ब्रह्मपुत्र नदी के बीचोंबीच बसा दुनिया का सबसे बड़ा टापू माजुली साल दर साल सिकुड़ता ही चला जा रहा है. मगर इसकी पहचान असम की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में बरक़रार है.
माजुली विधानसभा सीट से सर्बानंद सोनोवाल चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने असम में अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है.
अनुमान के हिसाब से 1400 वर्ग किलोमीटर में फैला यह टापू लगातार सिकुड़ रहा है. हर साल ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ और ज़मीन के कटाव की वजह से माजुली 400 वर्ग किलोमीटर से कुछ ज़्यादा तक सिकुड़ चुका है.
यहाँ आने जाने का एकमात्र ज़रिया नाव है जो सुबह 8 बजे से शाम के चार बजे तक ही चलती है. नीमति घाट से नाव को माजुली तक जाने में एक घंटे का वक़्त लगता है क्योंकि उस तरफ़ नदी का तेज़ बहाव है.
मगर लौटते वक़्त लहरों के ख़िलाफ़ संघर्ष करती हुई नाव को डेढ़ घंटा लग जाता है.
घाट पर काम करने वाले तुलसी दास बताते हैं कि बरसात के दिनों में ब्रह्मपुत्र अपने पूरे उफान पर होती है और माजुली का संपर्क पूरी दुनिया से कई दिनों तक कटा रहता है. बाढ़ की सूरत में तो एक हफ़्ते तक नावें नहीं चलती हैं.
लम्बे समय से लोगों की मांग रही है कि नीमति घाट से माजुली तक एक पुल बना दिया जाए ताकि लोगों को रोज़मर्रा की इस परेशानी से निजात मिल सके. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इसकी पहल भी की मगर मामला खटाई में चला गया.
सोनोवाल लखीमपुर से सांसद भी हैं और माजुली उनके संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा रहा है जहां कांग्रेस के मौजूदा विधायक राजीव लोचन पेगु से उनका मुक़ाबला है.
माजुली है तो एक अनुमंडल, मगर सोनोवाल माजुली को ज़िले का दर्जा दिलाने का वादा कर रहे हैं क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के साथ-साथ एक धार्मिक महत्व का केंद्र भी रहा है जहां वैष्णव संत शंकरदेव 16वीं शताब्दी में रहा करते थे.
गुरु शंकरदेव द्वारा स्थापित कम से कम चार वैष्णव मठ, जिन्हें सत्रा के नाम से जाना जाता है, आज भी मौजूद हैं. यहाँ हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं.
सोनोवाल फिलहाल केंद्र सरकार में राज्यमंत्री हैं. विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले वो अपने साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को माजुली ले गए और उनसे ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित पुल का शिलान्यास भी करवाया.
चुनावी प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी माजुली पहुंचे.
बीबीसी से बात करते हुए जोरहाट विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार राणा गोस्वामी कहते हैं कि नितिन गडकरी का शिलान्यास महज़ एक ‘चुनावी स्टंट’ है क्योंकि शिलान्यास तो हो गया है मगर पुल के निर्माण के लिए ना तो राशि का आवंटन हुआ है और ना ही कोई ‘प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ ही बनी है.
हालांकि पहली बार मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चुनाव अपने यहाँ देख रहे माजुली के लोग खुश तो हैं मगर उन्हें नहीं लगता कि इतनी जल्दी पुल की उनकी मांग पूरी हो पाएगी. माजुली के लोगों को लगता है कि पुल अगर स्वीकृत भी हो जाता है तब भी इसे बनने में कई साल लग जाएंगे.
हालांकि स्थानीय निवासियों का कहना है कि पुल से भी ज़्यादा ज़रूरी है उनके टापू को ब्रह्मपुत्र के क़हर से बचाना. हर मानसून के दौरान नदी के तेज़ बहाव से माजुली का एक बड़ा हिस्सा नदी में समा जाता है.
लोगों का यह भी कहना है कि अगर हर साल ज़मीन का कटाव इसी पैमाने पर होता रहा तो विश्व में सबसे बड़े नदी के टापू के रूप में पहचान रहने वाला माजुली एक दिन ब्रह्मपुत्र में पूरी तरह विलीन हो जाएगा.
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