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मोदी का ब्रिटेन दौरा उम्मीदें और चुनौतियां
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकृष्ट करने के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 से 14 नवंबर तक ब्रिटेन यात्रा करेंगे.इस तीन-दिवसीय यात्रा के दौरान वे दोनों देशों के बीच वाणिज्य-व्यापार की बेहतरी की कोशिशों के साथ आप्रवासी भारतीयों को भी […]
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकृष्ट करने के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 से 14 नवंबर तक ब्रिटेन यात्रा करेंगे.इस तीन-दिवसीय यात्रा के दौरान वे दोनों देशों के बीच वाणिज्य-व्यापार की बेहतरी की कोशिशों के साथ आप्रवासी भारतीयों को भी देश में निवेश के लिए आमंत्रित करेंगे.
करीब दस वर्ष पूर्व 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा के बाद हो रही प्रधानमंत्री के इस दौरे से बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि पिछले एक-डेढ़ साल में द्विपक्षीय व्यापार में कमजोरी आयी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसे विषय भी इस यात्रा में महत्वपूर्ण मुद्दे होंगे. इस दौरे के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का समय…
‘औपनिवेशिक सोच’ से द्विपक्षीय व्यापार पर असर
जोनाथन ओवेन
वरिष्ठ पत्रकार
ब्रिटेन के युवाओं के बीच भारत के प्रति अज्ञानता से भारत-ब्रिटेन के बीच विशेष संबंधों पर असर पड़ सकता है. ब्रिटिश काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन को भारत के साथ पुराने संबंधों को महत्व देते हुए व्यापार और अन्य क्षेत्रों में पसंदीदा सहयोगी होना चाहिए. ऐसा न हो कि कॉमनवेल्थ के देशों का ध्यान कहीं दूसरी ओर चला जाये.
यह रिपोर्ट ऐसे समय आयी है, जब भारत के प्रधानमंत्री अगले महीने ब्रिटेन का पहला दौरा करनेवाले हैं. लेकिन दोनों देशों के बीच कई अड़चनें हैं और दूरियां भी काफी बढ़ी हैं. भारत में इसे लेकर निराशा बढ़ती जा रही है और कुछ लोगों का मानना है कि ब्रिटेन के लोगों की औपनिवेशिक सोच के कारण संबंधों को नयी गति नहीं मिल पा रही है.
कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटेन अभी भी भारत को समान सहयोगी नहीं मानता है. इस रिपोर्ट के प्रस्तावना में बिजनेस सेक्रेटरी साजिद जावेद ने चेताया है कि पूर्व के सहभागी रिश्ते मौजूदा संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए काफी नहीं हैं और दावा किया है कि आज की भारतीय युवा पीढ़ी ब्रिटेन से दूरी बना सकती है, अगर युवा ब्रिटिश लोगों द्वारा उनकी सोच को महत्व नहीं देंगे.
इपसोस मोरी द्वारा भारतीय युवाओं को लेकर किये गये सर्वे से यह बात सामने आयी है कि तीन में एक भारतीय ने ब्रिटेन का दौरा किया है और पांच से एक भारतीय ने ब्रिटेन के साथ व्यापार किया है.
इसके उलट केवल व फीसदी ब्रिटिश युवाओं ने भारत का दौरा किया है और सिर्फ 8 फीसदी ने भारत के साथ व्यापार किया. जबकि 74 फीसदी भारतीय ब्रिटेन के बारे में जानते हैं और केवल 21 फीसदी ब्रिटेन के युवाओं को ही भारत की जानकारी है. भारत के 33 फीसदी लोग यह सोचते हैं कि ब्रिटेन के लोग अन्य देशों के प्रति अनभिज्ञ हैं. पिछले पांच साल में ब्रिटेन में पढ़ाई करनेवाले भारतीय छात्रों की संख्या में बड़े पैमाने पर गिरावट आयी है.
यही नहीं 1999 में भारत के साथ व्यापार में शीर्ष स्थान रखनेवाले ब्रिटेन 2015 में 18वें स्थान पर पहुंच गया है. अन्य देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के बीच ब्रिटेन व्यापार बढ़ाने को लेकर उदासीन नहीं रह सकता है. इसके लिए ब्रिटेन को तेजी से भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि संबंधों को नया आयाम देने के लिए ब्रिटेन को स्कूलों के पाठ्यक्रम में भारतीय इतिहास और संस्कृति को तवज्जो देना चाहिए और स्कूली स्तर पर दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ाना चाहिए.
भारत में ब्रिटिश काउंसिल के डायरेक्टर रॉब लैंस का कहना है कि 21वीं सदी में वैश्विक स्तर पर भारत एक महत्वपूर्ण देश होगा. जब तक हम इसें नहीं समझेंगे ब्रिटेन पीछे छूट जायेगा. आॅफ पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप आॅन इंडिया के प्रमुख वीरेंद्र शर्मा का कहना है कि अगर भविष्य के रिश्ते को बेहतर करने की कोशिश की जाये, तो 21वीं सदी में एक समृद्ध यूनियन की आधारशिला रखी जा सकती है. अगर संबंधों को बेहतर नहीं किया गया, तो इससे किसी को फायदा नहीं होगा.
अगले 35 सालों में भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी और 2050 तक भारत में काम करनेवाले लोगों की संख्या चीन और अमेरिका से भी अधिक होगी. भारत सॉफ्टवेयर का निर्यात 90 देशों को करता है और विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री यहीं है.
वर्ष 2028 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा और 2035 तक देश की जीडीपी 6 ट्रिलियन पाउंड की होगी. लोगों की खरीद क्षमता के मामले में भारत की हिस्सेदारी 2050 तक वैश्विक जीडीपी में 13.5 फीसदी होगी और यह यूरोपीय यूनियन और अमेरिका से अधिक होगी.
(साभार : इंडिपेंडेंट, ब्रिटेन)
ब्रिटेन में मोदी
12 नवंबर : ब्रिटेन में प्रधानमंत्री मोदी का आगमन, उसी दिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से उनके आवास पर मुलाकात, दोनों नेता ब्रिटिश संसद में महात्मा गांधी की मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे, संसद में मोदी का संबोधन. लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन द्वारा गिल्डहॉल में प्रधानमंत्री के सम्मान में रात्रि भोज
13 नवंबर : प्रधानमंत्री मोदी ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वारा दिये गये दोपहर के भोज में शामिल होंगे. यह आयोजन महारानी के बकिंघम पैलेस में होगा. उसी दिन शाम को मोदी ब्रिटेन के आप्रवासी भारतीयों की एक सभा को संबोधित करेंगे.
14 नवंबर : ब्रिटेन की यात्रा के अंतिम दिन भारतीय प्रधानमंत्री 12वीं सदी के दार्शनिक बासवेश्वर की मूर्ति का अनावरण करेंगे. उसी दिन वे उत्तरी लंदन में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के पुराने आवास पर बनाये गये संग्रहालय का उद्घाटन करेंगे. इस आवास को सितंबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने खरीदा है.
– प्रधानमंत्री मोदी 14 नवंबर को जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए तुर्की रवाना हो जाएंगे.
भारत-ब्रिटेन : ठोस संयोजन की ओर
डॉ रहीस सिंह
विदेश मामलों के जानकार
यह संभावना दोनों देशों के मध्य निर्मित हो रहे घनिष्ठ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों में सकारात्मक रूप से सहायक हो सकती है. यही वजह है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत और ब्रिटेन को ‘स्वाभाविक मित्र’ बताते हैं, और भारत भी निवेश की तलाश में है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा कमोबेश पिछली अमेरिकी यात्रा के पैटर्न पर होने की संभावना है, क्योंकि वे 12 नवंबर को लंदन पहुंचने के बाद ब्रिटिश संसद को संबोधित करने, ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता के साथ-साथ जैगुआर लैंड रोवर की फैक्टरी जायेंगे, जिसका मालिकाना हक भारतीय कंपनी टाटा मोटर्स के पास है.
ब्रिटेन में बसे भारतीय समुदाय द्वारा लंदन के वेंबली स्टेडियम में आयोजित एक सभा में 60,000 से अधिक लोगों के आने की संभावना है. यह भी संभव है कि वे यहां स्वराज पॉल, मेघनाद देसाई, कीथ वाज और भारतीय मूल के नेताओं से मुलाकात कर भारतीय पक्ष को आगे बढ़ाने की कोशिश करें. लेकिन एक परंपरागत सवाल यह है कि भारतीय समुदाय के आयोजकों द्वारा ‘ओलिंपिक स्टाइल’ में प्रधानमंत्री का स्वागत सही अर्थों में ‘टू ग्रेट नेशंस, वन ग्लोरियस फ्यूचर’ को आगे बढ़ायेगा या फिर यह प्रधानमंत्री मोदी वैयक्तिक प्रचारात्मक एजेंडा बन कर उनकी राॅक स्टार की इमेज को प्रस्तुत करेगा, जिसके कोई रणनीति फायदे देश को नहीं मिल पायेंगे?
ब्रिटेन यात्रा को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि ‘मैं अपनी ब्रिटेन यात्रा को लेकर उत्साहित हूं.’ हालांकि, इसका कारण मुख्य रूप में उन्होंने उस हाउस का औपचारिक रूप से उद्घाटन करना बताया है, जहां डॉ बाबा साहेब आंबेडकर रहते थे. उन्होंने यह खुलासा नहीं किया कि ब्रिटेन दौरे का उनका एजेंडा क्या है? सांस्कृतिक और भावनात्मक पक्ष अपनी जगह हैं. ये पक्ष ट्रैक टू पाॅलिसी के लिहाज से महत्वपूर्ण भी होते हैं, लेकिन मुख्यधारा के विषयों को आगे रखना ही फास्ट ट्रैक और प्रोएक्टिव डिप्लोमेसी का हिस्सा होना चाहिए, जिसके अपने लाभ होते हैं.
हालांकि, पिछले कुछ समय में ब्रिटेन व भारत के कुछ मंत्रियों के मध्य बातचीत के विवरण पर ध्यान दें, तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार, मेक इन इंडिया के तहत निवेश को निमंत्रण, स्मार्ट शहरों के विकास के लिए ब्रिटेन के सहयोग का आग्रह, विज्ञान और नवाचार, हरित ऊर्जा और व्यवसाय करने की सहूलियतों में सुधार तथा ऊर्जा एवं जलवायु पर साझेदारी के साथ रक्षा एवं सुरक्षा से जुड़े मुद्दे प्रमुख होंगे. इस बात की भी संभावना है कि प्रधानमंत्री मोदी ब्रिटिश सरकार को अपनी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तैयार की गयी एक सूची सौंपें, जिसमें भारत के मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड डाॅन दाऊद इब्राहिम की ब्रिटेन स्थित 15 संपत्तियों का विवरण है.
भारत-ब्रिटेन संबंध लंबे समय तक उतार-चढ़ाव से गुजरे हैं. शीतयुद्ध काल में विशेष रूप से इन्हें बेहतर नहीं माना जा सकता, क्योंकि उस दौर में भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर था और ब्रिटेन अमेरिका के साथ मिल कर सोवियत रूस को ठिकाने लगाने की रणनीतियों पर काम कर रहा था. लेकिन नये आर्थिक युग की शुरुआत के साथ ही ब्रिटेन भारत के आर्थिक सुधारों का लाभ उठाने के लिए नयी साझेदारी की ओर कदम बढ़ाने लगा.
1992 में ब्रिटेन के गृह मामलों के मंत्री केनेथ बेकर ने भारत यात्रा के दौरान भारत को ‘वास्तव में शिकारग्रस्त राज्य’ कह कर भारत का आतंकवाद के मुद्दे पर समर्थन किया था. वह भारत के इस मत से सहमत थे कि मजहबी कट्टरपन आतंकवाद से जुड़ कर दोगुनी गति से उभरा है, जो खास तौर पर भारत जैसे लोकतांत्रिक समाजों के लिए धमकी दे रहा दिखता है.
इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों पक्षों द्वारा भारत-ब्रिटेन साझेदारी पहल (इंडो-ब्रिटिश पार्टनरशिप इनीशिएटिव) के गठन पर सहमति हुई, आर्थिक पक्ष की मजबूती के लिए ब्रिटिश बीएइ तथा हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड के बीच समझौते हुए, जिसका उद्देश्य भारत में एक साॅफ्टेयर कंपनी ‘एचएएल बीएइ साॅफ्टवेयर’ नाम से स्थापित करना था.
इसके बाद ही ब्रिटिश संसद ने विदेशी अपराधियों के प्रत्यर्पण की संधि को भारी बहुमत से अनुमोदन कर दिया. इससे यह स्पष्ट संकेत गया था कि ब्रिटेन की धरती से सुरक्षित उग्रवाद को प्रसारित करनेवालों के लिए ब्रिटेन अब स्वर्ग नहीं रह गया है.
इसके साथ ही ‘इंडो-ब्रिटिश पालिटिकल इनीशिएटिव’ की शुरुआत हुई, जिसके काफी बेहतर परिणाम आये, विशेषकर बिजली, कृषि आधारित खाद्य पदार्थ, उनका प्रसंस्करण, वस्तु निर्माण-प्रौद्योगिकी, दूर संचार, टेलिमेटिक्स औद्योगिक कल-पुर्जे, मोटर आदि के पुर्जे, बुनियादी ढांचा तथा पर्यावरण, तेल और गैस वित्तीय तथा कानूनी सेवाएं और उपभोक्ता वस्तुओं के कारोबार में आयात-निर्यात आदि क्षेत्रों में.
वैश्विक आर्थिक संकट के बाद जब भारत की ओर आर्थिक महाशक्तियां रुख करनेवाली थीं, उससे पहले ही (जुलाई 2010 के अंतिम दिनों में) ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भारत की यात्रा की. उनकी इस यात्रा का उद्देश्य संबंधों को विस्तार देना और यूनाइटेड किंगडम में नौकरियों को बढ़ाना था. इस यात्रा के दौरान ही कैमरन ने बेंगलुरु में कहा था कि वे यूके को भारत का ‘पार्टनर आॅफ च्वाॅइस’ बनाना चाहते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि डेविड कैमरन ने आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान को खुले तौर पर कटघरे में खड़ा किया था, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों के नेता करने में स्वयं को असमर्थ पाते रहे थे.
डेविड कैमरन ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट तौर पर कहा कि यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान भारत, अफगानिस्तान या दुनिया के किसी अन्य हिस्से में आतंकवाद को बढ़ावा दे. अमेरिकी पाले में जाने के बाद से भारतीय राजनय अमेरिका के साथ अपनी दोस्ती का गुणगान तो कर रहा था या अब अमेरिका और चीन के साथ अपनी दोस्ती का गुणगान हो रहा है, लेकिन किसी ने भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मामले में खुल कर भारत का पक्ष नहीं लिया.
इस समय पूरा यूरोप सरकारी कर्ज से दबा हुआ है, जिसमें कई देश तो उसके दबाव से चरमराने की स्थिति में हैं. ब्रिटेन का भी बजट घाटा बढ़ा हुआ है. ऐसे में उसे भारत से काफी लाभ हासिल हो सकते हैं. ब्रिटिश सरकार पहले से ही यह घोषित कर चुकी है कि वर्ष 2014-15 में मैन्यूफैक्चरिंग तथा बिजनेस विकास के लिए भारतीय कंपनियों को 200 मिलियन पाउंड देगी.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में ब्रिटेन भारतीय कंपनियों के लिए भी एक अनुकूल स्थान है, जिसमें भारतीय फर्में लगभग 30 बिलियन स्टर्लिंग पाउंड निवेश कर चुकी हैं और दूसरी तरफ ब्रिटिश फर्में भारत में लगभग 85 बिलियन स्टर्लिंग पाउंड का, जो किसी भी दूसरे देश से अधिक है और भारत में कुल एफडीआइ का लगभग 30 प्रतिशत के आसपास है.
दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 16 बिलियन पाउंड के आसपास है, जिसे भारत बढ़ाना चाहता है. रक्षा के क्षेत्र में ब्रिटेन से महत्वपूर्ण साझेदारी है. वैसे भी भारत एक अच्छा रक्षा बाजार है और ब्रिटेन उसमें निर्णायक भूमिका निभाना चाहता है. यानी यह अन्योन्याश्रित जरूरतों की साझेदारी है, जिसका लाभ दोनों ही देशों का मिलेगा. लेकिन देखना यह है कि प्रधानमंत्री कितनी तैयारी के साथ ब्रिटेन की यात्रा पर जाते हैं, जिससे कि ‘अपराजेय संयोजन’ अपने वास्तविक रूप को प्राप्त कर सके.
अपराजेय संयोजन?
ब्रिटिश सरकार के व्यवसाय, नवाचार तथा कौशल मंत्री साजिद जावेद ने सितंबर 2015 में कहा था कि ब्रिटेन और भारत दो अनोखे, अपरिहार्य साझेदार हैं, जो एक-दूसरे के विकास और समृद्धि में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान करते हैं.
उल्लेखनीय है कि स्टर्लिंग असेट्स रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था में ब्रिटेन के योगदानों को रेखांकित किया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि भारत के संगठित निजी क्षेत्र में प्रत्येक 20 में एक रोजगार ब्रिटिश कंपनियों द्वारा सृजित है. प्रधानमंत्री मोदी इसे ‘अपराजेय संयोजन’ की संज्ञा देते हैं (साजिद जावेद के शब्दों में).
दरअसल, ब्रिटेन के पास भारत सरकार की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से बहुतों में सहयोग करने हेतु विशेषज्ञता और संसाधन उपलब्ध हैं, विशेषकर- स्मार्ट शहरों के विकास, विज्ञान और नवाचार, हरित ऊर्जा और व्यवसाय के क्षेत्र में . लेकिन क्या इसे अपराजेय संयोजन माना जा सकता है? स्पष्ट रूप से नहीं, क्योंकि भारत अभी ब्रिटेन का स्वाभाविक साझीदार भी नहीं बन सका है, अपराजेय संयोजन इसके आगे की कड़ी है.
ग्रीन इकोनाॅमी के जरिये मेक इन इंडिया का रास्ता
23 सितंब, 2015 को नयी दिल्ली में आयोजित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन कार्यक्रम में ब्रिटेन की ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन मंत्री एम्बर रड ने ‘कॉनवीनयंट एक्शन’ का उल्लेख करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन से निबटने में भारत दुनिया की अगुवाई करेगा, जो कि पर्यावरण की रक्षा और उससे प्रेम की भारतीय परंपरा के अनुरूप है. वास्तव में नवीकरणीय ऊर्जा अर्थव्यवस्था के हित में है.
पिछले वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा की लागतों में देखी गयी है. न्यू क्लाइमेट इकॉनॉमी रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन साल में भारत में इसकी लागत 65 प्रतिशत कम हुई है. संभव है कि अब ब्रिटेन के साथ मिल कर हरित भवन, रैपिड ट्रांसपोर्ट, स्मार्ट ग्रिड और प्रभावी कचरा प्रबंधन भाविष्य के शहरों को आर्थिक रूप से किफायती, निम्न कार्बन आधारित और जलवायु हितैषी बनाने का प्रयास हो.
प्रौद्योगिकी और नवप्रवर्तन की ओर बढ़ते कदम
इस मुद्दे पर ब्रिटेन भारत के साथ काम करने का इच्छुक दिखता है. उदाहरण के लिए, दोनों देशों के दो वैज्ञानिकों के सम्मान में ब्रिटेन द्वारा ‘न्यूटन-भाभा’ नामक एक संयुक्त कार्यक्रम हेतु एक कोष का निर्माण किया जायेगा, जिसके लिए 5 वर्षों में 5 करोड़ पाउंड की धनराशि उपलब्ध करायी जा रही है.
इस कोष का इस्तेमाल नवीकरणीय ऊर्जा में शोध के लिए ब्रिटिश-भारतीय केंद्रों की स्थापना हेतु किया जायेगा. अन्य बातों के साथ-साथ, इनका लक्ष्य है ऊर्जा भंडारण के जरिये विच्छिन्न नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण में सुधार लाना. ब्रिटेन अपने 3.87 अरब पाउंड के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोष से मध्यम आय वाले तथा विकासशील देशों को निम्न कार्बन, जलवायु हितैषी प्रौद्योगिकियों को मदद देता है. उसके बहुपक्षीय स्वच्छ प्रौद्योगिकी कोष से भी भारत अपने स्वच्छ अभियान मे मदद हासिल कर सकता है.
स्वाभाविक साझेदारी की ओर
जी20 के किसी भी अन्य देश ने भारत में इतना निवेश नहीं किया है, जितना ब्रिटेन ने, बीपी और वोडाफोन जैसे विशालकाय बहुराष्ट्रीय उद्यमों से लेकर कोस्टा कॉफी और पेवर्स यूके शू-शॉप जैसे खुदरा व्यवसायियों के रूप में निवेश किया है. लेकिन यह साझेदारी एक-पक्षीय नहीं, बल्कि उभय-पक्षीय है.
यानी भारत संयुक्त रूप से यूरोपियन यूनियन के अन्य 27 देशों से भी ज्यादा अकेले ब्रिटेन में निवेश करता है, जिसका उदाहरण सबसे विशाल विनिर्माता भारत के स्वामित्व वाली कंपनी- टाटा के रूप में देखा जा सकता है है.
यही नहीं गत वर्ष भारत के प्रत्यक्ष निवेश ने ब्रिटेन में लगभग 8,000 नये रोजगारों का सृजन किया है. लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से क्षेत्र शेष हैं, जहां अनेक तरीकों से और ज्यादा विकास की संभावना निर्मित की जा सकती है.
यह संभावना दोनों देशों के मध्य निर्मित हो रहे घनिष्ठ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों में सकारात्मक रूप से सहायक हो सकती है. यही वजह है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत और ब्रिटेन को ‘स्वाभाविक मित्र’ बताते हैं, और भारत भी निवेश की तलाश में है.
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