हुगली : हावड़ा से लेकर बांसबेडिया तक हुगली नदी के दोनों किनारों पर फैले जूट कारखाने एक समय पश्चिम बंगाल का गौरव हुआ करते थे. पर अब कई वजहों से हालात उनके अनुकूल नहीं रह गये हैं. अनेक मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में गुजरात, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व बिहार आदि राज्यों का रुख करने लगे हैं.
कभी बंगाल के जूट कारखाने मजदूरों के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया थे. बदलते वक्त के साथ कल-कारखानों के बंद होने और मिल प्रबंधन के निरंकुश रवैये से चटकल मजदूरों की हालत पतली होती गयी है. आज हाल यह है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद भी कई चटकल मजदूर अपने भाग्य को कोसते रहते हैं. समय पर इनको अपने हक का पैसा भी नसीब नहीं हो रहा है.
अपने हिस्से के बकाया के लिए उन्हें मानसिक प्रताड़ना ङोलनी पड़ रही है. कई रिटायर मजदूरों की मौत के बाद उनकी विधवाओं तक को बकाया नहीं मिला है. कई मामलों में इनका परिवार भी बिखर जाता है. ऐसी ही दयनीय कहानी विक्टोरिया जूट मिल के अवसर प्राप्त श्रमिक जगलाल साव व दिवंगत श्रमिक राजेद्र चौधरी के परिवार का है.
भारतीय मजदूर संघ के हुगली जिला के नेता उमेश चौधरी ने बताया कि भद्रेश्वर थानांतर्गत तेलिनीपाड़ा की विक्टोरिया जूट मिल के 700 रिटायर श्रमिकों के करोड़ों रुपये अभी तक बकाया हैं.
तृणमूल श्रमिक संगठन के नेता विनय कुमार ने बताया कि ये हालत केवल विक्टोरिया जूट मिल के अवकाश प्राप्त श्रमिकों की ही नहीं, बल्कि चांपदानी के नॉर्थब्रुक, एंगस ,भद्रेश्वर की श्यामनगर जूट मिल, श्रीरामपुर के इंडिया व वेलिंग्टन के मजदूरों की भी है.
चांपदानी के नॉर्थब्रुक जूट मिल प्रबंधन के पास लगभग 500 अवकाश प्राप्त श्रमिकों के ग्रेच्युटी के 2.5 करोड़ रुपये, एंगस जूट मिल के लगभग 600 श्रमिकों का चार करोड़, भद्रेश्वर के श्यामनगर जूट मिल के 500 मजदूरों के 4.5 करोड़ रुपये बकाया हैं. इस संबंध में सीटू के हुगली जिला सभापति शांतश्री चट्टोपाध्याय ने कहा कि मजदूरों के रिटायरमेंट के पैसे का सबसे ज्यादा बकाया रकम गोंदलपाड़ा जूट मिल ,श्रीरामपुर के हेस्टिंग्स व वेलिंग्टन जूट मिलो में हैं, जहां कुल मिलकर लगभग 1500 श्रमिकों के 27 करोड़ रुपये बकाया हैं.
यहां तक कि रिटायरमेंट का रुपया लगभग 7-8 वर्षो से नहीं मिलने के कारण चंदननगर महकमे के तेलिनीपाड़ा विक्टोरिया जूट मिल के दु:खन प्रसाद जैसे श्रमिकों को अपना परिवार पालने के लिए ढलती उम्र में असल वेतन के आधे पर काम करना पड़ रहा है.
– भोलानाथ साहा –