सहरसा: अंगद का सपना था कि बच्चियों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करें. इस दौरान जब पैसे की दिक्कत आयी तो उन्होंने पैतृक घर भी बेच डाला.
बच्चियां भी पिता की अपेक्षा पर खरा उतरीं लेकिन महंगाई के इस दौड़ में अंगद का यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. घर बेचने के बाद जो पैसे आये, उससे बेटियों का नामांकन तो कराया लेकिन अब फाइनल परीक्षा दिलाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. अंगद लाचार हो गये हैं. कस्तूरबा विद्यालय में आदेशपाल की नौकरी करते हैं, पर चार माह से पैसा नहीं मिला है. ऐसे में अब अंगद को कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.
प्रमाण पत्र के लिए मांगे 60 हजार
अंगद कुमार महतो की बड़ी बेटी कुमारी प्रिंस प्रिया ने प्रथम श्रेणी से अंतर स्नातक पास करने के बाद बीसीइसीइ से पीएमडी की परीक्षा पास की. प्रिया पीएमडी की ट्रेनिंग भी पा चुकी है. सरकारी स्कूल में सीट नहीं रहने के कारण गैर सरकारी स्कूल में दाखिला लिया. अधिक फीस भरने के लिए पिता को हकपाड़ा स्थित घर बेचना पड़ा. सरकार द्वारा निर्धारित 45 हजार की जगह उनसे एक लाख रुपये लिए गये. प्रमाण पत्र देने के नाम पर उनसे अतिरिक्त 60 हजार रुपये की मांग की गयी. प्रमाण पत्र नहीं ले पाने के कारण उनकी पुत्री नौकरी की काउंसेलिंग में नहीं जा सकी.
अधिकारी ने एक न सुनी : दूसरी बेटी कुमारी प्रिंस सोनिका ने बीसीइसीइ से आइटीआइ इलेक्ट्रॉनिक में पढ़ाई पूरी की. सोनिका एलक्ष् इंजीनियरिंग की परीक्षा भी पास कर चुकी है. आठ से 12 सितंबर तक कटिहार में उसकी फाइनल परीक्षा थी. लेकिन पैसे के अभाव में वह जा न सकी और उसकी पढ़ाई अधूरी ही रह गई. फाइनल परीक्षा दिलाने के लिए पिता ने सर्व शिक्षा अभियान के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को आवेदन देकर बकाया मानदेय भुगतान करने की प्रार्थना भी की. लेकिन अधिकारी ने एक न सुनी.
सपरिवार झोपड़ी में रह रहें हैं : अंगद की तीसरी बेटी कुमारी प्रिंस काजल अभी गल्र्स हाइ स्कूल में नौंवी की छात्र है. जबकि सबसे छोटा पुत्र कुमार प्रिंस शिवम ओम अभी जेल कॉलोनी मिडिल स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ रहा है. घर बेचने के बाद अभी वह बीबी व बच्चों के साथ अस्पताल कॉलोनी में फूस की झोपड़ी खड़ा कर रह रहा है. दरअसल अंगद की सास अस्पताल में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी थी. उसकी मौत के बाद उसके झोपड़ी वाली जगह खाली थी. अंगद ने उसे ही अपना आशियाना बना लिया.
बेटियों का चेहरा रोकता है आत्महत्या से : अंगद बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई कराना उसके वश की बात नहीं रही. हकपाड़ा में उसकी बची एक मात्र संपत्ति एक कट्ठा जमीन और उस पर बना घर भी बिक गया. अब बेचने के लिए उसके पास शरीर के सिवाय कुछ नहीं है. उसे अक्सर आत्महत्या करने की इच्छा होती है. लेकिन बेटियों का चेहरा उसे ऐसा कोई भी कदम उठाने से रोकता है. सरकार भी उसके मानदेय का भुगतान नहीं कर रही है. लिहाजा आस पड़ोस से मांग कर घर का चूल्हा जलाना पड़ रहा है. लेकिन लंबे समय तक यह स्थिति ङोलने की क्षमता नहीं है.
पिता को वापस दिलाना है घर
कस्तूरबा विद्यालय में आदेशपाल अंगद कुमार महतो की दोनों बड़ी बेटियां अपने पिता की जिजीविषा को अच्छी तरह समझती हैं. अभाव होने के बावजूद पिता द्वारा बार-बार प्रोत्साहित किये जाने के मर्म को समझने के बावजूद इनका दिल कचोटता है. बड़ी बेटी कुमारी प्रिंस प्रिया कहती हैं कि पिता के सपने को पूरा करना अब उसकी पहली जिम्मेदारी है. नौकरी के प्रयास में भी हूं. नौकरी मिल जाने के बाद पढ़ाई भी पूरी करनी है और घर को भी संभालना है. जबकि दूसरी बेटी कुमारी प्रिंस सोनिका कहती हैं कि पिता ने हमारे लिए अपना सबकुछ कुरबान कर दिया. अब हमारी बारी है. हम कैसे भी कर के पिता को वापस घर दिलायेंगे.