न्यूयार्क : अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने आतंकवाद को हराने के लिए पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद की ‘शरणस्थलियों’ को खत्म करने की मांग उठाते हुए कहा कि उग्रवादियों से निपटने में पाकिस्तान की इच्छाशक्ति कम होने की वजह ‘भारत का खौफ’, उसका सैन्य एवं असैन्य तनाव और पड़ोसियों के साथ विश्वास की कमी है. अफगान विदेश मंत्री सलाहुद्दीन रब्बानी से जब पाकिस्तान को उग्रवादी समूहों से निपटने की प्रेरणा देने वाली चीज और तालिबान एवं अन्य आतंकी समूहों से निपटने में उसकी ‘इच्छाशक्ति की कमी’ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान इस तरह का बर्ताव इसलिए करता है क्योंकि उसे भारत का खौफ है. उनके बीच सैन्य और असैन्य तनाव है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच विश्वास का अभाव है.’
कल विदेशी संबंध परिषद में एक वार्ता में हिस्सा लेते हुए रब्बानी ने कहा कि इन तीन कारणों में से अफगानिस्तान और पाकिस्तान विश्वास की कमी के मुद्दे पर काम कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय एकजुटता सरकार के गठन के बाद हमने पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने के लिए अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ कोशिश की और हमने संबंधों का एक नया अध्याय शुरू करने की कोशिश की. पाकिस्तानी नेताओं में भारत के खौफ और सैन्य एवं असैन्य तनाव के मामले को हल करने के लिए उन्हें (पाकिस्तान) काम करना है.’ उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को नहीं लगता कि हिंसा और आतंक जल्द ही खत्म होगा क्योंकि ‘तालिबान और उसके सहयोगी समूह पाकिस्तान में मौजूद तत्वों से मिलने वाले साजो सामान, आर्थिक सहयोग एवं मिलने वाली सामग्री पर फलते-फूलते हैं.’
अच्छे और बुरे आतंकवाद में कोई फर्क नहीं, आतंकवाद केवल आतंकवाद है
काबुल यह लगातार कहता आया है कि आतंकवाद को अफगानिस्तान या कहीं और तब तक नहीं हराया जा सकेगा, ‘जब तक अच्छे एवं बुरे आतंकियों के बीच अंतर करना जारी रहेगा’ और आतंकियों की शरणस्थलियों की समस्या को नहीं सुलझाया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘चूंकि आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी है, हमने हमारे खिलाफ हथियार उठाकर खड़े उन तत्वों के साथ शांति और मैत्री के अवसर का द्वार बंद नहीं किया है, जो हिंसा छोडने के लिए तैयार हैं. फिर भी हम यह जानते हैं कि सफलता की संभावना इस बात पर निर्भर है कि पाकिस्तान की सरकार चरमपंथी समूहों के खिलाफ कार्रवाई के लिए किस हद तक तैयार है.’
पाकिस्तान में शरण पाए हुए आतंकी समूहों के बारे में उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में हिंसा में वृद्धि दिखाती है कि आतंकवादी समूहों को ‘कहीं और से’ लगातार सहयोग मिल रहा है वर्ना वे कई प्रांतों में एक ही समय पर लड़ने में समर्थ न होते. उन्होंने इस साल मई में पाकिस्तान में हवाई हमले में मारे गए तालिबानी नेता का हवाला देते हुए कहा, ‘हमने देखा कि उनका नेता (मुल्ला अख्तर मोहम्मद) मंसूर कहां मारा गया.’ रब्बानी ने कहा, ‘उनकी शरणस्थलियां, ठिकाने पाकिस्तान में कहीं हैं. पाकिस्तानी नेतृत्व को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये समूह उन इलाकों में संचालन न करें.’
अमेरिका मार्ग बदलने के लिए पाकिस्तान को तैयार कर सकता है
अफगानिस्तान पाकिस्तान में आतंकी समूहों की शरणस्थलियों को लेकर चिंतित है. रब्बानी ने उम्मीद जताई कि पाकिस्तान सरकार ‘इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी.’ रब्बानी ने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान को ‘अपना मार्ग बदलने और अच्छी दिशा में काम करने’ के लिए राजी करने में भूमिका निभा सकता है. उन्होंने कहा कि तालिबान के साथ किये गये शांति प्रयासों से तय नतीजे न मिलने के बावजूद अफगानिस्तान देश के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज्ब-ए इस्लामी समूह के संस्थापक एवं सक्रिय नेता गुल्बुद्दीन हिकमतयार के साथ बातचीत में प्रगति को लेकर आशांवित है.
भारत और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के प्रबंधन को लेकर अफगानिस्तान के दृष्टिकोण के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि किसी एक देश के साथ काबुल का रिश्ता किसी अन्य देश के साथ उसके रिश्तों की कीमत पर नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यदि आप किसी एक देश के करीब हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अन्य देशों से परे जा रहे हैं. हम क्षेत्र के सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं और इनमें पाकिस्तान एवं भारत शामिल हैं.’