिल-तिल करके मारता रहता है. इसलिए दुनियाभर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात की जाती है.

पिछले कई वर्षों से देश-दुनिया में जहां कहीं भी पर्यावरण-प्रदूषण को लेकर सभाएं हुईं, वहां इस बात का जिक्र होता रहा है कि पर्यावरण और विकास के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है. दरअसल, हमारे नीति-निर्धारक शहर को ही विकास का इंजन मानते हैं और कहते हैं कि शहरों के विस्तार से ही टिकाऊ विकास हो सकता है. लेकिन, असली बात यह है कि ये लोग पर्यावरण का शोषण और दोहन करके ही विकास को टिकाऊ बनाना चाहते हैं.

शब्दों का ऐसा मायाजाल बुनकर हमारे नीति-निर्धारकों ने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को गंभीरतम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. टिकाऊ पर्यावरण को लेकर भारत के पुराने पर्यावरण एक्ट में बहुत महत्वपूर्ण बात यह थी कि फैक्टरी खोलने, उद्योग लगाने, बांध बनाने, सड़कें बनाने या पुल बनाने में स्थानीय जनता की सहमति होनी चाहिए और उनका विस्थापन नहीं होना चाहिए.

लेकिन, इस एक्ट में संशोधन करके कहा गया कि पर्यावरण अब विकास में बाधक नहीं है. उनके टिकाऊ विकास में पर्यावरण बाधा ही न बन पाये, इसलिए सरकार ने एक्ट में बदलाव कर दिया. यही वजह है कि देशभर में तमाम प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन हो रहा है और प्रदूषण व जल-संकट की स्थितियां पैदा हो रही हैं.

देश-दुनिया में सारी बड़ी कंपनियां निर्माण क्षेत्र में हैं और निर्माण कार्य को ही विकास का द्योतक मान लिया जाता है. और यह द्योतक प्रदूषण बढ़ाने के लिए बड़ा जिम्मेदार है. बड़ी कंपनियां चाहे जितना प्रदूषण पैदा कर लें, सरकारें उन पर लगाम लगाने से डरती हैं.

प्रदूषण से लोग दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती जा रही है, फिर भी अगर हम नहीं चेत रहे हैं, तो यह हमारी जान-बूझकर की जानेवाली गलती है. प्रदूषण खत्म करने का कोई तकनीकी उपाय नहीं है. किसी भी देश में तकनीक का उपयोग करने के लिए सबसे पहले राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए. नदियों, तालाबों, बावड़ियों का इतना बुरा हाल है कि उनके पानी का इस्तेमाल घातक है.

सरकार चाहे, तो इसका हल निकाल सकती है और प्रदूषण को खत्म तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक कम जरूर कर सकती है. लेकिन, राजनीति करने के सिवा सरकार कुछ भी नहीं कर रही है. सरकार सिर्फ चिंता करने का नाटक करती है, उसकी मंशा में प्रदूषण से मुक्ति नहीं है. इसका बेहतरीन उदाहरण गंगा है. नमामि गंगे के जरिये गंगा साफ करने की चिंता को सरकार ने व्यक्त किया, लेकिन आजतक क्या गंगा

साफ हुई?(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

जहर का बढ़ता कहर

ब्लूमबर्ग की वैश्विक वायु प्रदूषण पर हाल में जारी रिपोर्ट भारत को चिंतित हाेने की वजह देती है. इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 10 भारतीय हैं. यहां हवा में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर का स्तर बेहद घातक है.

कानपुर प्रदूषण में शीर्ष पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जिन 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गयी है, उनमें कानपुर शीर्ष पर है. यहां प्रति क्यूबिक मीटर 173 माइक्रोग्राम पीएम2.5 कंसन्ट्रेशन दर्ज हुआ है.

विश्व के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर

(वर्ष 2016 का वैश्विक औसत)

स्थान पीएम 2.5

1. कानपुर 173

2. फरीदाबाद 172

3. वाराणसी 151

4. गया 149

5. पटना 144

6. दिल्ली 143

7. लखनऊ 138

8. आगरा 131

9. मुजफ्फरपुर 120

10. श्रीनगर, गुड़गांव 113

स्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन

कारण क्या हैं?

प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का हमने अंधाधुंध दोहन किया है. देश की राजधानी दिल्ली में, केवल निजी चारपहिया गाड़ियों की संख्या लगभग एक करोड़ पहुंच चुकी है. यह सारे वाहन तेल पीते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोकार्बन जैसी विषैली गैसें वायु में उगलते हैं. इसके अतिरिक्त, वाहनों की लंबी फेहरिस्त है, मोटर, ट्रक, बस, विमान, ट्रैक्टर, स्वचालित वाहन एवं मशीनों आदि में डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल इस्तेमाल होता है और इनके जलने से हवा भारी मात्रा में प्रदूषित होती है. खासकर शहरों में, यह वायु प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है.

औद्योगीकरण ने वायु प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभायी है. कारखानों की चिमनियां जो धुआं छोड़ती हैं, उसमें सीसा, पारा, जिंक, कॉपर, कैडमियम, आर्सेनिक एवं एस्बेस्टस के कण होते हैं. इसके अलावा, इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन-फ्लोराइड शामिल हैं, जो प्राणियों को नुकसान पहुंचाती हैं. अन्य कारणों में पेट्रोलियम परिशोधनशालाएं वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं, जिनमें सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रमुख गैसें हैं, जो बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण फैलाती हैं.

ताप विद्युतगृहों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से जो धुआं पैदा होता है, उनके सूक्ष्मकणों में हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी विषैली गैसें होती हैं और प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होती हैं.

लौह अयस्क तथा कोयले आदि की खदानों की धूल से भी बड़े पैमाने पर प्रदूषण होता है तथा वायु दूषित होती है.

70 लाख मौत प्रतिवर्ष

10 में से नौ लोग विश्वभर में प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं.70 लाख (7 मिलियन) लोगों की मृत्यु घरेलू और बाहरी वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष हो जाती है.42 लाख (4.2 मिलियन) लोग अकेले मारे गये थे अपने आसपास के वायु प्रदूषण से, जबकि वैसे ईंधन जो प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, पर भोजन पकाने व तकनीक आधारित वायु प्रदूषण से 38 लाख (3.8 मिलियन) लोग मारे गये थे वर्ष 2016 में वैश्विक स्तर पर.

90 प्रतिशत से ज्यादा वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में निम्न और मध्य आयवर्ग वाले देश, जिनमें एशिया और अफ्रीका जैसे देश प्रमुख हैं, के लोग शामिल हैं. इसके बाद पूर्वी भूमध्य क्षेत्र, यूरोप और अमेरिका के निम्न और मध्य आयवर्ग वाले देशों का स्थान है.स्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन

वायु प्रदूषण से 30 प्रतिशत भारतीयों की समयपूर्व मृत्यु

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की एक रिपोर्ट की मानें तो, भारत में होनेवाली समयपूर्व मृत्यु के 30 प्रतिशत मामलों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है.

क्या होते हैं पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)

पार्टिकुलेट मैटर, जिसे पार्टिकल पॉल्यूशन भी कहते हैं, बेहद छोटे-छोटे कण व तरल बूंदों का सम्मिश्रण होते हैं. नाइट्रेट व सल्फेट जैसे एसिड, कार्बनिक रसायन, धातु, धूल कण, पराग कण आदि मिलकर इन कणों का निर्माण करते हैं. इन मैटरों की हवा में जरूरत से ज्यादा उपस्थिति का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है.

अगर ये मैटर 10 माइक्रोमीटर व्यास यानी डायमीटर या उससे छोटे आकार के होते हैं तो ये हमारे गले व नाक के द्वारा हमारे फेफड़ों तक पहुुंच जाते हैं. एक बार सांस के साथ इन्हें भीतर ले लेने पर हमारे हृदय और फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचता है. पार्टिकुलेट मैटर को मुख्य तौर पर दो भागों में बांटा गया है. इनहेलेबल कोर्स पार्टिकल्स व फाइन पार्टिकल्स.

इनहेलेबल कोर्स पार्टिकल्स

ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर से बड़े व 10 माइक्रोमीटर से छोटे व्यास के होते हैं. ये पार्टिकल सड़क मार्गों व धूल भरे उद्योगों में पाये जाते हैं.

फाइन पार्टिकल्स

धुएं और धुंध में पाये जाने वाले ये पार्टिकल 2.5 माइक्रोमीटर वउससे छोटे व्यास के होते हैं. जंगल की अाग या ऊर्जा संयंत्रों, उद्योगों और ऑटोमोबाइल से उत्सर्जित होनेवाले गैस ही फाइन पार्टिकल्स का निर्माण करते हैं.

पैदा हो रहे अनेक खतरे सांस लेने में परेशानी

यह देखने में आया है कि वायु प्रदूषण के कारण श्वसन प्रणाली में दिक्कत आती है. वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइआॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि गैसें सांस लेने के साथ हमारे फेफड़ों में पहुंचती हैं और नुकसान पहुंचाती हैं. जिससे, श्वसन प्रणाली से जुड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं. इसके अंतर्गत, उल्टी, सिर दर्द, आँखों में जलन, बेचैनी के लक्षण दिखायी देते हैं.

कैंसर और दिल की बीमारी

वायु में मौजूद विषैली गैसों के कारण कैंसर का खतरा होता है और दिल की बीमारी होने का डर भी बना रहता है. प्रदूषण के कारण वायुमंडल में उपस्थित हानिकारक रासायनिक गैसें ओजोन मंडल से रियेक्ट करके उसकी मात्रा को घटाने का काम करती हैं. इसलिए,ओजोन मंडल की कमजोरी के कारण त्वचा कैंसर आदि का खतरा मंडराता है.

प्राणवायु की कमी

वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडल में आक्सीजन के स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है. यह धरती पर रहने वाले जीवों के लिए घातक स्थिति है. मनुष्यों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से बढ़ते वायु प्रदूषण का दुष्परिणाम बाकी जीव भी झेल रहे हैं.

मृदा प्रदूषण

सड़क पर दौड़ते वाहनों व फैक्टरियों से निकलने वाले धुएं में सल्फर डाइआॅक्साइड मौजूद होता है. वातावरण में आने के बाद यह सल्फाइड और सल्फ्यूरिक एसिड में बदलकर वायु में बूदों के रूप में तब्दील हो जाता है. बारिश होने की दशा में यह पानी के साथ धरती पर गिरता है. इसके बाद जमीन में एसिड मिलने से मिट्टी की उर्वरता घटने लगती है.

ऐतिहासिक स्मारकों को खतरा

प्राचीन ऐतिहासिक इमारतें वायु प्रदूषण के कारण क्षय का सामना कर रही हैं. इसे समझने के लिए ताजमहल को देखा जा सकता है. मथुरा में स्थापित तेल शोधक कारखाने के कारण ताजमहल क्षय का सामना कर रहा है.

नियंत्रण के आवश्यक उपाय

हमें वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए.पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना चाहिए और निजी वाहनों की बढ़ती संख्या को काबू में लाना चाहिए.

कारखानों, फैक्ट्रियों की चिमनियों की ऊंचाई ज्यादा ऊंची रखनी चाहिए, ताकि वातावरण से विषैली गैसें दूर रहें. इसके अतिरिक्त चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग भी शुरू करना चाहिए.मोटरकारों और स्वचालित वाहनों की समय-समय पर ट्यूनिंग होनी चाहिए, अधजला धुआं वातावरण में न आये.

कारखानों, फैक्ट्रियों, उद्योगों को हमेशा शहरों एवं गांवों से एक निश्चित दूरी के बाहर ही स्थापित होने देना चाहिए, जिससे रहवासियों पर असर न पड़े. झारखंड का जादूगोड़ा इसका उदाहरण है, जहां न्यूक्लियर प्लांट की स्थापना के बाद इलाके के लोगों पर बहुत हानियां पहुंची हैं और जादूगोड़ा को ‘न्यूक्लियर कब्रगाह’ कहा जाता है.

सरकारों को अधिक धुआं देने वाले वाहनों पर बिना देर किये रोक लगानी चाहिए.

भारत को अब जनसंख्या वृद्धि रोकने की दिशा में काम करना चाहिए, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नियंत्रित किया जा सके.

हमारी रोजमर्रा की धूम्रपान जैसी आदतों से भी वायु प्रदूषण फैलता है. इसलिए वायु प्रदूषण के रोकथाम के लिए सबसे पहले वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक होना आवश्यक है.

ओजोन परत में जारी प्रदूषण के कारण क्षरण

बैंगनी व नीले रंगों वाली जगहों पर ओजोन की मात्रा सबसे कम है और पीले रंग वाली जगह पर ओजोन की मात्रा तुलनात्मक रूप से अधिक है

ओजोन घनत्व के मापन के लिए डॉबसन इकाई का प्रयोग किया जाता है. एक डॉबसन उन ओजोन अणुओं की संख्या है जो 0℃ और 1 एटीएम (वायुमण्डलीय दबाव) दाब पर 0.01 मिलीमीटर पतली परत बनाते हैं.

पार्टिकुलेट मैटर10 में दिल्ली पहले स्थान पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक स्तर पर 10 बड़े शहरों के हवा की सेहत जानने पर जो नतीजा सामने आया वह भारत के लिए बेहद चिंताजनक है. हवाओं में पार्टिकुलेट मैटर10 (पीए10) की उपस्थिति के मामले में विश्व भर में दिल्ली पहले स्थान पर है. दिल्ली के बाद वाराणसी, रियाद, सउदी अरब, अली सुबह अल-सलेम, कुवैत, आगरा, पटियाला, अल-शुवैक, कुवैत, बगदाद, इराक, श्रीनगर, भारत और दम्मम, सउदी अरब का स्थान है.

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