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पॉलिटिक्स में आगे, वोट में पीछे

चुनाव-प्रक्रिया में जनता की भागीदारी संसदीय लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है. इससे लोकतंत्र की मजबूती को मापा जा सकता है. बिहार की गिनती राजनीतिक रूप से चेतनशील राज्य के रूप में होती है. यहां मतदाताओं की संख्या में तो वृद्धि हुई है, लेकिन उस अनुपात में उनकी भागीदारी मतदान में नहीं दिखती है. 1990 से […]

चुनाव-प्रक्रिया में जनता की भागीदारी संसदीय लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है. इससे लोकतंत्र की मजबूती को मापा जा सकता है. बिहार की गिनती राजनीतिक रूप से चेतनशील राज्य के रूप में होती है.
यहां मतदाताओं की संख्या में तो वृद्धि हुई है, लेकिन उस अनुपात में उनकी भागीदारी मतदान में नहीं दिखती है. 1990 से लेकर 2000 तक के बीच हुए तीन विधानसभा चुनावों को अलग कर दें, तो वोटिंग का प्रतिशत 60 से कम ही रहा है. दो माह बाद बिहार विधानसभा चुनाव होने वाला है. ऐसे में यह जानना प्रासंगिक होगा कि बिहार में मतदाताओं की भागीदारी का रुझान कैसा रहा है.
रजनीश उपाध्याय
बिहार की छवि जिस तरह राजनीतिक रूप से एक सचेत राज्य की रही है, वह चुनावों में मतदान में भागीदारी के रूप में उस तरह नहीं दिखती है. यहां चुनाव में मतदाताओं भागीदारी बढ़ाना अब भी बड़ी चुनौती है. 1990 से 2000 के बीच के काल को छोड़ दें, तो पहले आम चुनाव से लेकर 2010 तक के बिहार के विधानसभा चुनावों में वोटिंग का प्रतिशत 60 फीसदी से नीचे रहा है.
आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में 42.60 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे. तब पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव कराये गये थे. इसके बाद के चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी थोड़ी बढ़ी, लेकिन तब भी आधे से ज्यादा मतदाता चुनाव से अलग रहे. 1967 में वोटिंग प्रतिशत बढ़ कर 51 फीसदी पहुंचा. 1977 में कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के पक्ष में लहर के बावजूद मतदान का प्रतिशत 50 फीसदी के आसपास ही रहा.
बिहार विधानसभा के चुनावों में 1990 से लेकर 2000 के बीच आक्रामक मतदान हुए. इस अवधि में तीन विधानसभा चुनाव हुए. वर्ष 2000 में हुए मतदान के दौरान मतदाताओं की भागीदारी का रेकॉर्ड अब तक नहीं टूट पाया है. इस साल 62.57 फीसदी वोट पड़े थे. चुनाव में राजद को 28.34 फीसदी और समता पार्टी को 8.65 फीसदी वोट मिले थे.
भाजपा के पक्ष में 21 फीसदी वोट पड़े. लालू प्रसाद की पार्टी के पक्ष में अब तक का यह सबसे ज्यादा वोट है. 1990 में वह सत्ता में आये थे. 1995 तक उन्होंने बिहार में अपने पक्ष में मजबूत समीकरण बना लिय़ा था. लेकिन, 1996 में चारा घोटाले के उजागर होने के बाद जनता दल में दरार आयी और दो साल बाद ही लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी. 2000 के चुनाव में लालू प्रसाद के खिलाफ मजबूत राजनीतिक गोलबंदी थी. लेकिन, स्पष्ट तौर पर आक्रामक वोटिंग लालू प्रसाद के पक्ष में गया था.
बिहार के चुनावों पर शोध करने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत के मुताबिक, 1990 एक तरह से टर्निग प्वाइंट रहा है. समाज के हाशिये पर पड़ी जातियों और कमजोर लोगों में वोट के अधिकार के प्रति ललक बढ़ी. इसके पहले तक तो गरीबों के वोट पर कब्जा हो जाता था. 1990 के बाद के दौर में समाज में बड़ा परिवर्तन हुआ. चुनाव सुधार के लिए भी कई कदम उठाये गये थे. इन सबका रेफलेक्शन वोटिंग फीसदी की बढ़ोतरी के रूप में दिखता है.
वर्ष 2000 के बाद के दो विधानसभा चुनावों (फरवरी, 2005 एवं अक्तूबर, 2005) में वोटिंग फीसदी अचानक गिरा. हालांकि दोनों चुनावों में भाजपा-जदयू गंठबंधन लाभ में रही. फरवरी, 2005 में तो नीतीश कुमार एनडीए की सरकार गठित करते-करते रह गये, लेकिन उसी साल अक्तूबर में हुए
विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू को स्पष्ट बहुमत मिल गया. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार गठित हुई. चुनाव मामलों के जानकार मानते हैं कि वर्ष 2005 के चुनावों में बड़े पैमाने पर केंद्रीय अर्ध सैनिक बल को प्रतिनियुक्त किया गया था.
इस वजह से मतदान की गति धीमी रही. सुरक्षा के कड़े इंतजाम का नतीजा रहा कि मतदान के दौरान हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई. यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि उसी साल पहली बार इवीएम के जरिये वोट कराये गये थे. बिहार में फर्जी वोटिंग रोकने के लिए चुनाव आयोग ने कई कड़े कदम उठाये थे.
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में 2005 के चुनाव के मुकाबले मतदान थोड़ा ज्यादा हुआ. इस चुनाव का विश्लेषण इस रूप में भी किया जाता है कि मतदाताओं ने नीतीश कुमार के काम-काज के आधार पर उन्हें जनादेश दिया था. वर्ष 2000 में मतदान का रेकॉर्ड पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भी नहीं टूट पाया. इस चुनाव में नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर थी और नकारात्मक वोटिंग के बजाये मतदाताओं ने नयी सरकार के गठन के पक्ष में वोटिंग किया था.
देश का राष्ट्रीय औसत वोटिंग जहां 66.44 फीसदी रहा, वहीं बिहार में 56.23 फीसदी लोगों ने वोट डाले. देश के कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में वोटिंग फीसदी 70 से ज्यादा होता रहा है. राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 75 फीसदी वोटिंग हुई थी. पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में तो 84 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे. इस बार बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने काफी पहले से ही मतदाताओं को जागरुक करने का अभियान चला रखा है.
गुणवत्ता और मात्र दोनों ही रूपों में मतदाताओं का रुझान बढ़ाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं. चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी जितनी बढ़ेगी, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा और उसकी जड़ें भी गहरी होंगी. यह उम्मीद बंध रही है कि इस साल अक्तूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी के मामले में बिहार अपना पुराना रेकॉर्ड तोड़ेगा.
कब कितना पड़ा वोट
चुनाव वर्ष वोट(%)
1952 42.60
1957 43.24
1962 44.47
1967 51.51
1969 52.79
1972 52.79
1977 50.51
1980 57.28
1985 56.27
1990 62.04
1995 61.79
2000 62.57
2005 (फरवरी) 46.50
2005 (अक्टूबर) 45.85
2010 52.67

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