दक्षा वैदकर
मेरे पुराने हॉस्टल में स्कूल, कॉलेज व वर्किग गल्र्स के साथ छोटे बच्चे भी रहते थे. वे दूसरी बिल्डिंग में रहते थे, लेकिन नाश्ते व खाने की मेज पर हमारी मुलाकात हो जाती थी. उनमें एक कोमल नाम की बच्ची थी, जो कक्षा छह में पढ़ती थी. वह नाश्ते की मेज पर भी कॉपी व पेंसिल ले कर बैठा करती थी. उसके हाथ में हमेशा एक कॉपी होती थी, जिसमें वह हर अच्छी व बुरी लगने वाली बात लिखती. अपनी दिनचर्या लिखती. अपने दोस्तों के बारे में लिखती. हॉस्टल के सभी बच्चे उसका मजाक उड़ाते. हॉस्टल की आंटी तो डांटती कि कॉपी में फालतू चीजें लिख-लिख कर समय बर्बाद मत करो. पढ़ाई करो.
एक दिन वह नाश्ते के वक्त मुङो रोती हुई मिली. उस दिन आंटी ने उसकी कॉपी उससे छीन कर अपने पास ही रख ली थी. मैंने आंटी को समझा-बुझा कर कॉपी वापस लाकर उसे दी. कोमल से इजाजत लेकर उसकी कॉपी पढ़ी. मैं देख कर आश्चर्यचकित थी कि इस छोटी बच्ची ने अपनी भावनाओं को कितने बेहतरीन तरीके से लिखा है. मैंने उसे लघु कहानियां लिखने को कहा. उसे बताया कि छोटी-छोटी घटनाओं को कैसे कहानी में बदला जा सकता है. उसे लघु कहानियों की एक किताब भी पढ़ने को दी, ताकि वह कुछ सीख सके.
हॉस्टल छोड़ कर आने के बाद मैं इस बात को भूल गयी. देखते ही देखते इस बात को डेढ़ साल से ऊपर हो गये हैं. आज उसी बच्ची का थैंक्यू बोलने के लिए फोन आया. उसने बताया कि स्कूल की मैगजीन में उसकी दो पेज की कहानी फोटो के साथ छपी है. सभी उसकी तारीफ कर रहे हैं.
इस छोटी-सी घटना ने मुङो यह सीख दी कि कभी भी किसी भी बच्चे की हॉबी का मजाक न उड़ायें. अगर वे किसी काम में रुचि लेते हैं, तो देखें कि वे किस तल्लीनता से उस काम को करते हैं. फिर वह मिट्टी के खिलौने बनाने का काम हो, ड्रॉइंग बनाना हो या फोटोग्राफ खींचना. आप उन्हें पढ़ाई के साथ ही इन कामों को करने के लिए प्रोत्साहित करें. उन्हें इन चीजों को बेहतर तरीके से सीखने के लिए टिप्स दें. इन चीजों की ट्रेनिंग दिलवायें.
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बात पते की..
अगर आपको गाना गाने का शौक है और लोग आपको गाना गुनगुनाने भी न दें, तो आपको कैसा महसूस होगा. बच्चों को भी वैसा ही दुख पहुंचता है.
इनसान को काम लोगों को हतोत्साहित कर नीचे गिराना नहीं, बल्कि प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाना है. इसलिए लोगों के शौक का मजाक न बनायें