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रांची : ऐसे बने महिलाओं की आशा, दिखा रहे अंधेरे में उम्मीद की किरण

II पूजा सिंह II रांची : लालपुर के रहनेवाले अजय कुमार जायसवाल महिलाओं के हित के लिए 1987 से काम कर रहे हैं. उन्होंने गांव की महिलाओं के ऊपर होनेवाले अत्याचार को देख कर उनके हित के बारे में सोचा़ एक दिन उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लिया […]

II पूजा सिंह II
रांची : लालपुर के रहनेवाले अजय कुमार जायसवाल महिलाओं के हित के लिए 1987 से काम कर रहे हैं. उन्होंने गांव की महिलाओं के ऊपर होनेवाले अत्याचार को देख कर उनके हित के बारे में सोचा़ एक दिन उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लिया और गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया़
इनके जागरूकता अभियान से वर्तमान में हजारों महिलाएं जुड़ी हैं और कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ रही हैं. अजय जायसवाल ने एलएलबी कर महिलाओं के लीगल राइट के लिए भी काम किया. ग्रामीण महिलाओं के केस को अपने जेब खर्च के पैसे पर लड़ते रहे. इन्होंने महिलाओं के हित के लिए आशा नामक संस्था बनायी, जिसमें महिलाओं को जागरूक करने के साथ कई जानकारियां देकर उनके हुनर को निखारा और उन्हें एक नयी उम्मीद की किरण दिखायी़
मानव तस्करी रोकने के लिए प्रयास
अजय जायसवाल ने बीए करने के बाद गांव की दलित महिलाओं के साथ होनेवाले अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया. गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया. इनके साथ धीरे-धीरे हजारों महिलाएं खुल कर आगे आने लगीं. इस अभियान में कई लोग जुट गये़
इन्होंने अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कोलकाता से नाटक की ट्रेनिंग ली, ताकि गांव-गांव जाकर नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा सके. वर्तमान में खूंटी, रांची, टाटा, लोहरदगा सहित अन्य ग्रामीण इलाकों के 4000 लड़कियों के बीच ह्यूमन ट्रैफिकिंग व अन्य हिंसा को रोकने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं.
खूंटी के कर्रा ब्लॉक और नामकुम में इन लड़कियों को आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कैपिसिटी बिल्डिंग सहित अन्य चीजें सीखायी जा रही हैं.
प्रशिक्षण के साथ इनमें से 200 मेंटर तैयार किया जा रहा है, जो अन्य इलाकों में जाकर प्रशिक्षण दे सके. वहीं, 3000 से अधिक महिलाओं को लीगल राइट की जानकारी दी जा रही है. 900 महिलाओं को किसान के रूप में कैसे जीवन संवारा जा सकता है, इसकी तकनीक बतायी जा रही है.
1992 से आने लगा बदलाव
वह बताते हैं कि गांव में नाटक दिखा कर छुआछूत, भेदभाव और डायन प्रथा को दूर करने के लिए लोगों को जागरूक किया करते थे़ धीरे-धीरे इस अभियान से कई लोग जुटते चले गये़ 1992 में गांव में बदलाव दिखाई देने लगा़ इसके बाद डायन प्रथा, सेकेंड मैरेज, बाल विवाह, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के केस हल किया़ 2000 में एलएलबी की पढ़ाई कर उनका केस लड़ते, ताकि उन्हें इंसाफ मिल सके.
आशा संस्था के माध्यम से लोगों को कर रहे हैं जागरूक
रांची से लेकर सरायकेला तक सेंटर
आशा संस्था के फाउंडर सचिव अजय बताते हैं कि डायन कुप्रथा, घरेलू हिंसा, सांगा विवाह से पीड़ित कई महिलाओं के रहने के लिए रांची के खूंटी में नारी निकेतन सेंटर होम नामक संस्था चला रहे हैं. यहां रहनेवाली लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई, कंप्यूटर आदि का प्रशिक्षण देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं.
हिंसा की शिकार महिलाओं में 60 महिलाओं का चयन कर हर साल उन्हें चार दिनों के वर्कशॉप में कई जानकारी देते हैं. नामकोम ब्लॉक के भूसूर गांव और सरायकेला की डुमरा पंचायत में इन्होंने ज्योतिका होम की स्थापना की है, जिसमें ईंट भट्ठे में काम करनेवाले मजदूरों के बच्चों रेस्क्यू कर रखा जाता है और उन्हें शिक्षा से जोड़ा जाता है.

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