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बहुत कुछ सिखा गया झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 का परिणाम

रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को पराजय का मुंह देखना पड़ा है. गौरतलब यह कि ये पूर्व मुख्यमंत्री अलग-अलग राजनीतिक दलों से सरोकार रखते हैं और इनकी राजनीतिक शैली भी अलग है. भाजपा के कद्दावर नेता व राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा अपने परंपरागत खरसावां निर्वाचन क्षेत्र […]

रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को पराजय का मुंह देखना पड़ा है. गौरतलब यह कि ये पूर्व मुख्यमंत्री अलग-अलग राजनीतिक दलों से सरोकार रखते हैं और इनकी राजनीतिक शैली भी अलग है. भाजपा के कद्दावर नेता व राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा अपने परंपरागत खरसावां निर्वाचन क्षेत्र से बड़े अंतर से लगभग 22 हजार वोटों से हार गये हैं. हालांकि इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी है.
वहीं, राज्य के पहले मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल मरांडी धनवार सीट से चुनाव हार चुके हैं. वे आखिरी राउंड की गिनती में भाकपा माले प्रत्याशी राजकुमार यादव से 4500 वोटों से पीछे थे. धनवार के परिणाम की औपचारिक घोषणा होना बाकी है. मरांडी एक और सीट गिरिडीह से भी चुनाव मैदान में हैं और वे वहां भाजपा उम्मीदवार निर्भय शाहाबादी से पीछे चल रहे हैं. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री व जय भारत पार्टी के अगुवा मधु कोड़ा मंझगांव सीट से चुनाव हार चुके हैं.

इन तीन दिग्गजों के अलावा राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री व झामुमो नेता हेमंत सोरेन को भाजपा उम्मीदवार लुईस मरांडी से कड़ी टक्कर मिल रही है. वे उनसे आठ हजार से अधिक वोटों से पीछे चल रहे हैं. वहीं, उपमुख्यमंत्री रहे आजसू प्रमुख सुदेश महतो को बड़े अंतर से हारना पड़ा है. माना जाता रहा है कि उनकी अपनी सीट में जबरदस्त पकड़ रही है.

तो क्या, इस बार का चुनाव परिणाम राजनेताओं के लिए ठोस संदेश लेकर आया है या फिर यह सब नरेंद्र मोदी लहर का असर है. झारखंड के चुनाव परिणाम को सिर्फ मोदी लहर तो कतई नहीं माना जा सकता है. अगर ऐसा होता तो भाजपा के दिग्गज नेता माने जाने वाले अर्जुन मुंडा को चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ता. इस बार के चुनाव परिणाम में अपराजेय माने जाने वाले दूसरे नेताओं मसलन कांग्रेस के कद्दावर नेता राजेंद्र सिंह को बेरमो सीट और भाकपा माले के उम्मीदवार विनोद सिंह को बगोदर में प्रतिद्वंद्वियों से कड़ी टक्कर मिली है.
वहीं, कई नये लोग चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं. जैसे सुदेश महतो का गढ़ सिल्ली में झाविमो के अमित महतो 29 हजार वोटों से जीत गये. गूंज महोत्सव का आयोजन कर सिल्ली में हाइप्रोफाइल राजनीति करने वाले सुदेश महतो की गूंज पर फिलहाल ब्रेक लग गया है.
यह हाल तब है, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी की छवि से प्रभावित होकर भाजपा से गंठजोड़ किया और मात्र आठ सीटों पर चुनाव लड़ने की शर्त को कबूल कर लिया और सार्वजनिक रूप से यह घोषणा भी की कि वे मोदी के साथ हैं. पर मोदी मंत्र की जाप भी उनके काम नहीं आया. उन्हें चुनाव परिणाम के बाद अपनी राजनीति की समीक्षा करनी होगी. खुद के लिए निरपेक्ष भाव से यह आकलन करना होगा कि उनकी राजनीति कितनी जनसरोकारी है और वे लोगों के दिल में उतरने में कितना कामयाब रहे हैं?
जबकि झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को अपने राजनीतिक भविष्य की समीक्षा करनी होगी. मतगणता के दोपहर बाद तक के रुझानों में उनकी पार्टी मात्र छह सीटों पर आगे हैं. वे खुद दोनों सीटों से हार के करीब हैं या फिर हार चुके हैं. उन्होंने भाजपा से चुनाव बाद गंठबंधन के सवाल पर मीडिया से बातचीत में अपना पत्ता नहीं खोला और कहा कि इस बारे में वे पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं से चर्चा कर फैसला लेंगे.
इस बार के चुनाव परिणाम में एक राष्ट्रीय पार्टी भाजपा व एक क्षेत्रीय दल झामुमो को छोड़ कर ज्यादातर राजनीतिक दलों की जमीन सिकुड़ी है. यह चुनाव परिणाम उन सभी दलों व उसके नेताओं के लिए एक सबक है, जिसमें वे भविष्य की झारखंड की राजनीति को अधिक सकारात्मक, जन सरोकारी और विकासवादी बनायें. दिलचस्प बात यह कि लगभग यही संदेश जम्मू कश्मीर चुनाव परिणाम का भी है.

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