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बनावटीपन व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दुश्मन

हिंदी में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है – अधजल गगरी छलकत जाये. इसका मतलब यह है कि वैसे लोग, जिनको ज्यादा ज्ञान नहीं है, ज्यादा बोल कर अपने महत्व को जताने की कोशिश करते हैं. परंतु इसका नतीजा ठीक उल्टा होता है और जो चीज हमें मिलनेवाली होती है, उससे भी हम हाथ धो बैठते […]

हिंदी में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है – अधजल गगरी छलकत जाये. इसका मतलब यह है कि वैसे लोग, जिनको ज्यादा ज्ञान नहीं है, ज्यादा बोल कर अपने महत्व को जताने की कोशिश करते हैं. परंतु इसका नतीजा ठीक उल्टा होता है और जो चीज हमें मिलनेवाली होती है, उससे भी हम हाथ धो बैठते हैं. हमें अपने व्यक्तिव में बनावटीपन की कोई जगह नहीं रखनी चाहिए, अन्यथा इसका नकारात्मक प्रभाव हमारे पूरे व्यक्तित्व पर पड़ना तय है. हमें वही दिखाना चाहिए, जो हम सचमुच में हैं. हालांकि ऐसा ज्यादातर तब होता है, जब किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता और विद्वता से बड़ा पद मिल जाये. इस संदर्भ में मुङो एक कहानी याद आ रही है.

एक बार एक सरकारी अधिकारी को अपने विभाग में प्रोन्नति मिली. प्रोन्नति से ऊंची कुर्सी मिलने पर धीरे-धीरे उसके मन में अहंकार और सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स घर करने लगा. अब वह स्वयं को पहले से अधिक विद्वान, व्यस्त और श्रेष्ठ दिखाने लगा. एक बार एक व्यक्ति उस अधिकारी से मिलने आया. चपरासी ने अधिकारी को इसकी सूचना दी. अधिकारी ने उस व्यक्ति को अंदर बुलाया और खुद को बेहद व्यस्त दिखने के लिए यूं ही अपना फोन उठा कर बात करने लगा.

लगभग 20 मिनट तक वह व्यक्ति उस अधिकारी के केबिन में खड़ा रहा, लेकिन अधिकारी लगातार फोन से बात करता रहा. अपने बातचीत के क्रम में वह कभी कहता, आप अपना आवेदन मेरे कार्यालय में भेज दें, मैं देखता हूं कि उसमें मैं क्या कर सकता हूं. तो कभी कहता, जो भी कानूनसम्मत कार्यवाही होगी, वह मैं जरूर करूंगा. बीच-बीच में वह ‘कानून से ऊपर कोई नहीं है’, ‘सच्चाई कभी भी छिप नहीं सकती’, ‘अपनी तहकीकात में मैं दूध का दूध और पानी का पानी कर दूंगा’ जैसे वाक्यों का निरंतर प्रयोग किये जा रहा था. 20 मिनट के बाद अधिकारी ने फोन रखा और उस व्यक्ति से पूछा, कहिए, क्या काम है, मैं बहुत व्यस्त हूं? उस व्यक्ति ने जवाब दिया, सर मैं टेलीफोन मेकेनिक हूं, आपका डेड फोन ठीक करने आया हूं.

कहने का कुल तात्पर्य यह है कि यदि आपमें कुछ बात है, तो यह बात दूसरे लोगों को महसूस करने और कहने दीजिए. आपके स्वयं कहने से आपका महत्व विलुप्त हो जायेगा. मुङो इस संदर्भ में महात्मा गांधी की कही हुई बात याद आ रही है. उन्होंने कहा था, ‘आप अपनी सोच सकारात्मक रखें, क्योंकि ये आपके शब्द बन जाते हैं. आप अपने शब्द सकारात्मक रखें, क्योंकि ये आपका व्यवहार बन जाते हैं. आप अपना व्यवहार सकारात्मक रखें, क्योंकि ये आपकी आदतें बन जाती हैं. और आप अपनी आदतें सकारात्मक रखें, क्योंकि ये आदतें आपकी वैल्यू बन जाती हैं.’

आशीष आदर्श
कैरियर काउंसेलर aashish500@gmail.com

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