-अध्यादेश पर राहुल गांधी का बयान-
।।अजय सिंह, मैनेजिंग।।
(एडिटर, गवर्नेस नाउ)
इस समय राहुल गांधी मौजूदा हकीकत बयां कर रहे हैं. वे वही कह रहे हैं, जिसकी मांग सिविल सोसाइटी की ओर से लंबे समय से उठ रही है. इसलिए राहुल के बयान को दूसरे सवालों में न उलझा कर, इसका स्वागत होना चाहिए और असली मुद्दे पर बहस को आगे बढ़ाना चाहिए.
कल देश में दो बड़ी घटनाएं हुईं. पहला, सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्याशियों को नकारने के मतदाताओं के अधिकार की दिशा में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. दूसरा, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दोषी ठहराये गये सांसदों, विधायकों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिये अपनी ही पार्टी के सरकार द्वारा लाये गये विवादास्पद अध्यादेश को ‘बकवास’ करार दिया. साथ ही कहा कि ‘उनकी सरकार ने जो किया है, वह गलत है. इस देश में यदि हम भ्रष्टाचार से संघर्ष करना चाहते हैं, तो इस तरह के छोटे-छोटे समझौते करना जारी नहीं रख सकते.’ इन दोनों घटनाओं को एक साथ और समग्रता में देखने की जरूरत है. इन घटनाओं से प्रजातांत्रिक प्रवृत्तियां मजबूत हुई हैं और व्यवस्था में सुधार की जनाकांक्षा को संबल मिला है. इसलिए इन दोनों का स्वागत किया जाना चाहिए.
पहली घटना संस्थागत प्रयास है, जबकि दूसरी घटना व्यक्तिगत प्रयास. लेकिन हम कह सकते हैं कि सुधार के ये दोनों ही प्रयास राजनीति से बाहर से किये गये हैं. राहुल गांधी भले ही राजनेता हों, लेकिन उन्होंने राजनीति का बचाव नहीं किया है. राहुल ने साफ कहा कि दागियों का संरक्षण सभी पार्टियां करती हैं, हमारी पार्टी भी करती है. इस तरह उन्होंने राजनीति में सुधार की जरूरत पर जोर दिया. इसलिए यह बयान सही दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
राहुल के बयान पर कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि उनकी भाषा संयत नहीं थी. उनके बयान का समय सही नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री विदेश में हैं. असल में ऐसे सवालों के जरिये बहस को मूल मुद्दे से भटकाने की कोशिश की जा रही है. राहुल ने अंगरेजी में किसी असंसदीय शब्द का प्रयोग नहीं किया था. और फिर प्रधानमंत्री की छवि की चिंता उन लोगों और पार्टियों को हो रही है, जो लगातार उनकी छवि पर सवाल उठाते रहे हैं, उन्हें सबसे कमजोर प्रधानमंत्री और भ्रष्टों का मुखिया कहते रहे हैं. और फिर जो लोग प्रधानमंत्री की छवि की बात कर रहे हैं, या राहुल के बयान पर सवाल उठा रहे हैं, वे भी सदन में दागियों को बचाने की सरकार की कोशिशों के साथ थे. असल मुद्दा यह है कि देश में इस समय राजनीति को भ्रष्टाचारियों और अपराधियों से मुक्त कराने का एक माहौल बना है. बहस इस बात पर होनी चाहिए कि इस माहौल को कैसे और मजबूत किया जाये और एक ठोस मुकाम तक पहुंचाया जाये. हालांकि बहस में यह सवाल पूछा जा सकता है कि राहुल नौ साल तक चुप क्यों रहे और अब वे कहीं राजनीति तो नहीं कर रहे हैं? लेकिन मेरा मानना है कि नौ साल के बाद ही सही, राहुल ने जो मुद्दा उठाया है, वह बहुत ही मौजू है. इस मुद्दे से जुड़ा है सरकार की जवाबदेही का सवाल. यदि किसी के बयान से सरकार जवाबदेह होती है, तो वे चाहे राहुल गांधी हों या अन्ना हजारे जैसे लोग, इस तरह के बयानों का स्वागत ही किया जाना चाहिए.
हकीकत यह है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं. भारत के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो दागियों को कांग्रेस ने जितना बचाया है, भाजपा ने भी उतना ही संरक्षण दिया है. याद कीजिए, उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी, तब सत्ता पक्ष में 20 के करीब ऐसे लोग थे, जो यूपी के भयानक अपराधी माने जाते थे. आज भी सरकारें बीजेपी की हों या कांग्रेस की, सभी में गंभीर अपराध के आरोपी मौजूद हैं. राहुल ने इस सच्चई को साफ शब्दों में स्वीकार किया है. उनका पूरा बयान जनभावना के अनुरूप है. इसलिए उनकी भाषा पर सवाल उठाना सही नहीं होगा. देखना यह होगा कि राहुल गांधी अपने इस बयान के साथ कितनी दूर तक जाते हैं.
याद कीजिए राजीव गांधी के दो बयान, आज भी अकसर चर्चा में रहते हैं. उन्होंने कहा था कि सरकार द्वारा भेजे गये एक रुपया में सिर्फ 15 पैसे जनता तक पहुंचते हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस चाटुकारों से घिरी है, पार्टी को इससे मुक्ति दिलाने की जरूरत है. तब भी देश में एक उम्मीद जगी थी कि शायद यह एक नये बदलाव की शुरुआत है. लेकिन राजीव गांधी बाद में खुद चाटुकारों से घिरे दिखे. इसी तरह राहुल गांधी भी यदि भविष्य में दागियों से घिरे नजर आएं, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा. लेकिन इसकी चिंता हमें नहीं, राहुल गांधी को करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करके वे खुद कमजोर होंगे. यदि कल दिया गया उनका बयान सिर्फ एक तात्कालिक चालाकी भर है और भविष्य में उनका आचरण भी जनभावना के विपरीत होगा, तब मतदाता उन्हें सबक सिखाएंगे. लेकिन इस समय राहुल मौजूदा हकीकत बयां कर रहे हैं. वे वही कह रहे हैं, जिसकी मांग सिविल सोसाइटी की ओर से लंबे समय से उठ रही है. इसलिए राहुल के बयान को दूसरे सवालों में न उलझा कर, इसका स्वागत होना चाहिए और असली मुद्दे पर बहस को आगे बढ़ाना चाहिए.
(रंजन राजन से बातचीत पर आधारित)