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क्यों नेता कांग्रेस छोडकर भाग रहे हैं?

पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष गुरुदास कामत के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा को कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका माना जा रहा है, हालांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं की ओर से अभी प्रतिक्रिया नहीं मिली है. उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ की राज्य इकाइयों में बाग़ी तेवरों से कांग्रेस पहले ही […]

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पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष गुरुदास कामत के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा को कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका माना जा रहा है, हालांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं की ओर से अभी प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ की राज्य इकाइयों में बाग़ी तेवरों से कांग्रेस पहले ही उबर नहीं पाई थी कि अब ये ताज़ा ख़बर आई है.

माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण मुंबई नगरपालिका चुनाव से पहले कामत के इस्तीफ़े से कांग्रेस की उम्मीदों को चोट पहुंचेगी.

मुंबई से पत्रकार अश्विन अघोर के अनुसार कहा जा रहा है कि कामत कीनाराज़गी की वजह है महाराष्ट्र से पी चिदंबरम की राज्य सभा की उम्मीदवारी जिससे कई स्थानीय नेता भी ख़ुश नहीं हैं.

रिपोर्टों में ये भी कहा जा रहा है कि गुरुदास कामत पूर्व शिवसैनिक और मुंबई कांग्रेस प्रमुख संजय निरुपम के पार्टी में बढ़ते क़द से ख़ुश नहीं थे.

लेखक पत्रकार रशीद किदवई ने बीबीसी से कहा कि एक तरफ़ जहां कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर प्रश्नचिह्न बना हुआ है तो दूसरी और कांग्रेस का एक बड़ा तबक़ा राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का विरोध कर रहा है जिससे कांग्रेस जनों में निराशा है और उन्हें लगता है कि पार्टी में कुछ नहीं बदलेगा और इस बात को सोनिया और राहुल गांधी “ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं.”

वो कहते हैं, “ये चीज़ अभी और होगी. उत्तर प्रदेश में बेनी प्रसाद वर्मा जा चुके हैं.”

गुरुदास कामत के राजनीतिक भविष्य पर किदवई कहते हैं, “वो राजीव गांधी के बहुत क़रीब थे. पार्टी के अंदर वो लोकप्रिय नेता रहे हैं. मुझे लगता है कि अभी वो किसी राजनीतिक दल में नहीं शामिल होंगे. उनकी साफ़ सुथरी छवि है. वो शिवेसना में तो नहीं जाएंगे लेकिन बाक़ी दल कोशिश करेंगे कि वो उनमें शामिल हो जाएं.”

चर्चा

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सोशल मीडिया पर भी कामत के इस्तीफ़े की चर्चा है.

कैप्टेन हरीश पिल्लई ट्विटर पर लिखते हैं, “44 साल कांग्रेस में बिताने के बाद राजवंश का इस्तीफ़े पर कोई जवाब नहीं. कांग्रेसवालों संकेत समझें.”

मोहम्मद सैफ़ुल्लाह रिज़वी लिखते हैं, “कांग्रेस के लिए ये अच्छे संकेत नहीं हैं.” नीलम कुमारी लिखती हैं, “सभी को आश्चर्च है.” गुड्डू लिखते हैं, कांग्रेस ने ज़िंदगी भर गुरुदास कामत का पालन पोषण किया और जब पार्टी को उनकी ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी.”

इससे पहले पूर्व छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने एक नए राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की थी लेकिन कामत ने कहा है कि वो राजनीति छोड़ रहे हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ 61 वर्षीय कामत ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा, ‘‘प्रिय मित्रों पिछले 44 वर्षों से अधिक समय से मैंने आपमें से अधिकतर के साथ काम किया है और कांग्रेस की सेवा की है. पिछले कई महीने से मैं राजनीति छोड़ने की ज़रूरत महसूस कर रहा था ताकि अन्य लोगों को मौक़ा मिले’’

कामत ने कहा, ‘‘मैंने माननीय कांग्रेस अध्यक्ष से क़रीब 10 दिन पहले मुलाक़ात की और त्यागपत्र देने की इच्छा जतायी. इसके बाद मैंने सोनियाजी और राहुलजी दोनों को पत्र भेजे कि मैं हटना चाहता हूं.’’

उन्होंने बयान में कहा, ‘‘चूंकि कोई जवाब नहीं आया, मैंने औपचारिक रूप से सूचित किया कि मैं राजनीति से संन्यास लेना चाहता हूं. मैं..पार्टी नेतृत्व और आप सभी को शुभकामना देता हूं.’’

कौन हैं गुरुदास कामत

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कांग्रेस के समर्थक अभी भी हैं लेकिन पार्टी सिमटती हुई बताई जा रही है.

मुंबई के कुर्ला इलाक़े के रहने वाले गुरुदास कामत को नेहरू गांधी परिवार का क़रीबी माना जाता है. वो मुंबई कांग्रेस प्रमुख के पद पर रह चुके हैं और पांच बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. कामत केंद्र सरकार में गृह विभाग और दूरसंचार राज्य मंत्री के पद पर भी रह चुके हैं.

वो एआईसीसी में राजस्थान, गुजरात, दादरा और नागर हवेली, दमन और दिऊ के महासचिव थे. वो कांग्रेस की उच्च संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी थे.

गुरुदास कामत की वेबसाइट http://www.gurudaskamat.com/ के अनुसार गुरुदास कामत ने करियर की शुरुआत अधिवक्ता के तौर पर की. 1972 में वो कांग्रेस की छात्र शाखा नेशनल स्टुंडेड्स यूनियन ऑफ़ इंडिया (एनएसयूआई) में शामिल हुए और 1976 में वो एनएसयूआई के मुंबई शाखा के प्रमुख बने.

कामत की वेबसाइट के मुताबिक़ 29 साल की उम्र में कांग्रेस ने उन्हें मुंबई उत्तर-पूर्व संसदीय सीट के लिए चुनाव लड़ने के लिए नामांकित किया जहां उन्होंने डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी और प्रमोद महाजन को हराया. 1987 में वो इंडियन यूथ कांग्रेस के प्रमुख बने.

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