दक्षा वैदकर
गलतियां हर किसी से होती हैं. कभी काम अधिक होने पर हो जाती हैं, तो कभी हड़बड़ी में. लेकिन यह बात पक्की है कि कोई भी इनसान जान-बुझ कर गलतियां नहीं करना चाहता. वह तो यही चाहता है कि उसका काम परफेक्ट हो और लोग उसकी तारीफ करें. अगर तारीफ न भी करें, तो कम-से-कम बुराई तो बिल्कुल न हो.
और अगर बुराई हो करें, तो वह सभी के सामने न हो. अकेले में बुला कर डांट दिया जाये या गलती बता दी जाये. यह इच्छा रखना बहुत आम बात है. लेकिन हर बार ऐसे समझदार लोग नहीं मिलते, जो आपकी गलतियां अकेले में चुपके से बतायें.
कई लोग हैं, जो पीछे से फटी ड्रेस, खुली हुई चेन, टूटा हुए बटन, खिसकी हुई ड्रेस, गलत इंगलिश जैसी गलतियों को यूं ही सभी के सामने ठीक करने को बोल देते हैं. उन्हें लगता है कि उन्होंने ये गलतियां बता कर बहुत महान काम किया, लेकिन ऐसा है नहीं. यदि आप सच में किसी की मदद करना चाहते, तो सभी के सामने नहीं बोलते. आप उसे अकेले में ले जा कर बोल सकते हैं. मोबाइल पर मैसेज कर सकते हैं. इस तरह गलती भी सुधर जाती और सामने वाले को सभी के सामने अपमानित भी नहीं होना पड़ता.
यही बात लीडर्स पर भी लागू होती है. खास तौर पर उन अधिकारियों के ऊपर, जिनके पास केबिन हैं. अगर उन्हें किसी कर्मचारी को डांटना हो, उसकी गलती बतानी हो, तो बेहतर है कि वह उन्हें केबिन में बुला कर डांटे. ऐसा करने से कर्मचारी के दिल में भी आपकी छवि अच्छी बनेगी कि आपने सभी के सामने उसे अपमानित नहीं किया और वह अपनी गलती भी जान जायेगा. और हम भी तो यही चाहते हैं कि कर्मचारी अपनी गलती समङो और उसे सुधार ले.
जब हमारा उद्देश्य केबिन में डांट कर ही पूरा हो सकता है, तो सभी के सामने डांटने का क्या फायदा? हर बॉस को खुद से यह सवाल पूछना होगा कि वे समर्पित, आदर देने वाले कर्मचारी चाहते हैं या फिर ऐसा कर्मचारी अपने आसपास रखना चाहते हैं, जो उनसे दिल से नफरत करें और उन्हें गालियां दें क्योंकि उन्होंने सभी के सामने उसका अपमान किया.
बात पते की..
गलती बताने का मकसद केवल और केवल सामने वाले की गलती सुधारना होना चाहिए. अगर मकसद बदल जायेगा, तो रिश्तों में खटास आयेगी.
अगर कोई कर्मचारी गलती दोहरा रहा है और जान-बुझ कर नहीं सुधर रहा है, तो फिर आप उसे डराने के लिहाज से पब्लिकली बोल सकते हैं.