दक्षा वैदकर
राधिका एक स्कूल में टीचर है. घर से दूर वह शहर में अकेली रहती है. उसके पास ट्यूशन के लिए घर पर ही कुछ बच्चे भी आते हैं. यही उसके दोस्त भी हैं. कई बार जब उसका परिवारवालों से झगड़ा हो जाता है और वह उदास हो जाती है, तो बच्चे इस चीज को भांप लेते हैं.
वे राधिका से पूछते हैं कि मैम, क्या हुआ. कई बार तो राधिका इस बात को टाल देती है, लेकिन कई बार अपने दुख की वजह बता देती है. पिछले दिनों उन्हीं बच्चों में से एक को राधिका ने कोई पर्सनल बात बता दी. बच्चे ने मैम को सांत्वना दी और बिल्कुल बड़ों की तरह समझाया कि सब ठीक हो जायेगा.
मैं हूं न. राधिका भी बड़ी खुश हो गयी कि उसे कम उम्र का ही सही, लेकिन कोई दुख बांटने वाला दोस्त मिल गया. बस, यही उसने गलती कर दी. किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे तो आखिर बच्चे होते हैं. उस बच्चे ने मैम की वह पर्सनल बात अपने दोस्तों को भी बता दी. धीरे-धीरे यह बात पूरे स्कूल में फैल गयी. राधिका को जब इस बात का पता चला, तो उसने अपने घर पर ट्यूशन पढ़ाना ही बंद कर दिया. उसे उस बच्चे के साथ-साथ सभी बच्चों ने नफरत हो गयी. अब वह दूसरे शहर में जॉब तलाश रही है.
राधिका की तरह गलतियां हम भी करते हैं. हम उम्र का फर्क भूल जाते हैं. दरअसल, आजकल फिल्में देख कर, उनसे डायलॉग सीख कर कम उम्र के लोग भी बड़ी-बड़ी बातें बोल जाते हैं. हमें लगता है कि वे बहुत समझदार हैं और हम उन्हें अपनी समस्या बता सकते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है. किशोरों की उम्र इतनी नहीं होती कि वे बातों की गंभीरता को समझ सकें. वे उसे बहुत हल्के में लेते हैं और अन्य बातों की तरह हमारी बातें भी सभी को बता देते हैं. इसमें उन किशोरों की गलती नहीं है. उनकी तो उम्र ही गॉसिप करने की है.
अगर उनमें इतनी समझ होती, तो उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं मिल जाता? क्यों शादी की उम्र लड़कियों के लिए 18 व लड़कों के लिए 21 होती है? साधारण-सी बात है. इस उम्र के पहले व्यक्ति अपरिपक्व होते हैं. बेहतर है कि हम अपनी बातें बच्चों या किशोरों से शेयर न करें.
बात पते की..
– हमारे आसपास कई लोग हैं, जो हमें सांत्वना देते हैं. हमें ऐसे लोगों में उन लोगों को तलाशना होता है, जो सच में इसकी गंभीरता को समझते हैं.
– यह कहावत बहुत सोच-समझ कर बनायी गयी है कि ‘दोस्ती अपनी उम्रवालों से करनी चाहिए’. कम-से-कम समझ जरूर देखनी चाहिए.