लखनऊ : हाल ही में लखनऊ में एक आशिकमिजाज मामा ने भांजी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. भांजी ने न कहा, तो उसने उस पर तेजाब फेंक दिया. हमलावर फरार है और लड़की अस्पताल में है. वाकई सारी उम्र तिल-तिल कर मारनेवाला यह हादसा, जिस किसी के भी साथ होता है, वह हंसी भूल जाता है, रंग भूल जाता है. लेकिन, कुछ ऐसी भी जिंदादिल बेटियां हैं, जिन्होंने इस जख्म के बाद भी हंसना जारी रखा.
वक्त का पहिया आगे बढ़ा तो हिम्मत को भी पंख लगे, जिन्होंने जिंदगी के बुरे वक्त के आगे हार नहीं मानी. कोई अपने न्याय की लड़ाई बदस्तूर लड़ रही है, तो कोई शादी के बाद पति का सहारा बनी. कोई अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है. एसिड अटैक की शिकार बेटियों की जिंदादिली को सलाम करती पेश है यह रिपोर्ट-
कुछ भी हो, मैं मुकदमा वापस नहीं लूंगी
आलम बाग में जून 2012 को सोनिया (नाम बदला हुआ) पर शोहदे ने तेजाब डाल दिया. तेजाब डालने के बाद सोनिया पर हर तरफ से मुसीबत आयी. पुलिस से लेकर रिश्तेदारों तक ने सहयोग नहीं किया. वहीं कुछ महीनों में ही जमानत पर जेल से बाहर आते ही शोहदे हसनैन उर्फफहद ने उसके परिवार को धमकाना शुरू कर दिया. दबाव में परिवार को अपना घर बदलना पड़ा. इस सबके बावजूद सोनिया टूटी नहीं. अपना दोबारा बयान दर्ज कराने के लिए कोर्ट में अर्जी दे रखा है.
आसान नहीं राह
सोनिया कहती है दोषी खुलेआम धमकी दे रहा था. पुलिस में शिकायत के बाद भी कुछ नहीं हुआ. अब तो जिंदगी का एक ही मकसद है कि उसे कड़ी सजा मिले. इसी वजह से अब तक सर्जरी भी नहीं करायी. कहती है कुछ भी हो जाये, मुकदमा तो हरगिज वापस नहीं लूंगी.
जिंदगी के झंझावात से उबर पति का बनी सहारा
1998 में एक सिरफिरे ने संगीता (नाम बदला हुआ) पर तेजाब फेंक दिया. इससे संगीता का चेहरा बुरी तरह से झुलस गया. उस वक्त संगीता की उम्र लगभग 17 साल की थी. घटना तब हुई जब वह कॉलेज जा रही थी. शोहदे के प्रपोज को ठुकराया तो वह आपा खो बैठा. तब केजीएमसी में शुरु आती इलाज के बाद सिप्स हॉस्पिटल में कई बार सर्जरी हुई. हर तीन से छह महीने में सर्जरी का दौर चलता रहता. संगीता का इलाज कर रहे प्लास्टिक सर्जन डॉ आरके मिश्र बताते हैं कि पिछले साल अचानक मिठाई लेकर वह आयी. चहकते हुए बताया कि उसकी शादी हो गयी. लड़का एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करता है. हालांकि उसके हाथ में थोड़ी समस्या है. संगीता आज उस सदमे से बाहर आकर नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरू कर चुकी है. अब वह उस घटना को भी दोबारा अपने जेहन में लाना नहीं चाहती.
आसान नहीं राह
15 साल के अंतराल में संगीता की करीब 25 बार सर्जरी हुई. हालांकि, डॉक्टर पूरी तरह पुराना चेहरा नहीं दे पाये. यह 15 साल उसके लिए नरक से बदतर थे. लेकिन वह इस सब पर आंसू बहाने के बजाय हौसले के सहारे आगे बढ़ी. आज वह अपने पति का सहारा बनी हुई है.
पति ने डाला तेजाब, आज दूसरों का है सहारा
निठल्ला पति न तो कुछ करता था न ही पत्नी मीना का काम करना उसे गवारा था. फिर भी सामाजिक सरोकारों के प्रति जज्बे के कारण वह ‘सामाख्या’ से जुड़ी. मीना की जिंदगी किसी तरह चल रही थी कि पति को टीबी ने जकड़ लिया. घर चलाना मुश्किल हुआ तो उसने चौक की गलियों से निकल काम करना शुरू कर दिया. इससे भन्नाया पति एक दिन एसिड लेकर घर आया और मीना के चेहरे पर उड़ेल दिया. 75 फीसदी चेहरा झुलस जाने के बावजूद वह अकेली ही अस्पताल पहुंची. तीन महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा. मीना 2004 की उस घटना को याद कर बताती है कि लगातार सर्जरी के कारण दो साल अपने तीन बच्चों से दूर रही. कानून ने तो नहीं भगवान ने जरूर पति को दंड दिया. अब वह इस दुनिया में ही नहीं है. आज मीना उन महिलाओं के लिए एक आस बनी हैं जो किसी कारणों से जेल पहुंच गयीं. ऐसी महिलाओं को वह विधिक सहायता दिलाती हैं. कहती हैं, 17 महिलाओं को अब तक तक कानूनी मदद दिलाकर जेल से बाहर निकाल चुकी हूं.
आसान नहीं रही राह
सारी परेशानियों के बाद भी मीना अपने तीनों बच्चों को तालीम दिलाने के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं. आज वह पूरे लखनऊ में चेहरे से नहीं अपने काम के लिए पहचानी जाती हैं.