पानी के पंप से लेकर नए फ़ैशन के कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान से लेकर घर बनाने में इस्तेमाल होने वाले सीमेंट की बोरी तक. झाबुआ से झुंझुनू और रायपुर से रांची तक.
बढ़ई से लेकर प्लंबर और किसानों से लेकर बड़े उद्योगपति तक. सभी ने बीते साल एक बात में यक़ीन जताया- बिज़नेस करने का तरीक़ा अब ऑनलाइन होता जा रहा है.
स्मार्टफ़ोन अब बिज़नेस के लिए सबसे अहम हो गया है और ग्राहकों तक पहुँचने का सबसे पसंदीदा तरीक़ा.
‘द मिंट’ की इस रिपोर्ट के अनुसार, वेंचर कैपिटलिस्ट- यानी वो जो छोटी कंपनियों में पैसे लगाकर उन्हें अपना बिज़नेस फैलाने में मदद करते हैं- ने 2015 में क़रीब 40 हज़ार करोड़ रुपए लगाए. पिछले साल से क़रीब 40 फ़ीसदी ज़्यादा.
घर के लिए महीने का राशन-पानी या खाने का ऑर्डर हो, होटल या फ़्लाइट के लिए बुकिंग और इलेक्ट्रॉनिक सामान की खरीदारी, अब लोगों को ऑनलाइन खोजने की आदत हो गई है.
ई-कॉमर्स ने बीते साल अपना रुतबा कुछ ऐसा बना लिया कि लोग मोबाइल पर खरीदारी को तैयार हो गए.
स्नैपडील ने घर की बुकिंग से लेकर हीरो हॉन्डा मोटरसाइकिल तक अपनी वेबसाइट पर बेचने के लिए डाल दी. इसलिए मोबाइल कॉमर्स पर अब सभी का ध्यान है.
मिंत्रा नाम की वेबसाइट ने तो पूरे बिज़नेस को मोबाइल फ़ोन के लिए आसान बनाने की कोशिश की. जब देखा कि उनकी वेबसाइट पर आने वाले कुछ कम हुए हैं, तो वो वापस डेस्कटॉप वेबसाइट पर जाने की सोच रहे हैं.
इसका ये मतलब नहीं कि स्मार्टफ़ोन की दुनिया मोबाइल कॉमर्स के लिए तैयार नहीं.
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (आईएएमएआई) के अनुसार 2015 के अंत तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या क़रीब 40 करोड़ के ऊपर है.
अब सिर्फ़ चीन में ही भारत से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र हैं. पूरी दुनिया का ध्यान अब भारत के ई-कॉमर्स बाज़ार पर है.
पहले एक करोड़ ग्राहकों से 10 करोड़ तक पहुँचने में भारत को क़रीब दस साल लगे. अगले 10 करोड़ ग्राहक इकठ्ठा करने में इंडस्ट्री को तीन साल लगे और 30-40 करोड़ ग्राहकों तक पहुँचने में सिर्फ एक साल लगा.
35 शहरों में हुए इस सर्वे की रिपोर्ट से साफ़ है कि अब भारत के लोग मोबाइल कॉमर्स के लिए तैयार हैं.
4G का बाजार तेज़ी से बढ़ रहा है और अगर मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियां अपने ग्राहकों के लिए कनेक्टिविटी की रफ़्तार बढ़ाने में कामयाब रहीं, तो मोबाइल कॉमर्स दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से तरक्की करेगा.
ई-कॉमर्स के ज़रिए छोटी कंपनियां अब ऐसे ग्राहकों तक पहुँच रही हैं, जो पहले मुमकिन नहीं था.
जेके लक्ष्मी सीमेंट स्नैपडील के ज़रिए सीमेंट, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और दूसरे सामान बेचना चाहता है. ऐसा करने वाली वह भारत की पहली कंपनी है.
कोका-कोला ने कोक ज़ीरो के लॉन्च के बाद पहले दो हफ़्ते उसे भारत में एमेज़ॉन के साथ मिलकर सिर्फ़ ऑनलाइन बेचा. पहली बार कोई सॉफ़्ट ड्रिंक प्रोडक्ट भारत में ऑनलाइन लॉन्च किया गया.
कुछ साल पहले ये सोचना भी शायद मुमकिन न था पर इस रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है कि हीरो ग्रुप ने बीते साल केवल स्नैपलडील पर तीन लाख मोटरसाइकिलें बेची हैं.
ग्राहक ऑनलाइन सर्च करके अपने पसंद के प्रोडक्ट चुन लेते हैं. ऑनलाइन ऑर्डर करना बहुत आसान है. कंपनियों के लिए अपने डीलर के पास मोटरसाइकिलें रखने की भी ज़रूरत नहीं.
पंपकार्ट अब किर्लोस्कर, क्रॉम्पटन ग्रीव्स और 200 ब्रांड के पानी के पंप बेचता है.
केएस भाटिया पिछले 17 साल से पानी के पंप बेच रहे हैं. जब उन्होंने अपने बिज़नेस को ऑनलाइन किया, तो उन्हें भी सफलता से हैरानी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गूगल के सीईओ सुन्दर पिचाई ने उनकी सफलता के बारे में कैलिफ़ोर्निया में बात की.
इस रिपोर्ट के अनुसार, उनके फ़ोन की घंटी बजनी बंद नहीं हो रही थी.
सिर्फ़ प्रोडक्ट नहीं, नए विचार और पुराने विचारों के प्रचार का तरीक़ा भी अब ऑनलाइन हो रहा है.
राजनीतिक पार्टियां अपनी नीति और प्रोग्राम भी ऑनलाइन लॉन्च करने की सोच रहे हैं. पार्टियों को लगता है कि लोगों को अपनी नीतियों के बारे में ऑनलाइन बताना सबसे बढ़िया है.
बिहार चुनाव में नितीश ने रैलियां तो कीं, पर लोगों तक ऑनलाइन पहुंचने के लिए प्रशांत किशोर का सहारा लिया.
किशोर ने 2014 में बीजेपी की मदद की थी और लोगों तक ऑनलाइन संदेश पहुंचाने में उनका लोहा अब सब मानते हैं.
सरकार से जुड़ी ख़बरें और ब्रेकिंग न्यूज़ अब ऑनलाइन ही दिखते हैं.
बीते साल में टेलीविज़न और प्रिंट की जगह ऑनलाइन लोगों तक सबसे तेज़ पहुंचने का माध्यम बन गया है.
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