दक्षा वैदकर
जंगल में शेर-शेरनी रहते थे. एक दिन वे अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर शिकार के लिए दूर तक गये. देर तक नहीं लौटे, तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे. उसी समय एक बकरी वहां आयी. उसे बच्चों को देख दया आ गयी. उसने उन बच्चों को दूध पिलाया. पेट भरने के बाद बच्चे उसके साथ मस्ती करने लगे.
तभी शेर-शेरनी आये. बकरी को देख लाल-पीले होकर हमला करते, उससे पहले बच्चों ने कहा, ‘इसने हमें दूध पिला कर बड़ा उपकार किया है. नहीं तो हम मर जाते.’ अब शेर कृतज्ञता के भाव से बोला, ‘हम तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलेंगे. जाओ, आजादी के साथ जंगल में घूमो-फिरो, मौज करो.’ यह सुन बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी. यहां तक कि शेर की पीठ पर बैठ कर भी कभी-कभी पेड़ों के पत्ते खाती थी.
यह दृश्य चील ने देखा, तो उसने हैरानी से बकरी से पूछा, तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है. यह बात उसके दिमाग पर घर कर गयी. ऐसे ही एक दिन किसी जगह चूहों के छोटे-छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे. निकलने का प्रयास करते, पर कोशिश बेकार हो रही थी. चील ने उनको पकड़-पकड़ कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. बच्चे भीगे थे. सर्दी से कांप रहे थे, तब चील ने अपने पंखों में उन्हें छुपाया, बच्चे बच गये और उनको बेहद राहत मिली.
काफी समय बाद चील उड़ कर जाने लगी, तो हैरान हो उठी. चूहों के बच्चों ने उसके पंख कुतर डाले थे. चील ने यह घटना बकरी को सुनायी और बोली, ‘तुमने भी उपकार किया और मैंने भी, फिर मुझे मिला फल अलग क्यों?’ बकरी पहले हंसी, फिर गंभीरता से बोली- ‘उपकार भी शेर जैसों पर किया जाये, चूहों पर नहीं. इस कहानी में चूहे से आशय कायर लोग लोगों से है, जो उपकार को याद नहीं रखते
और शेर से आशय बहादुर लोगों से हैं, जो उपकार कभी
नहीं भूलेंगे.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in