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सांस लेने में भी कैंसर का खतरा!

अब तक यह तो माना जाता था कि वायु प्रदूषण से सांस और हृदय संबंधी परेशानियां होती हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा अध्ययन ने स्वास्थ्य संबंधी नयी चिंता पैदा कर दी है. अध्ययन के मुताबिक शहरों की प्रदूषित हवा अब कैंसर का प्रमुख कारक बन रही है. 2010 में दुनियाभर में फेफड़ों के […]

अब तक यह तो माना जाता था कि वायु प्रदूषण से सांस और हृदय संबंधी परेशानियां होती हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा अध्ययन ने स्वास्थ्य संबंधी नयी चिंता पैदा कर दी है. अध्ययन के मुताबिक शहरों की प्रदूषित हवा अब कैंसर का प्रमुख कारक बन रही है.

2010 में दुनियाभर में फेफड़ों के कैंसर से हुई करीब सवा दो लाख मौतों की वजह हवा में मौजूद कैंसर पैदा करनेवाले तत्व थे. चीन और भारत के भीड़भाड़ वाले शहरों में कैंसर पीड़ितों की तादाद बढ़ने की आशंका है.

नयी दिल्ली :यदि आप यह सोच कर खुश हैं कि तंबाकू का सेवन करके आप कैंसर से बचे रह सकते हैं, तो यह आपकी गलतफहमी साबित हो सकती है. अभी तक वायु प्रदूषण को सांस और हृदय संबंधी परेशानियों की बड़ी वजह माना जा रहा था, पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा अध्ययन ने स्वास्थ्य संबंधी नयी चिंता पैदा कर दी है.

अध्ययन के मुताबिक शहरों की प्रदूषित हवा अब कैंसर का प्रमुख कारक बन रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक ताजा अध्ययन के नतीजे में साफ कहा है कि प्रदूषित हवा में कैंसर पैदा करनेवाले तत्व मौजूद होते हैं. इसके चलते चीन और भारत के भीड़भाड़ वाले शहरों में कैंसर पीड़ितों की तादाद बढ़ने की आशंका है.

अध्ययन के मुताबिक 2010 में दुनियाभर में फेफड़ों के कैंसर से हुई करीब सवा दो लाख मौतों की वजह हवा में मौजूद कैंसर पैदा करनेवाले तत्व थे. इसके मद्देनजर संस्था ने वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरों के प्रति गंभीर चिंता जतायी है. अध्ययन रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एजेंसी ने कहा है कि शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण सिगरेट की लत से अधिक खतरनाक है.

इस चिंता के मद्देनजर अनेक टिप्पणियां भी आयी हैं कि मौजूदा औद्योगिक युग में आखिर इस धरती पर सांस लेने के लायक स्वच्छ वायु कहां मिल सकती सकती है. एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी में तो यहां तक कहा गया है कि यदि फेफड़े के कैंसर से बचना चाहते हैं, तो फिर इसका एक ही मुकम्मल उपाय है कि आप सांस लेना ही बंद कर दें.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर से संबंधित विशेष एजेंसी इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएसीआर) के सव्रे के अनुसार, वायु प्रदूषण से केवल फेफड़ों के कैंसर की ही आशंका नहीं होती. एजेंसी का कहना है कि प्रदूषित हवा और मूत्रशय के कैंसर के बीच भी सकारात्मक संबंध पाये गये हैं. यानी प्रदूषित हवा से मूत्रशय के कैंसर का खतरा भी बढ़ता जा रहा है.

हालांकि, इस एजेंसी का काम फिलहाल यह देखना नहीं है कि हवा में कितने खास किस्म के प्रदूषित पदार्थ मौजूद हैं, बल्कि यह देखना है कि लोग कैसी हवा में सांस ले रहे हैं. इसलिए इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि सांस लेनेवाली हवा की बारीकी से जांच की जाए, तो इसमें और भी प्रदूषित कण पाये जा सकते हैं.

हालात की भयावहता

इस एजेंसी ने इसी दिशा में अपने अध्ययन को केंद्रित करते हुए कुछ नतीजे हासिल किये हैं. अध्ययन में पाया गया कि प्रदूषित वायु के संपर्क में रहनेवालों में फेफड़े का कैंसर विकसित होने का खतरा उल्लेखनीय रूप से बढ़ जाता है. वर्ष 2010 में फेफड़ों के कैंसर से हुई करीब दो लाख 23 हजार लोगों की मौत की मुख्य वजह वायु प्रदूषण थी. इनमें ज्यादातर मौतें भारत और चीन समेत विकासशील देशों में हुई हैं.

माना जाता है कि अमेरिकी नागरिक स्वच्छ वायु में जीवनयापन कर रहे हैं और सेहतमंद हवा में सांस ले रहे हैं. लेकिन हाल में जिन्होंने लॉस एंजिल्स और कैलिफोर्निया की सेंट्रल घाटियों का दौरा किया होगा, वे यह समझ गये होंगे कि पश्चिमी देशों में भी यह समस्या भयावह होती जा रही है.

वायु का बढ़ता प्रदूषण

वायु प्रदूषण बढ़ने की कुछ वजहें स्पष्ट हैं. मसलन गाड़ियों और कलकारखानों से निकलनेवाला धुआं, बिजलीघरों, औद्योगिक इकाइयों, रिहाइशी भवनों आदि से रासायनिक उत्सर्जन और ताप के चलते कैंसर पैदा करनेवाले पदार्थ का हवा में घुलना. इसके अलावा खेती में इस्तेमाल होनेवाले कीटनाशक और दूसरे रसायन भी इसका कारण बनते हैं. इसीलिए पंजाब में, जहां कृषि में कीटनाशकों का इस्तेमाल सबसे अधिक होता है, कैंसर के मरीज भी अन्य राज्यों से ज्यादा हैं.

कैंसर के कारकों की नयी सूची

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने कैंसर पैदा करनेवाले उन तत्वों की सूची जारी की है, जिनसे वायु प्रदूषण की सक्रियता बढ़ती है. समूह एक के तौर पर वर्गीकृत किये गये कैंसर पैदा करनेवाले तत्वों के तौर पर कुछ हवा में मौजूद जहर की पहचान की गयी है. इसका मतलब है कि इनसान में कैंसर होने के पर्याप्त साक्ष्य हमारे वातावरण में मौजूद हैं. इनमें से ज्यादातर घातक पदार्थ ऊर्जा उत्पादन के संयंत्रों और वाहनों में जलनेवाले जीवाश्म ईंधनों से पैदा होते हैं.

कैंसर पैदा करनेवाले कारकों की आइएसीआर की सूची में वायु प्रदूषण के कारकों समेत वायु में मौजूद अनेक दूषित कणों को शामिल किया है, जिससे कैंसर होने की आशंका बढ़ती जा रही है. इस सूची में एस्बेस्टस, प्लूटोनियम और तंबाकू के धुएं को शामिल किया गया है.

साथ ही, सूर्य की घातक किरणों, एस्ट्रोजन थेरेपी, चाइनीजस्टाइल की नमकीन मछलियों और शराब जैसी खतरनाक चीजों को भी इस सूची में शामिल किया गया है.

जाहिर है, दुनिया के तमाम देशों को वायु प्रदूषण रोकने संबंधी उपायों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. भारत के लिए यह और भी चिंताजनक मसला है, क्योंकि हमारे देश में जहां कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं दमे के रोगियों की तादाद भी तेजी से बढ़ती गयी हैं.

हमारे देश में शहरों के लगातार सघन होते जाने, सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ बढ़ने और कलकारखानों के लगातार विस्तार की वजह से वायु प्रदूषण रोकने की दिशा में उठाये गये कदम बेअसर साबित हो रहे हैं. देश की कम ही औद्योगिक इकाइयां जल और वायु प्रदूषणरोधी यंत्र लगाने की अनिवार्यता का पालन करती हैं. अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के मद्देनजर हालात की गंभीरता पर नये सिरे से विचार की जरूरत है.

कैंसर से संघर्ष की कुछ गाथाएं

भारतीय मूल के युवा अमेरिकी डॉक्टर सिद्धार्थ मुखर्जी ने विगत वर्षो में कैंसर पर एक किताब लिखी थी, जो बहुत चर्चित हुई. एम्परर ऑफ ऑल मेलेडीज : बायोग्राफी ऑफ कैंसर नामक इस किताब के लिए उन्हें प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया था.

हालांकि, कैंसर से संबंधित विषयों पर अब तक सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं, लेकिन इस किताब की खासियत यह है कि लेखक ने इसे कैंसर के लक्षणों और बचाव पर नहीं, बल्कि कैंसर को लेकर आम लोगों की भावनाओं और बेबुनियाद आशंकाओं के मद्देनजर दिलचस्प रूप में लिखा है. किताब में कैंसर की जुबानी कैंसर का पूरा इतिहास बयान किया गया है.

यह किताब डॉक्टरों के लिए नहीं है, इसकी भाषा, प्रस्तुति और विषयवस्तु को एक आम इनसान को ध्यान में रख कर लिखा गया है. इसी प्रकार एक अन्य किताब इट्स नॉट अबाउट बाइक माई जर्नी बैक टू लाइफ में एक 24 वर्षीय युवक की संघर्ष कथा है. यह युवक कैंसर जैसी भयावह बीमारी को मात देकर अपने कैरियर के शिखर पर पहुंचता है.

इस किताब के लेखक अमेरिकी साइकिलिस्ट लांस आर्म्सट्रॉन्ग ने इस किताब में कैंसर से जूझने और फिर पूरी तरह से ठीक होते हुए दुनिया की सबसे कठिन साइकिल रेस टूर डी फ्रांस में जीत हासिल करने की अपनी कहानी बयां की है. यहां उल्लेखनीय है कि विगत वर्षो में प्रख्यात भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी युवराज सिंह को भी कैंसर ने अपने शिकंजे में लिया था.

टेस्ट ऑफ माई लाइफ में उन्होंने अपनी पूरी संघर्षगाथा बयां की है. हालांकि, उन्हें किस्मत का धनी माना जा रहा है और उन्होंने इस बीमारी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और पूरी तरह से सेहतमंद होकर आज फिर से खेल के मैदान में पहुंच चुके हैं. लेकिन जरूरी नहीं कि प्रत्येक कैंसर पीड़ित की किस्मत इतनी धनी हो और वह उससे जूझते हुए बीमारी को मात देने में कामयाब हो ही जाये.

भारत में कैंसर की रोकथाम के लिए वायु प्रदूषण पर लगाम जरूरी

भारत में कैंसर से होनेवाली मौतों की संख्या दिनदिन बढ़ती जा रही है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के क्लिनिकल ओंकोलॉजी विभाग के एक प्रोफेसर के मुताबिक, जीवनयापन के तौरतरीकों में बदलाव होने की वजह से कैंसर के सालाना दस लाख से ज्यादा नये मामले सामने रहे हैं.

इसकी वजह केवल तंबाकू का सेवन ही नहीं है. खासकर, महिलाओं में तो ऐसा कम ही देखा जाता है. महिलाओं में देरी से यानी अधिक उम्र में विवाह और ज्यादा देरी से मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) होने की वजह से ऐसा पाया गया है.

उधर, आइएआरसी का कहना है कि हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं यानी सांस के रूप में हमारे फेफड़ों में जानेवाली हवा भी प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त नहीं है. इस तरह हमारे आसपास के वातावरण में कैंसर पैदा करनेवाले बहुत से कण मौजूद हैं.

भारत में भयावहता

इस वर्ष के प्रारंभ में येल यूनिवर्सिटी ने वायु प्रदूषण के संबंध में एक सर्वेक्षण किया था. 132 देशों में किये गये अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सांस लेनेवाली हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है. खासकर, भारत में थर्मल पावर प्लांटों और औद्योगिक उत्सजर्न समेत परिवहन के साधनों से वायु प्रदूषण की स्थिति भयावह हालात में पहुंच चुकी है.

ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू जलावन के तौर पर इस्तेमाल की जानेवाली लकड़ियों और ठंडी के मौसम में जैव ईंधनों को जलाने से वायु प्रदूषण की गंभीरता बढ़ती जा रही है. माना जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में वायु प्रदूषण पैदा होने के ये प्राथमिक कारण हैं. इन्हीं वजहों से हमारे वायुमंडल में सालाना 16.5 करोड़ टन दहन उत्पाद पैदा होते हैं. समय रहते यदि इनका मुकम्मल उपाय नहीं किया गया, तो हालात की गंभीरता बढ़ सकती है.

अर्थव्यवस्था पर भार

विश्व बैंक के एक अध्ययन में बताया गया है कि आंतरिक वायु प्रदूषण और दूषित वायुमंडल के चलते होनेवाली मौतें अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बोझ डालती हैं. भारत के संदर्भ में अनुमान लगाया गया है कि बाहरी वायु प्रदूषण की वजहों से 29 फीसदी और आंतरिक वायु प्रदूषण की इन वजहों से 23 फीसदी आर्थिक बोझ बढ़ गया है.

इस खास प्रदूषण के चलते गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की हमें बेहद कीमत चुकानी पड़ रही है. अनुमान लगाया गया है कि इससे देश की जीडीपी तीन फीसदी तक प्रभावित होती है. इस वजह से वार्षिक तौर पर 1,09,000 वयस्कों की समय से पहले और पांच वर्ष से कम उम्र के 7,500 बच्चों की मौत हो जाती है. इसके अलावा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के सालाना 48,000 मामले और अस्पताल में भरती होने के 3,70,000 मामले सामने आते हैं.

दिल्ली, कोलकाता, झारखंड में वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर

भारत में दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड में कैंसर के कारणों को पैदा करनेवाले वायु प्रदूषण के स्तर को बेहद ज्यादा पाया गया है. वायु प्रदूषण पर नजर रखनेवाली सरकार की संस्था सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड यानी सीपीसीबी के वायु गुणवत्ता के आंकड़ों (2010) के मुताबिक, कोलकाता और दिल्ली में वायु प्रदूषण की भयावहता सबसे खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के 2009-11 के आंकड़ों में दर्शाया गया है कि तंबाकू और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन की तरह वायुमंडल में मौजूद प्लूटोनियम भी कैंसर का एक कारण बन चुका है. आइसीएमआर के आंकड़ों में भी बताया गया है कि वर्ष 2009-11 के दौरान दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में फेफड़े के कैंसर के मामले सबसे ज्यादा पाये गये.

उधर, नेशनल कैंसर कंट्रोल प्रोग्राम का अनुमान है कि भारत में वर्ष 2026 तक कैंसर के कई प्रारूप से पीड़ितों की संख्या 14 लाख से भी ज्यादा हो सकती है. बताया गया है कि कोलकाता में वर्ष 2009-11 के दौरान कैंसर के 20 अनेक प्रकार के मामले सामने आये. इसमें सबसे ज्यादा मामले यानी 12 फीसदी तो केवल फेफड़े के कैंसर से जुड़े थे.

इसी तरह सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ लंग कैंसर के मुताबिक, भारत में इस बीमारी से पीड़ित तकरीबन 57,000 लोगों का प्रत्येक वर्ष इलाज किया जाता है.

वैश्विक वायु गुणवत्ता आंकड़े– 2005 पर आधारित एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स पत्रिका में इस वर्ष के आरंभ में एक रिपोर्ट छापी गयी.

इसमें बताया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते पैदा होनेवाली बीमारियों (फेफड़े के कैंसर समेत अन्य कई बीमारियां) की वजह से कोलकाता में सालाना 14,200 लोगों और दिल्ली में 17,600 लोगों की समय से पूर्व मौत होने का अनुमान है.

इसी संदर्भ में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कैंसर के सालाना 13,000 नये मामले दर्ज किये जाते हैं और इनमें से 10 फीसदी मामले फेफड़े के कैंसर के होते हैं. इसमें चिंताजनक पहलू यह सामने आया है कि ऐसे लोगों में भी फेफड़े का कैंसर पाया गया है, जो अब तक किसी प्रकार के धूम्रपान से वंचित रहे हैं यानी उन्होंने किसी तरह का धूम्रपान नहीं किया है.

कोलकाता के हालात

कोलकाता की हवा मुख्यत: वाहनों से होनेवाले विषाक्त उत्सजर्न से प्रदूषित है. एशियाई विकास बैंक के अध्ययन के मुताबिक, कोलकाता में वाहनों से पैदा होनेवाले कुल प्रदूषण का तकरीबन 40 फीसदी हिस्सा बसों के चलते होता है. इसी तरह कुल प्रदूषण का तकरीबन 32 फीसदी हिस्सा शहर में चलनेवाले ऑटो की वजह से होता है. विभिन्न अन्य अध्ययनों के मुताबिक, कोलकाता शहर के वायु प्रदूषण में सभी प्रकार के वाहनों का मिश्रित योगदान 50 से 70 फीसदी के बीच है.

रिपोर्टो के मुताबिक न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद वर्ष 2008 में प्रदूषण के स्तर में कुछ कमी जरूर आयी, लेकिन पिछले तीन वर्षो से यह फिर से बढ़ता जा रहा है. इस शहर में दो स्ट्रोक वाले ऑटो के चलाये जाने पर पाबंदी है, लेकिन शहर के कई इलाकों में ये धड़ल्ले से चल रहे हैं. इनमें इस्तेमाल किये जानेवाले मिश्रित ईंधन से वातावरण में प्रदूषित कणों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है.

राजधानी दिल्ली के हालात

ज्यादा वक्त हुआ, जब दिल्ली और दूसरे महानगरों में सीसारहित डीजल और पेट्रोल की बिक्री शुरू की गयी. गाड़ियों में कैटलिक कनवर्टर यानी धुएं के हानिकारक तत्वों को पानी में बदलने वाला यंत्र लगाना अनिवार्य किया गया. फिर सीएनजी का इस्तेमाल शुरू हुआ. कुछ समय तक इसका सकारात्मक असर रहा, पर जल्द ही वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित पैमाने से बहुत ऊपर पहुंच गया.दिल्ली के औद्योगिक इलाकों में हर समय धुएं का गुबार इस कदर उठता रहता है कि सामान्य रूप से सांस ले पाना मुश्किल होता है.

दरअसल, वायु प्रदूषण औद्योगिक नियमन के साथसाथ शहरी नियोजन और परिवहन नीति से भी ताल्लुक रखता है. भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में गाड़ियों की बढ़ती तादाद को विकास का प्रतीक बनाना तो सुरक्षित और सुचारु यातायात के लिहाज से ठीक है, लोगों की सेहत की दृष्टि से, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था सुविधाजनक और भरोसेमंद नहीं हो पायी है, जिससे निजी वाहनों के उपयोग पर लगाम लगाने में मदद नहीं मिल पाती.

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