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सामंती मानसिकता को खत्म करना होगा

एनके चौधरी अर्थशास्त्री एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, पटना विवि परिवारवाद से लोकतंत्र समाप्त हो जाता है. जिस पार्टी में परिवार का बर्चस्व रहता है, उसमें दूसरों को आगे आने का मौका नहीं मिलता है. वह पार्टी अपने आप में लोकतांत्रिक नहीं होती है. वैसी, पार्टी अगर सत्ता में आती है, तब नीतियां लोगों की जरूरतों के […]

एनके चौधरी
अर्थशास्त्री एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, पटना विवि
परिवारवाद से लोकतंत्र समाप्त हो जाता है. जिस पार्टी में परिवार का बर्चस्व रहता है, उसमें दूसरों को आगे आने का मौका नहीं मिलता है. वह पार्टी अपने आप में लोकतांत्रिक नहीं होती है. वैसी, पार्टी अगर सत्ता में आती है, तब नीतियां लोगों की जरूरतों के हिसाब से नहीं, परिवार की इच्छा के हिसाब से बनने लगती हैं. सत्ता का केंद्रीकरण हो जाता है. कह सकते हैं कि लोकतंत्र में परिवारवाद तानाशाही व्यवस्था की तरह हो जाती है. इसकी शुरुआत कांग्रेस से हुई थी. लेकिन, देश की करीब-करीब सभी क्षेत्रीय पार्टयिों में यह फैल गया है.
यहां यह गौर करने वाली बात है कि इन पार्टियों के नेताओं का राजनीतिक कॅरियर कांग्रेस में परिवारवाद के विरोध से ही शुरू हुआ. कुछ पार्टयिों में परिवारवाद नहीं है, लेकिन वहां सिर्फ बड़े नेताओं की ही चलती है. वह अपने सामने दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देते हैं. बिहार में परिवारवाद के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यहां के लोगों की सामंती मानसिकता है. हमारा समाज आज भी इससे बाहर नहीं निकल पाया है. भूमि सुधार लागू नहीं हुए हैं.
अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है. इसे पाटने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है. हमारे बिहारी समाज की तरफ से भी इसे समाप्त करने की कोई पहल नहीं हो रही है. बिहार के विकास नहीं करने का सबसे बड़ा कारण यही है. कुछ दल ऐसे भी हैं, जहां खुलकर परिवारवाद सामने नहीं आता है.
लेकिन, बेटे-बेटी या संबंधी को टिकट नहीं मिलने पर लोग अपनी नाराजगी खुलेआम जाहिर करने से हिचकते नहीं हैं. परिवारवाद को समाप्त करने के लिए बिहार की जनता को ही आगे आना होगा. उन्हें अपने वोट की ताकत से लोकतंत्र फैले इस जहर को खत्म करना होगा. लेकिन, इसके लिए बड़े सामाजिक बदलाव की जरूरत है तभी बिहारी समाज सामंती मानसिकता से बाहर आ सकेगा. जिस समाज में सामंती मानसिकता वाले लोगों का प्रभुत्व रहेगा, वहां ‘आइडेंटिटी पॉलिटिक्स’ ही होगी.
और इस तरह की राजनीति में कभी भी आमलोगों के हित की नीतियां नहीं बन सकती हैं, क्योंकि नीति बनाने वाली संस्था पर सिर्फ एक परिवार का कब्जा होता है. वह अपने परिवार से बाहर के हित के बारे में सोच भी नहीं पाता है. जो आम लोगों के बारे में सोचता है, उसे परिवार के लोग उस संस्था में रहने नहीं देते हैं. इसलिए लोकतंत्र तभी सफल होता है, जब सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है और इसके लिए परिवारवाद को खत्म करना जरूरी है.

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