नरेंद्र मोदी ने इस हफ्ते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बतौर प्रधानमंत्री, अपने पहले भाषण के साथ एक बार फिर से साबित किया कि वे कितने कमाल के वक्ता है.
खासतौर पर गुजराती और हिंदी के अपने भाषणों में रोजमर्रा वाली जुबान और बातचीत वाले लहजे के इस्तेमाल में उन्हें महारत हासिल है.
राष्ट्रीय राजनीति में लंबे अर्से बाद उनके जैसा कोई बेहतर वक्ता आया है जो कि साफ जुबान में बात करता हो.
वाक् पटुता और अपनी बात से किसी को कायल कर देने की कला में वे माहिर हैं.
लेकिन लाल किले से दिए गए उनके भाषण का संदेश क्या है?
राजनीतिक विश्लेषक आकार पटेल के मुताबिक मोदी के इस भाषण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू चुनावी अभियान की भाषा से अलग हटना है.
सरकार का काम
जब वो वोट माँग रहे थे तो उन्होंने देश के लोगों से कहा कि उनकी समस्याओं की वजह सरकार है और महज राजनीतिक पार्टी के बदल जाने से भारत बदल जाएगा.
उन्होंने कहा था कि वे सत्ता में आने पर बड़े मुद्दों को सुलझाएंगे क्योंकि इसके लिए एक आदमी की कड़ी मेहनत और प्रतिभा की जरूरत है जो कि उनमें है.
15 अगस्त के भाषण में मुझे लगता है मोदी ने ठीक ही कहा कि देश की ज्यादातर बड़ी समस्याएँ सरकार की वजह से नहीं बल्कि समाज में है.
उन्होंने कई उदाहरण भी दिए जैसे कि उन्होंने लड़कियों की गर्भ में हत्या के बारे में कहा. ये समस्या हरियाणा और गुजरात समेत भारत के कई जगहों पर है.
और उन्होंने सफाई के बारे में क्या कहा. हमें शर्म आनी चाहिए कि हमारे देश में कितनी गंदगी है. मोदी ने स्वीकार किया इस तरह के काम सरकार के बस की बात नहीं है. उनके शब्द थे, "ये सरकार से होता नहीं है."
और तीसरे उदाहरण में उन्होंने भारत में होने वाले बलात्कारों पर कहा कि जो परिवार अपनी बेटियों के कहीं आने जाने पर लगाम लगाना चाहते हैं उन्हें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि उनके बेटे क्या कर रहे हैं.
ग्रामीण भारत
मोदी इस समस्या को सही तरीके से समझा रहे थे. ये केवल उन अनजाने असामाजिक तत्वों की बात नहीं है जो कि अपराध को अंजाम देते हैं बल्कि वे हमारे ही समाज और परिवार का हिस्सा हैं.
दुर्भाग्य से बलात्कार के मु्द्दे को इस तरह से रखने और इस समस्या को बेहतर तरीके से परखने के बाद जब दवा बताने की बारी आई तो मोदी भटक गए.
उदाहरण के लिए मोदी का कहना था कि ग्रामीण भारत की शक्ल बदलने के लिए संसद सदस्यों को हर साल अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक आदर्श गाँव विकसित करें.
ये आदर्श गाँव अपने आस पास के गाँवों के लिए आदर्श बनेंगे और इससे पूरा ग्रामीण भारत जादुई तरीके से अपने आप बदल जाएगा. मेरी समझ में यह पूरी तरह से बेवकूफाना है.
एक तरफ ऐसे प्रयोग पहले भी हो चुके हैं. महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धी गांव को एक आदर्श गाँव की तरह विकसित किया जाना था. अन्ना हजारे ने एक साल नहीं बल्कि दशकों तक इस गाँव के लिए काम किया.
यह साफ तौर पर हरा भरा, समृद्ध और पवित्र लगता है. इस तरह की खूबियां पाने के लिए यहाँ शराब पर रोक लगा दी गई और जो पीते हुए पकड़े गए उन्हें खंभों से बांध कर चाबुक से मारा जाता है.
अन्ना का रालेगण सिद्धि
अगर ये मान भी लें कि रालेगण सिद्धी कुछ हद तक एक आदर्श गाँव बन भी गया तो मुझे शक है कि रालेगण सिद्धी के बदलाव ने उसके आस पास के गाँवों पर कोई असर डाला होगा.
दूसरी बात ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या मोदी इस तरीके से साढ़े तीन हजार साल पुरानी सभ्यता को बदलने का ख्याल रखते हैं? सबसे निचले सिरे से और राजनीतिज्ञों के जरिए.
दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक भारत आज जैसा है, उसके अपने कारण हैं और मुझे नहीं लगता कि इसके लिए सांसद जिम्मेदार हैं.
इस बारे में गहराई में उतरकर सोचे जाने की जरूरत थी लेकिन इसकी कमी रह गई. दूसरे मुद्दों को मोदी अपने भाषण में बस हल्के से छूकर गुजर गए.
उन्होंने आईएसआईएस के लिए पश्चिमी एशिया जाकर जिहाद करने वाले भारतीय नौजवानों का भी जिक्र किया लेकिन मीडियों में रिपोर्टों के मुताबिक ऐसे केवल दस मामले हुए हैं.
मुझे अंदाजा नहीं है कि क्या यह इतनी बड़ी बात थी कि इसका जिक्र इस भाषण में किया जाए.
मसीहाई चेहरा
मोदी ने भारत के पड़ोसियों का भी जिक्र किया और कहा कि हमें गरीबी खत्म करने पर ध्यान देना चाहिए. यह कहने के लिए अच्छी बात थी लेकिन इस समस्या पर कोई बहुत ठोस बात नहीं की गई.
पाकिस्तान भी यह स्वीकार करता है कि गरीबी दक्षिण एशिया की एक बड़ी समस्या है. हालांकि उसके नेता भारत और पाकिस्तान के खराब रिश्ते को दक्षिण एशिया की गरीबी की वजह बताते हैं.
अगर दोनों मुल्कों का संघर्ष खत्म होता है तो दोनों ही देश अपने रक्षा खर्चों में कटौती कर अपने विकास पर ध्यान दे सकते हैं. इसलिए मोदी ने जो कहा, उसका वास्तव में कोई मतलब नहीं है.
लेकिन मिला जुलाकर देखा जाए तो मोदी का संबोधन एक अच्छा भाषण था. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कई मामलों में मोदी एक सुलझे हुए नेता है.
जैसा कि मैंने पहले कहा कि ये स्वीकार करने में कि सारी गलती सरकार की नहीं होती है, वे सही हैं. अंधेरे से निकलकर रोशनी में ले जाने के लिए भारत को किसी मसीहाई चेहरे की जरूरत नहीं है.
जो बात सबसे ज्यादा जरूरी है, वह है अंदरूनी बदलावों और सामाजिक सुधारों की और इनमें से ज्यादातर सरकार का काम नहीं है.
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