एक फिल्म:एक याद
कुछ फिल्में एक याद की तरह जिंदगी में रह जाती हैं. यह याद गुजरते वक्त के साथ भी धुंधली नहीं पड़ती. उसके संवाद, दृश्य और किरदार एक हल्की सी आहट पाकर सामने आ खड़े होते हैं. ऐसी ही एक फिल्म की याद साझा कर रहे हैं निर्देशक सतीश कौशिक
मैं ने जब फिल्म ‘उपकार’ देखी थी, तो मुझे लगा था कि अरे यार क्या किसी एक फिल्म को देख कर कोई आदमी हंस भी सकता है, रो भी सकता है. दुखी भी हो सकता है. खुश भी हो सकता है. ‘उपकार’ में वह सारी बातें थीं और यह फिल्म देख कर मुझे हिंदी सिनेमा से प्यार हो गया था. फिल्म में मनोज कुमार एक संवाद बोलते हैं कि ‘फसल भी कोई बेचने की चीज है, लालाजी, फसल काटने के बाद तो अनाज बेचा जाता है.’ यह एक संवाद दर्शाता है कि आप क्या कहना चाहते हैं फिल्म के माध्यम से.
इस फिल्म में जिस तरह मनोज कुमार और प्राण साहब ने काम किया है, वह मैं कभी भूल नहीं सकता. प्राण साहब हमारे बीच नहीं, लेकिन उनकी यह फिल्म हमेशा हमारे जेहन में जिंदा रहेगी. ‘उपकार’ के गाने देखिए, जिस तरह उस वक्त कैमरे के एंगल को गानों के मूव्स के साथ इस्तेमाल किया गया है, वह कमाल का है. इस फिल्म ने मेरे मन को इतनी गहराई से छुआ कि मुझे पूरी फिल्म फ्रेम दर फ्रेम याद है. फिल्म का एक गाना है-‘मेरे देश की धरती’ और कैमरा उनके साथ पैन कर रहा है फिर पूरा खेत नजर आने लगता है. भारतीय सिनेमा में जितनी खूबसूरती से फिल्म ‘उपकार’ में खेत दिखाये गये हैं शायद ही किसी फिल्म में दिखाये गये होंगे.
उस वक्त मैं फिल्में नहीं बनाता था. लेकिन इस फिल्म को देखते हुए मुझे एहसास हो गया था कि अरे सिनेमा तो कमाल की चीज है. आप किसी एक सीन से पूरी दुनिया को कनेक्ट कर सकते हैं. वहां से मैं सिनेमा बनाने के लिए बावला हो गया. इस फिल्म में दिखाये गये जंप कट मुझे बहुत ज्यादा फैशिनेट किया करते थे. लगता था कि एक गाने में पूरी बात कह देते हैं लोग. फिल्म में मनोज कुमार साहब कहते हैं कि ‘पूरन ये ले जमीन के कागजात चाहिए न तुझे ले ले..’ उफ! लगता है जैसे आपकी आंखों के सामने सब कुछ घट रहा है. मैंने हालांकि कभी ऐसी फिल्में नहीं बनायीं, लेकिन मेरे लिए हमेशा यह फिल्म खास रहेगी. मैंने इसी फिल्म को देख देख कर फिल्म मेकिंग सीखी है और मैं हमेशा ‘उपकार’ की यादों को जिंदा रखना चाहूंगा.
।।अनुप्रिया।।