देश लोकतंत्र के 16वें महापर्व यानी 16वें लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा है. ऐसे वक्त में आजादी के बाद से अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों के जरिये देश की राजनीति में आये उतार-चढ़ावों को याद करना सामयिक होगा. क्या रही इससे पहले के चुनावों की खास बातें, बता रहा है आज का नॉलेज.
1951
प्रथम लोकसभा
26 जनवरी, 1950 को संवैधानिक मूल्यों के पालन के संकल्प के साथ ही देश में लोकसभा चुनाव की कवायद शुरू हुई. देश पहली बार आम चुनाव से रूबरू हो रहा था. चुनाव आयोग के सामने एक ऐसे देश में चुनाव संपन्न कराने की चुनौतियां थीं, जिसका अशिक्षा का स्तर काफी ऊंचा था. आयोग ने चुनाव के लिए 25 अक्तूबर, 1951 और 21 फरवरी, 1952 का दिन निर्धारित किया. हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा कोई अन्य दल व्यापक स्तर पर सर्वमान्य नहीं था. इसका प्रभाव चुनाव परिणामों पर भी दिखा. कुल 489 सीटों पर हुए मतदान में कांग्रेस 364 सीटों पर जीती. जेपी और आचार्य नरेंद्रदेव की सोशलिस्ट पार्टी कुल 12 सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा पायी. जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी के हिस्से में नौ सीटें आयीं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) केवल दो सीटें हासिल कर पायी. चुनाव में जवाहर लाल नेहरू खासे सक्रिय रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 300 चुनावी बैठकों को संबोधित किया. पूर्ण बहुमत के साथ नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की देश की पहली चुनी सरकार बनी और इसने अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया.
कुल सीटें: 489
– कांग्रेस: 364
– जनसंघ: 03
– सोशलिस्ट पार्टी: 12
– किसान मजदूर पार्टी: 09
– प्रमुख राजनीतिक चेहरे जवाहर लाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जयप्रकाश नारायण, डॉ भीमराव आंबेडकर.
1957
द्वितीय लोकसभा
पहली लोकसभा ने पांच साल का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया. हालांकि, इस दौरान देश के सामने गरीबी, शिक्षा और बेरोजगारी सबसे बड़ी चुनौती बनी रही. दूसरा लोकसभा चुनाव 1957 में हुआ. इस चुनाव में भी कांग्रेस का दबदबा कायम रहा. इस बार भी छोटे दलों का राष्ट्रीय स्तर पर कोई खास प्रभाव नहीं रहा. एक बार फिर से केंद्र में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ा, लेकिन उसके खाते में महज 19 सीटें ही आयीं. हालांकि, वाम दलों का कुछ क्षेत्रों में प्रभाव दिखा और इन्हें कुल 33 सीटें मिलीं. खासकर दक्षिण के राज्यों में वामदलों का विशेष प्रभाव देखने को मिला. वहीं आंबेडकर का अखिल भारतीय अनुसूचित जाति मोरचा और जनसंघ जनता पर प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं हो पाये. डॉ आंबेडकर की पार्टी को कुल छह सीटें ही मिली. 494 सीटों के लिए हुए मतदान में कांग्रेस 371 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और एक बार फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली.
कुल सीटें: 494
-कांग्रेस: 371
-जनसंघ: 04
-सोशलिस्ट पार्टी: 19
-वाम दल: 33
-राजनीतिक चेहरे: पं. जवाहर लाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जेपी, भीवराव आंबेडकर.
1962
तृतीय लोकसभा
जवाहर लाल नेहरू के 10 साल के शासनकाल में देश ने कई तरह के बदलावों को देखा. पंचवर्षीय योजनाओं के तहत प्राकृतिक संसाधनों से विकास का नया खाका खीचने की रूपरेखा तैयार की गयी. 494 सीटों के लिए हुए मतदान में कांग्रेस एक बार फिर पूर्ण बहुमत में आयी. हालांकि, पहले दोनों आम चुनावों की तुलना में उसे मिली सीटों की संख्या में कुछ कमी आयी. कांग्रेस को कुल 361 सीटें मिलीं. इस चुनाव में राम मनोहर लोहिया को प्रजा सोशलिस्ट पार्टी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा. उनके समर्थकों ने नयी सोशलिस्ट पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अप्रैल, 1962 में तीसरी सरकार ने शपथग्रहण किया. देश ने धीरे-धीरे उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी व संचार तकनीकी के क्षेत्र में विकास के पथ पर चलना शुरू ही किया था कि इसी वर्ष चीन के साथ युद्ध शुरू हो गया. एक बार फिर देश के सामने कई संकट आ खड़े हुए. इसके कुछ महीनों बाद पंडित नेहरू का स्वास्थ्य खराब हो गया. मई, 1964 में हृदयगति रुकने से उनका देहांत हो गया. नये नेता चुने जाने तक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया. बाद में लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री चुने गये.
कुल सीटें: 494
-कांग्रेस: 361
-जनसंघ: 14
-सोशलिस्ट पार्टी: 19
-वाम दल: 21
-राजनीतिक चेहरे: जवाहर लाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री.
1967
चौथी लोकसभा
चौथा लोकसभा चुनाव पिछले चुनावों के मुकाबले कई मामलों में ज्यादा निर्णायक साबित हुआ. चौथी लोकसभा में भी कांग्रेस बहुमत में आयी और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में नयी सरकार बनी. लेकिन अन्य पार्टियों ने भी इस चुनाव में ठीक-ठाक उपस्थिति दर्ज करायी. खास बात यह रही कि दक्षिणपंथी दलों का तेजी से उभार हुआ. स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ को कुल 79 सीटें मिलीं. वहीं, वामपंथी दलों का भी अन्य चुनावों के मुकाबले प्रदर्शन बेहतर रहा. वामदलों और सोशलिस्ट पार्टी को कुल 83 सीटें मिलीं. महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि क्षेत्रीय पार्टियों का भी अच्छा खासा प्रभाव रहा. डीएमके और अकाली दल को 28 सीटें मिलीं. वहीं प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को फिर से नुकसान हुआ. इस चुनाव में जॉर्ज फर्नाडीस और अन्य प्रमुख नेताओं ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बना ली. दक्षिण के राज्यों में एक बार फिर से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा. खासकर मद्रास में, जहां पर डीएमके अन्य पार्टियों पर भारी पड़ी. इंदिरा गांधी का कई बड़े नेताओं से मतभेद उभर कर सामने आया.
कुल सीटें: 520
– कांग्रेस: 283
– जनसंघ: 35
– सोशलिस्ट पार्टी: 37
– वाम दल: 46
-प्रमुख राजनीतिक चेहरे : इंदिरा गांधी, जॉर्ज फर्नाडीस, जयप्रकाश नरायण, मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह
1971
पांचवीं लोकसभा
पांचवां आम चुनाव मार्च, 1971 में हुआ. कुल 518 लोकसभा सीटों के लिए देश की जनता ने अपने प्रतिनिधियों को चुना. इस चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस की धमाकेदार जीत हुई. हालांकि चौथी लोकसभा के अंत तक कांग्रेस में मतभेद खुल कर सामने आ गये थे. नतीजन कांग्रेस दो धड़ों में बंट गयी. 31 सांसदों ने अपनी नयी पार्टी कांग्रेस (ओ) बना ली. आम चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाली कांग्रेस को कुल 352 सीटें मिली. भारतीय जनसंघ के खाते में 22 सीटें आयी. वामदलों ने कुल 53 सीटों पर जीत दर्ज की और सोशलिस्ट पार्टी को केवल पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा. इंदिरा गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ नारा प्रभावी रहा. इंदिरा गांधी के लोकसभा क्षेत्र में धांधली के आरोपों पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इसे निरस्त कर दिया. इस बीच इंदिरा गांधी ने कठिन फैसला लेते हुए देश में इमरजेंसी घोषित कर दी. लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन और विपक्षी दलों पर कड़े प्रतिबंधों का असर अगले लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस दोनों को भुगतना पड़ा. हालात सामान्य होने पर 1977 में फिर आम चुनाव हुए.
कुल सीटें: 518
– कांग्रेस : 352
– जनसंघ : 22
– सोशलिस्ट पार्टी : 5
– वाम दल: 53
– राजनीतिक चेहरे: इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई आदि.
1977
छठी लोकसभा
इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपी गयी इमरजेंसी का व्यापक असर छठे आम चुनावों में साफ दिखा. छठे लोकसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा. देश में मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. पूरा कांग्रेस विरोधी खेमा एकजुट हो गया. पहली बार सोशलिस्ट पार्टी और दक्षिणपंथी पार्टियां एक मंच पर आ गयीं. देशभर में कुल 542 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को महज 154 सीटें ही मिली. जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं. वामपंथी दलों के हिस्से में कुल 41 सीटें आयी. इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों का कुछ खास प्रभाव नहीं दिखा. क्षेत्रीय पार्टियों को सिर्फ 29 सीटें मिलीं. इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गयी इमरजेंसी के दौरान नागरिक अधिकारों और मीडिया को प्रतिबंधित कर दिया गया था. देश के कोने-कोने में इंदिरा गांधी के इस फैसले का पुरजोर विरोध हुआ. अंतत: 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ मतदान किया. कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी समेत कांग्रेस के अनेक दिग्गज चुनाव हार गये. इस चुनाव में जनता पार्टी की लहर दिखी और उसे बड़ी सफलता मिलीं, लेकिन पार्टी अपने विरोधाभासों के चलते जल्द ही बिखर गयी.
कुल सीटें: 542
-कांग्रेस : 154
-जनता पार्टी +: 295
-वाम दल: 41
-राजनीतिक चेहरे: इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह.
1980
सातवीं लोकसभा
1977 में सोशलिस्ट, दक्षिणपंथी भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के गठजोड़ से बनी जनता पार्टी की सरकार अस्थायी साबित हुई. 1979 में राजनारायण, चौधरी चरण सिंह और जॉर्ज फर्नाडीस के गुट ने अपने पुराने सहयोगी जनसंघ समíथत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पाबंदी लगा दी. मोरारजी देसाई ने राजनीति को अलविदा कह दिया. जनता पार्टी के कुछ सहयोगियों को साथ मिला कर चौधरी चरण सिंह जून, 1979 में प्रधानमंत्री बने. हालांकि, खींचतान इस बीच भी जारी रही. जनवरी, 1980 में आम चुनावों की घोषणा करनी पड़ी. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने धमाकेदार वापसी की और अन्य पार्टियों का लगभग सफाया हो गया. 353 सीटों के साथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. जनता पार्टी और सहयोगी दलों के हिस्से में महज 31 सीटें ही आयीं, जबकि चरण सिंह की जनता पार्टी (सेकुलर) 41 सीटें जीतने में सफल रही. पहली बार बनी साझा सरकार पर लोगों ने अलग-अलग मत व्यक्त किये. एक तो कांग्रेस के बिना भी देश में सरकार बन सकती है, दूसरा गठजोड़ की राजनीति सफल नहीं रही.
कुल सीटें: 542
-कांग्रेस: 353
-जनता पार्टी (से): 41
-राजनीतिक चेहरे: इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई.
1984
आठवीं लोकसभा
यह चुनाव कई मामलों में महत्वपूर्ण था. बेहद विषम परिस्थितियों में यह चुनाव संपन्न हुआ. वर्ष 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी. कांग्रेस की कमान राजीव गांधी को संभालनी पड़ी. राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को अन्य चुनावों के मुकाबले कहीं ज्यादा सीटें मिली. अन्य दलों की स्थिति पहले से ज्यादा खराब हो गयी. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी एनटी रामाराव की तेलुगुदेशम पार्टी थी, जिसे 30 सीटें मिली थी. देश बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा था. असम और पंजाब में चुनाव टाल दिया गया. आठवें आम चुनाव में कांग्रेस को कुल 404 सीटें मिली. भारतीय जनसंघ से पैदा हुई भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीटें मिलीं. कांग्रेस को कुल मत प्रतिशत का तकरीबन आधा मत (49.01 प्रतिशत) मिला. कुछ विपक्षी पार्टियों के नेताओं का स्पष्ट कहना था कि कांग्रेस की इस जीत में इंदिरा के प्रति जनता की सहानुभूति शामिल है. चुनाव बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. एक युवा प्रधानमंत्री के तौर पर राजीव गांधी ने कुछ अहम फैसले भी लिये.
कुल सीटें: 514
-कांग्रेस: 404
– भाजपा : 02
-वाम दल : 34
-टीडीपी : 30
-प्रमुख राजनीतिक चेहरे: राजीव गांधी, एनटी रामाराव.
1989
नौवीं लोकसभा
बोफोर्स घोटाला, पंजाब में आतंकवाद और एलटीटीइ का बेकाबू होना कांग्रेस के गले की फांस बने. 1989 में नौवें आम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली. इस चुनाव में सोशलिस्ट फिर जनता दल के रूप में एकजुट हुए. वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल के हिस्से 143 सीटें आयीं. वामदलों और भाजपा के बाहर से समर्थन पर अल्पमत सरकार बनी. पर, यह सरकार एक साल भी नहीं चल सकी. चंद्रशेखर अपने गुट के साथ सरकार से अलग हो गये और उन्होंने कांग्रेस से बाहर से समर्थन लेकर सरकार बना ली. इस चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के चलते सरकार चलाना मुश्किल हो रहा था. भाजपा के पास 85 सीटें थीं. परिस्थितियां प्रतिकूल होती जा रही थीं. बोफोर्स मुद्दे पर कांग्रेस की किरकिरी हो चुकी थी. 11वें प्रधानमंत्री के रूप में बागडोर संभालनेवाले चंद्रशेखर का भी कार्यकाल ज्यादा दिन नहीं चल सका. आखिर 6 मार्च, 1991 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 1991 में दसवें आम चुनावों की घोषणा कर दी गयी.
कुल सीटें: 529
-कांग्रेस: 197
– भाजपा : 85
– जनता दल : 143
-राजनीतिक चेहरे: वीपी सिंह, राजीव गांधी, एलके आडवाणी, चंद्रशेखर.
1991
10वीं लोकसभा
दसवें आम चुनावों में भी किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका. आखिर नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन अल्पमत में होने के बावजूद नरसिम्हा राव सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया. इस चुनाव में देश में ध्रुवीकरण की राजनीति का उदय हुआ. पूरे चुनाव के दौरान मंदिर और मंडल का मुद्दा छाया रहा. मंडल कमीशन की रिपोर्ट को वीपी सिंह सरकार ने लागू कर दिया था, जिसके तहत अन्य पिछड़े वर्गो के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गयी. नतीजन देशभर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गये. दूसरा मुद्दा था, राम मंदिर और बाबरी मसजिद का, जिसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में शामिल कर लिया था. अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने से देश के कई स्थानों पर दंगे-फसाद हुए. 20 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद देश की राजनीति ने नयी करवट ली. इस चुनाव में कांग्रेस को 232 सीटें मिली. भारतीय जनता पार्टी को इस चुनाव में खासा लाभ मिला, कुल 120 सीटें लेकर भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
कुल सीटें: 521
-कांग्रेस: 232
-भाजपा : 120
-वाम दल : 56
-राजनीतिक चेहरे: पीवी नरसिम्हा राव, लालकृष्ण आडवाणी, वीपी सिंह.
1996
11वीं लोकसभा
11वें लोकसभा चुनाव के परिणाम भी त्रिशंकु रहे. 1998 में दोबारा चुनाव होने से पहले दो साल में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे. 11वें लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. भाजपा को कुल 161 सीटें मिली और कांग्रेस के खाते में 141 सीटें ही आयी. भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार 13 दिन ही चल सकी. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाने से मना कर दिया. आखिर जून, 1996 में कांग्रेस से बाहर से समर्थन लेकर एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी. हालांकि, कुछ ही महीनों बाद इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने. गुजराल प्रधानमंत्री बननेवाले पहले राज्यसभा सांसद थे. इस बीच बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम चारा घोटाला में आने के बाद मामले की सीबीआइ जांच शुरू हो गयी. लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय जनता दल नाम से नयी पार्टी बना ली. क्षेत्रीय पार्टियों की खींचतान से सरकार फिर से गिर गयी. इसके बाद 1998 में 12वें लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी गयी.
कुल सीटें: 543
-कांग्रेस: 140
-भाजपा : 161
-वाम दल : 52
-राजनीतिक चेहरे: अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल.
1998
12वीं लोकसभा
12वें आम चुनाव में भाजपा एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भाजपा को कुल 181 सीटें ंिमली, लेकिन वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. चुनाव परिणामों के बाद राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय दलों की धमक बढ़ गयी. लेकिन क्षेत्रीय दलों को गंठबंधन के लिए राजी कर पाना चुनौती भरा काम था. अटल बिहारी वाजयेपी के नेतृत्व में 13 पार्टियों के समर्थन से केंद्र में सरकार बनी. अब तक बनी सरकारों के मुकाबले इस सरकार में सबसे ज्यादा छोटी-बड़ी पार्टियां एक मंच पर आयी थीं. यह प्रयोग ज्यादा दिन सफल नहीं हो पाया. 13 महीनों के भीतर एआइएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गयी. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय थी. कांग्रेस के पास केवल 141 सीटें ही थी. लिहाजा एक ही विकल्प बचा था और वह था अगले आम चुनाव का. एक साल के भीतर ही आम चुनावों की घोषणा हो गयी.
कुल सीटें: 543
-कांग्रेस: 141
– भाजपा : 181
– वाम दल : 48
– राजनीतिक चेहरे: अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी.
1999
13वीं लोकसभा
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को एक सीट का लाभ हुआ. भाजपा की सीटें 181 से बढ़ कर 182 हो गयी. वहीं क्षेत्रीय पार्टियों के हिस्से में 162 सीटें आयीं. कांग्रेस की स्थिति ज्यादा खराब हो गयी. उसे महज 114 सीटें ही मिली. एक और बात स्पष्ट हो गयी कि किसी एक पार्टी के लिए सरकार बना पाना मुश्किल है. गंठबंधन ही सरकार बनाने का एकमात्र विकल्प बचा. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (एनडीए) की केंद्र में सरकार बनी. पहली बार गठबंधन की सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से कुछ बड़े नेताओं का पार्टी से मोहभंग होने लगा. हालांकि, कांग्रेस ने चुनाव परिणामों की बड़ी संजीदगी से समीक्षा की और नये सिरे से पार्टी को मजबूत करने के लिए सोनिया गांधी के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने तैयारी शुरू कर दी. केंद्र में एनडीए सरकार ने 20 पार्टियों के साथ अपना कार्यकाल पूरा किया.
कुल सीटें: 543
-कांग्रेस: 114
– भाजपा : 182
– वाम दल : 42
– राजनीतिक चेहरे: अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी.
2004
14वीं लोकसभा
14वें लोकसभा के दौरान सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी मेहनत रंग लायी. 14वें आम चुनावों में भाजपा को काफी नुकसान हुआ. भाजपा की सीटें 182 से घट कर 138 पर सिमट गयी. वहीं कांग्रेस की सीटें 114 से बढ़कर 145 हो गयी. हालांकि, कांग्रेस भी अकेले सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं थी. लिहाजा गंठबंधन का ही विकल्प बचा था. समय से कुछ महीनों पहले ही चुनाव कराने का भाजपा का दांव उलटा पड़ गया. ‘इंडिया शाइनिंग’ के सपनों के साथ चुनावी मैदान में उतरी भाजपा धमाकेदार वापसी के लिए आश्वस्त थी, लेकिन सब उलटा हो गया. इस बीच ओपिनियन पोल भी भाजपा के जीत का जोर-शोर से दावा कर रहे थे. वोटरों के फैसले ने सारे दावों को झुठला दिया. कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन (यूपीए) बना. यूपीए को बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और वामदलों का भी बाहर से समर्थन मिला. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की अटकलों के बीच मनमोहन सिंह के नाम पर सभी दलों की सहमति बनी. भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के सूत्रधार के रूप में जाने जानेवाले मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. इससे पहले मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव सरकार में वित्तमंत्री भी रह चुके थे.
कुल सीटें: 543
-कांग्रेस: 145
– भाजपा : 138
– वाम दल : 59
– राजनीतिक चेहरे: एलके आडवाणी, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह.
2009
15वीं लोकसभा
15वें लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. यह चुनाव 16 अप्रैल से 13 मई, 2009 तक पांच चरणों में संपन्न हुआ. 2004 में बनी यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे वामदलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया. भारत-अमेरिका न्यूक्लियर समझौता का विरोध कर रहे वामदल यूपीए से अलग हो गये. हालांकि इसका चुनावों में कोई खास असर नहीं पड़ा और यूपीए दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहा. इस बार फिर से कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. कांग्रेस को कुल 206 सीटें मिली, जबकि भाजपा महज 116 सीटों पर ही सिमट गयी. मनमोहन सिंह ने लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. पं जवाहर लाल नेहरू के बाद मनमोहन सिंह लगातार अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने वाले प्रधानमंत्री बने. एक बार फिर बसपा, समाजवादी पार्टी, जनता दल (सेकुलर) और राष्ट्रीय जनता दल ने यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया. दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह सरकार को पहले से ज्यादा चुनौतियां का सामना करना पड़ा. खासकर तेजी से बढ़ी महंगाई, और लगातार सामने आये भ्रष्टाचार के मामले मनमोहन सरकार के लिए बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आये, लेकिन सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही है.
कुल सीटें: 543
– कांग्रेस: 206
– भाजपा : 116
– वाम दल : 24
– राजनीतिक चेहरे: एलके आडवाणी, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह.