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पाकिस्तान: क्यों नहीं रुक रहे चरमपंथी हमले

एम इलियास ख़ान बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद 20 जनवरी 2016 को पाकिस्तान के पेशावर इलाके में बाचा ख़ान यूनिवर्सिटी पर हुए चरमपंथी हमले में 19 लोग मारे गए. ये हमला उस आदिवासी इलाके के नज़दीक हुआ जहां स्थानीय चरमपंथियों की मज़बूत मौजूदगी है. यहां अभी भी ऐसे कई ‘सेफ हाउस’ हैं जहां चरमपंथियों को पनाह मिलती […]

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20 जनवरी 2016 को पाकिस्तान के पेशावर इलाके में बाचा ख़ान यूनिवर्सिटी पर हुए चरमपंथी हमले में 19 लोग मारे गए. ये हमला उस आदिवासी इलाके के नज़दीक हुआ जहां स्थानीय चरमपंथियों की मज़बूत मौजूदगी है.

यहां अभी भी ऐसे कई ‘सेफ हाउस’ हैं जहां चरमपंथियों को पनाह मिलती है. ‘मिशन’ पर जाने से पहले इन जगहों पर चरमपंथी आराम करते हैं और उन्हें खाना भी मिलता है.

हमले की ताज़ा घटना के बाद पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है जो इस तरह के ‘सेफ हाउस’ चलाता था.

अधिकारियों का मानना है कि बाचा ख़ान यूनिवर्सिटी पर जिन चरपमंथियों ने हमला किया, वो भी ऐसे ही एक ‘सेफ हाउस’ से आए थे.

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इन हमलों के बाद सेना के उन बयानों पर भी सवाल उठने लगे जिसमें उन्होंने इलाके से चरमपंथियों को ख़त्म करने का दावा किया था.

इस हमले से कुछ दिन पहले पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल राहील शरीफ ने कहा था कि वर्ष 2016 में चरमपंथियों को ख़त्म कर दिया जाएगा.

इस हमले के बाद जियो टीवी के टॉक शो के होस्ट हामिद मीर ने बिना किसी का नाम लिए कहा, "जिन्होंने वर्ष 2016 में चरमपंथियों को ख़त्म करने का दावा किया था, उन्हें इस हमले का जवाब देना चाहिए."

पाकिस्तान की सरकार अपने देश में चरमपंथ के लिए भारत और अफ़ग़ानिस्तान पर आरोप लगाती रही है जिसे पड़ोसी देश खारिज़ करते आए हैं.

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पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले पश्तो राष्ट्रवादी जिनका सिंध और बलूचिस्तान में कई राजनीतिक संगठनों में भी दखल है, उनका मानना है कि पाकिस्तानी सरकार जिस तरह से इन चरमपंथियों से निपट रही है, उसमें भी काफी मुश्किल है.

खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के पूर्व नेता मियां इफ़्तिख़ार हुसैन कहते हैं, "पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमले के बाद राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी) बनाई गई थी लेकिन सरकार ने उस पर सही तरीके से अमल नहीं किया."

20 सूत्रीय एनएपी में ये दावा किया गया था कि देश में किसी भी सशस्त्र संगठन को काम नहीं करने दिया जाएगा और सरकार इस बात को सुनिश्चित करेगी कि पुराने संगठन नाम बदलकर काम न करें.

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लेकिन इसके बावजूद लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की पाकिस्तान में सक्रियता को लेकर सवाल उठते रहे हैं. इतना ही नहीं, हालिया रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि अफगान तालिबान क्वेटा, पेशावर और कराची में सक्रिय हैं.

बदले में ये संगठन पाकिस्तान तालिबान की मदद करते हैं जिन्हें पाकिस्तान सरकार ख़त्म करना चाहती है. कई लोगों का मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए स्थानीय समाधान की ज़रूरत है.

उनके अनुसार पाकिस्तान को उन चरमपंथियों से निपटना चाहिए जो भारत और अफ़ग़ानिस्तान को निशाना बना रहे हैं.

बदले में उन्हें भारत और अफ़ग़ानिस्तान से उन चरमपंथियों को रोकने में मदद मांगनी चाहिए जो पाकिस्तान पर हमले कर रहे हैं.

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एएनपी के एक नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, "अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्टेट आॅफ यूनियन के अपने भाषण में कहा था कि आने वाले कई दशकों तक पाकिस्तान में अस्थिरता बनी रहेगी."

उनके अनुसार, "अगर ऐसा नहीं होता है तो उनका ये कथन सच हो जाएगा."

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