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छठ ने बढ़ाया बिहारी अस्मिता का गर्व

।। शारदा सिन्हा, लोक गायिका।। छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जो जाति और धर्म के बंधनों से परे है. यह पूरे देश को जोड़ता है. इस पर्व में महिलाओं का खास योगदान रहता है. यह महिलाओं की सहन शक्ति और पवित्रता का भी पर्व है. एक तरह से कहें तो छठ महापर्व पूरे विश्व को […]

।। शारदा सिन्हा, लोक गायिका।।

छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जो जाति और धर्म के बंधनों से परे है. यह पूरे देश को जोड़ता है. इस पर्व में महिलाओं का खास योगदान रहता है. यह महिलाओं की सहन शक्ति और पवित्रता का भी पर्व है. एक तरह से कहें तो छठ महापर्व पूरे विश्व को बिहारी संस्कृति का सबसे बड़ा उपहार है. यह श्रद्धा का महापर्व है.

छठ की संस्कृति अति प्राचीन है. रामायण और महाभारत में भी छठ पूजा का प्रसंग है. द्रौपदी ने भी छठ व्रत किया था. इसलिए इसका आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक महत्व खास है. पर्व के दौरान सभी तरह के भेद मिट जाते हैं.यह पर्व मेरे दिल के बहुत करीब है. मेरा मानना है कि छठ लोक पर्व और प्रकृति के बहुत करीब है. यह कृषि से भी जुड़ा है.आप इस पर्व के पूरे स्वरूप और इसमें इस्तेमाल की जानेवाली वस्तुओं को देखें तो यह बात साफ हो जायेगी. व्रती महिला-पुरुष नदी, जलाशय या तालाब के किनारे ऊर्जा के असीम स्नेत सूर्य को अर्घ देते हैं. मिट्टी से निर्मित चूल्हे पर खरना का प्रसाद बनता है. बांस से बने सूप में केला, ठेकुआ, ईख, फूल, मूली और अदरख आदि रख कर अर्घ दिया जाता है. यानी यह पर्व मिट्टी, नदी व कृषि उत्पादों से जुड़ा है. इस पर्व में आम लोगों का सूर्य से सीधा साक्षात्कार होता है. आधुनिक युग में जब बाकी कई पर्व-त्योहार धीरे-धीरे खो रहे हैं या उनका स्वरूप बदल रहा है, छठ की महत्ता लगातार बढ़ रही है. इसका विस्तार भी होता जा रहा है. देश-दुनिया में लोग इसे शुद्धता और आत्मीयता से मनाते हैं.

एक बात और, इस पर्व में लोक गीतों का खास महत्व है. बिहारी अस्मिता का गर्व इसी पर्व ने बढ़ाया है. लोग घर-आंगन में बड़ी श्रद्धा और भाव से छठ के गीत गाते हैं और सुनते हैं. मुझ पर तो भगवान सूर्य की बड़ी कृपा है.मुझेछठ गीतों से ही लोकप्रियता मिली. 1977 में पहली बार मैंने ‘ मोरा भईया जाएला महंगा मुंगेर.’ शीर्षक छठ गीत गाया था. यह गीत आज भी उतना ही चाव से सुना जाता है. ‘केलवा के पात पर उगे लन सूरज मल.’, ‘ पटना के घाट पर हमहूं अरघिया देव.’, ‘ हम ना जाइब दूसर घाट.’ और ‘ छठि मईया आई ना दुहरिया.’ जैसे गीत भी मैंने गाये. मेरे गीतों को मुरली मनोहर स्वरूप ने संगीतबद्ध किया. मुरली जी ने मुकेश की ‘रामायण’ को भी संगीतबद्ध किया है.

यूरोप, जर्मनी, लक्जमवर्ग, एक्सटर्डम, सूरीनाम, मॉरीशस और नेपाल सहित दर्जन भर देशों में मैं जब भी गयी, लोग छठ गीत सुनाने को कहते हैं. देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं बचा है, जहां मेरे छठ गीतों का कार्यक्रम नहीं हुआ है. कहीं भी छठ गीतों को लेकर भाषा आड़े नहीं आयी. सभी भाषाओं में छठ गीतों को जन स्वीकृति मिली है. यह बताता है कि छठ गीत किस हद तक लोगों के दिलों को छूता है. मुङो इस बात का मलाल है कि छठ महापर्व पर अब तक कोई फिल्म नहीं बनी है. मेरी इच्छा है कि छठ को लेकर भी ‘जय संतोषी मां’ जैसी कोई कालजयी फिल्म बने.

यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जो जाति और धर्म के बंधनों से परे है. यह पूरे देश को जोड़ता है. इस पर्व में महिलाओं का खास योगदान रहता है. यह महिलाओं की सहन शक्ति और पवित्रता का भी पर्व है. एक तरह से कहें तो छठ महापर्व पूरे विश्व को बिहारी संस्कृति का सबसे बड़ा उपहार है. छठ महापर्व देश-दुनिया में मनाया जाता है. यह श्रद्धा का महापर्व है. लेकिन, अब तक केंद्र सरकार ने छठ पर राष्ट्रीय छुट्टी घोषित नहीं की है. एक बार सरकार ने इसका संकेत तो दिया, किंतु आज तक इसकी अधिसूचना नहीं निकली. छठ पर्व को बिहार-यूपी व झारखंड तक ही सीमित मान लिया गया है, जबकि सच यह है कि दुनिया भर में यह महापर्व मनाया जाता है.

(रामनरेश चौरसिया से बातचीत पर आधारित)

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