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प्याज़ को मौसम ने मारा और लोगों को बढ़ती क़ीमतों ने

<p><strong>सौ रुप</strong><strong>ए</strong><strong> में एक किलो प्याज़. </strong><strong>क़ीमत </strong><strong>सुनकर किसी की आंखें नम हो जाएं, प्याज़ की उतरती परतों के साथ आने वाले आंसू तो दूर की बात है.</strong></p><p>इस सोमवार से प्याज़ की क़ीमत आसमान छूने लगी है. नासिक मंडी में शनिवार तक प्याज़ की औसतन क़ीमत उसकी क्वालिटी के हिसाब से 35 रुपए से लेकर […]

<p><strong>सौ रुप</strong><strong>ए</strong><strong> में एक किलो प्याज़. </strong><strong>क़ीमत </strong><strong>सुनकर किसी की आंखें नम हो जाएं, प्याज़ की उतरती परतों के साथ आने वाले आंसू तो दूर की बात है.</strong></p><p>इस सोमवार से प्याज़ की क़ीमत आसमान छूने लगी है. नासिक मंडी में शनिवार तक प्याज़ की औसतन क़ीमत उसकी क्वालिटी के हिसाब से 35 रुपए से लेकर 80 रुपए प्रति किलो तक थी.</p><p>उत्तरी महारष्ट्र और ख़ासकर नासिक के लासलगांव, पिंपलगांव सटाणा मंडी समेत सभी जगहों पर मंगलवार तक ये क़ीमत औसतन 55 रुपए से लेकर 140 रुपए पर चली गई.</p><p>मंडी में 50 से 80 फ़ीसदी तक बिकने वाला माल 65 रुपए प्रति किलो की दर से बिका. नासिक की मंडी में सबसे ज़्यादा रेट पर बिकने वाले प्याज़ का भाव था 141 रुपए प्रति किलो रहा.</p><p>वैसे कृषि मंडी में आने वाले प्याज़ में से सिर्फ़ एक से तीन फ़ीसदी प्याज़ को ही ये रेट मिल पाता है. 80 फ़ीसदी प्याज़ नोडल रेट पर बिकता है. फ़िलहाल ये दर 60 से 70 रुपए के बीच है.</p><p>जो प्याज़ सही हालत में होते हैं, गुणवत्ता के सभी मापदंडों को पूरा करते हैं, उसे सबसे ज़्यादा भाव मिलता है.</p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/D1E1/production/_109992735_onion242.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><h1>प्याज़ के भाव आसमान पर क्यों?</h1><p>नासिक कृषि उपज मंडी के कारोबारी हीरामन परदेसी बताते हैं, &quot;बाज़ार में प्याज़ की जितनी मांग है, उसकी तुलना में आपूर्ति नहीं हो रही है. क्योंकि बाज़ार में प्याज़ नहीं है.&quot;</p><p>बाज़ार में प्याज़ की कमी के सवाल पर हीरामन कहते हैं, &quot;भारी बरसात ने खरीफ (जो लाल प्याज़ अगस्त और सितंबर तक बाज़ार में आता है और जिसकी आयु कम होती है) और लेट खरीफ (जो लाल प्याज़ अक्तूबर से जनवरी तक मार्केट में आता है) की फसल को ख़राब कर दिया था. मार्केट में मांग ज़्यादा है और आपूर्ति नहीं हो रही तो प्याज़ के दाम बढ़ाना तय है.&quot;</p><p>हालात कब तक ऐसे ही रहेंगे, इस पर उन्होंने कहा, &quot;रबी प्याज़ यानी समर क्रॉप (रबी क्रॉप मार्च से मई तक आता है और इसी मौसम के प्याज़ को छह से नौ माह तक स्टोरेज कर रख सकते हैं) अब भी बाज़ार में आ रहा है. लेकिन ये बहुत कम मात्रा में आ रहा है. दिसंबर से 15 जनवरी तक हालात सामान्य होने के आसार नहीं दिखाई देते.&quot;</p><figure> <img alt="प्याज़, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/16E21/production/_109992739_damageonion.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> <figcaption>प्याज़ की ख़राब हो गई फसल का अंदाजा इस तस्वीर से लगाया जा सकता है</figcaption> </figure><p>इस साल प्याज़ की क़ीमत ने पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.</p><p>एशिया की सबसे बड़ी प्याज़ मंडी लासलगांव के पूर्व चेयरमैन और नाफेड के संचालक नानासाहेब पाटिल कहते हैं, &quot;प्याज़ का पूरा उत्पादन मॉनसून की बारिश पर निर्भर करता है. प्याज़ कम पानी में पैदा होने वाली फसल है. जहां सूखा हो, वहां का किसान भी प्याज़ की फसल बोता है क्यूंकि ये एक नक़दी फसल है.&quot; </p><p>&quot;आपको ये भी समझना होगा कि अब प्याज़ की खेती 26 राज्यों में होती है. पहले सिर्फ़ चार दक्षिणी राज्यों, ख़ासकर महाराष्ट्र में होती थी. फ़िलहाल महाराष्ट्र में देश के कुल प्याज़ उत्पादन का तक़रीबन 30 से 40 फ़ीसदी प्याज़ होता है और उत्तरी महराष्ट्र में सबसे ज़्यादा. इसलिए नासिक का लासलगांव एशिया की सबसे बड़ी प्याज़ मंडी है.&quot; </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/3989/production/_109992741_damagecrop3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><h1>महंगाई से पहले पड़ी थी मौसम की मार</h1><p>अबकी बार अच्छी बरसात का अनुमान था. भारी बारिश के बारे में कम ही लोगों ने सोचा होगा. पिछले साल इसी नवंबर-दिसंबर में प्याज़ एक रुपया किलो की दर से बिका था. </p><p>लेकिन जून में होने वाली बारिश जुलाई में हुई. जुलाई-अगस्त में आई बाढ़ ने खरीफ वाले प्याज़ को बर्बाद कर दिया. ऐसा सिर्फ़ महाराष्ट्र में नहीं हुआ बल्कि आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी हुआ. लेट खरीफ की फसल को अगस्त और सितंबर में लगाया जाता है जो तीन से चार महीने बाद मार्केट में आती है. </p><p>लेकिन महाराष्ट्र में बरसात रुकी आठ नवंबर को, इसलिए लेट खरीफ की फसल पर भी पानी फिर गया. जो प्याज़ बच पाया, या कहिए किसानों ने ज़्यादा खर्च कर खाद और दवाइयाँ छिड़ककर बचा लिया, उसका उत्पादन औसत से कम रहा. एक एकड़ में जहां 60 से 80 क्विंटल प्याज़ की पैदावार होती, वो महज 30 से 40 क्विंटल रह गई. </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/BDB0/production/_110006584_lasalgaonapmc.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><p>साथ ही इसकी क्वालिटी भी ख़राब हुई और साइज़ भी छोटा हो गया. इससे आप समझ सकते हैं कि बारिश ने प्याज़ की फसल को कितना नुक़सान पहुंचाया. लासलगांव मंडी में औसत से सिर्फ़ 10 से 15 फीसदी प्याज़ ही मार्केट में आया. </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/10BD0/production/_110006586_onionfarm11.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><h1>प्याज़ का फसल चक्र</h1><p>नानासाहेब कहते हैं, &quot;भारत में हर साल औसतन दो लाख 30 हज़ार से दो लाख 40 हज़ार मिट्रिक टन प्याज़ का उत्पादन होता है, भारत की अपनी घरेलू प्याज़ की खपत 1.5 से 1.8 लाख मिट्रिक टन है. बाक़ी प्याज़ प्रोसेस के लिए और एक्सपोर्ट हो जाता है. भारत के लोग रोज़ाना औसतन 50 हज़ार क्विंटल प्याज़ खाते हैं.&quot; </p><p>&quot;अब पूरा प्याज़ एक सीजन में नहीं आता है और ना ही एक तरीक़े से. समर क्रॉप यानी भूरे लाल गुलाबी रंग के प्याज़ का उत्पादन सबसे ज़्यादा होता है. ये प्याज़ फरवरी के बाद से मई तक बम्पर मात्रा में मार्केट में आता है. ये छह से आठ महीने तक मौसम के हिसाब से टिक पाता है.&quot; </p><p>&quot;किसान और व्यापारी इसको सबसे ज़्यादा स्टोर करते हैं. किसान अगले छह महीने तक इसे बाज़ार में उतारता है.&quot;</p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/159F0/production/_110006588_onion14.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><p>जून से अगस्त-सितंबर तक कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का प्याज़ मार्केट में आता है. </p><p>फिर, अक्तूबर में गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की खरीफ फसल यानी लाल प्याज़ आता है और तीन महीने बाद राजस्थान और महाराष्ट्र से लेट खरीफ प्याज़ मार्केट में आता है. </p><p>खरीफ और लेट खरीफ प्याज़ की लाइफ ज़्यादा नहीं होती. उसे खेत से निकलने के बाद 20 से 40 दिनों में ख़त्म करना होता है. इसमें मौसम का बड़ी भूमिका रहती है. </p><p>इस साइकिल में अगर मौसम ने खलल डाल दी तो सीधा असर प्याज़ के उत्पादन पर होता है और क़ीमतें ऊपर नीचे होती रहती हैं.</p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/2558/production/_110006590_bhaulalkhalakr.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> <figcaption>सायखेड़ा गांव के किसान भाऊलाल खालकर</figcaption> </figure><h1>बर्बादी की कहानी</h1><p>इस बार खरीफ और लेट खरीफ प्याज़ दोनों को भारी बारिश ने ख़राब कर दिया. थोड़ा सा नया लाल प्याज़ मार्केट में आ तो रहा है, लेकिन उसकी मात्रा बहुत कम है. </p><p>इस बार पिछले साल के मुक़ाबले प्याज़ स्टोरेज भी कम किया जा सका है. पिछले साल का सूखा और 2019 के अक्तूबर से इस मार्च तक प्याज़ को मिले कौड़ियों के दाम, इसके कारण हैं. </p><p>इसके अलावा दूसरा कारण है, ज़्यादा बारिश. इसका मतलब हुआ ज़्यादा नमी, जो प्याज़ के लिए दुश्मन साबित हुआ. </p><p>इस साल स्टोरेज किया हुआ 30 फ़ीसदी प्याज़ नमी की वजह से ख़राब हो गया. यहाँ तक कि नाफेड ने सरकार के लिए ख़रीदा कुछ हजार टन प्याज़ भी नमी का शिकार हो गया. </p><p>सायखेड़ा गांव के किसान भाऊलाल खालकर अपने एक एकड़ खेत में लगाए प्याज़ के बीज को दिखाते हुए कहते हैं, &quot;अगस्त से मैंने इस पर मेहनत की थी. बारिश ने बर्बाद कर दिया. मैं इस पर तक़रीबन एक लाख रुपया ख़र्च कर चुका हूं. इस पूरे बीज में सात-आठ एकड़ प्याज़ बोने के बाद मुझे इस नवंबर-दिसंबर में 400 से 500 क्विंटल प्याज़ मार्केट में बेचना था.&quot; </p><p>&quot;बारिश ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. अब नए प्याज़ के बीज डाल रहा हूं. यही बीज पहले 280 रुपए किलो मिलता था और अब इसकी क़ीमत 1100 रुपए किलो पहुंच गई है. अगर सब ठीक रहा तो मेरा प्याज़ फरवरी में मार्केट में आएगा. लेकिन अगर बारिश वापस आई तो और एक लाख रुपए का क़र्ज़ होगा. घरवालों को क्या खिलाऊंगा, ये सवाल सिर पर मंडराता रहेगा.&quot;</p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/7378/production/_110006592_farmeravdhut.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> <figcaption>अवधूत</figcaption> </figure><p>अवधूत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उनकी तीन एकड़ की फसल बर्बाद हो गई थी.</p><p>वो बताते हैं, &quot;तीन एकड़ खेत में बारिश की वजह से तैयार हुआ प्याज़ ज़मीन में ही ख़राब हो गया था. तीन महीने पहले प्याज़ बोया था. अब 300 क्विंटल से आगे ही प्याज़ मार्केट में बेचा होता. लेकिन दिवाली से 15 दिन पहले हुई बारिश ने सब नष्ट कर दिया.&quot; </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/C260/production/_110006794_onionss.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><h1>पिछले साल का घाटा </h1><p>सटाणा के किसान सुनील पवार को इस महंगाई में अच्छा भाव मिल गया. उन्होंने 120 रुपए किलो के भाव से 20.6 क्विंटल प्याज़ बेचा.</p><p>सुनील पवार बताते हैं, &quot;मैंने मई में ही प्याज़ स्टोर किया था. लेकिन भारी नमी की वजह से प्याज़ ख़राब होने लगा.&quot;</p><p>लेकिन उनके चेहरे पर आई मुस्कुराहट के पीछे एक टीस भी नज़र आती है.</p><p>वो कहते हैं, &quot;हर हफ्ते मैं और घरवाले 250 क्विंटल प्याज़ की साफ़ सफाई और रखरखाव कर रहे थे. लगभग 135 क्विंटल प्याज़ ख़राब हो गया. अगस्त के महीने में 12 रुपए किलो की दर से मैंने 80 क्विंटल प्याज़ बेच दिया था.&quot;</p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/035C/production/_110006800_onionfarm1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><p>किसानों को होने वाले फ़ायदे पर सुनील पवार का कहना है, &quot;पिछले साल मैंने एक से तीन रुपए किलो की दर से 180 क्विंटल प्याज बेचा था. तब कोई नहीं आया ख़बर करने. पिछले साल का घाटा और इस साल का ख़र्च जोड़ें तो दो लाख रुपए तो क़र्ज़, दवाओं और खाद में ही निकल जाएंगे. बचे 47 हज़ार रुपए, उसे मेरे और परिवार के 24 महीने की कमाई समझिए.&quot; </p><p>मुनाफ़ा तो बिचौलियों को भी होता है, सबकी नज़र किसान पर क्यों रहती है?</p><p>पवार पूछते हैं, &quot;यहाँ प्याज़ औसतन 50 से 80 रुपया किलो बिक रहा है. इसके बाद व्यापारी बेचेगा. फिर वह दिल्ली जाएगा. फिर उसमें शॉर्टिंग होगी. वहां फिर छोटा ठेलेवाला ख़रीदेगा और फिर ग्राहक ख़रीदेगा. इस पूरे चेन में आप किसान को ही पूछते हो, कभी इन्हें भी पूछिए कि किसी को नुक़सान हुआ है क्या? हर बिचौलिया अपना मुनाफ़ा कमाता है, चाहे जैसी भी हालत हो.&quot; </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/11080/production/_110006796_onion1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><p><strong>क़ीमत </strong><strong>कैसे बढ़ती है?</strong></p><p>लासलगांव के बाद दूसरी सबसे बड़ी प्याज़ की मंडी पिंपलगांव मंडी के अध्यक्ष और स्थानीय विधायक दिलीप बनकर कहते हैं, &quot;यहां किसान व्यापारी को प्याज़ बेचता है. व्यापारी प्याज़ को गुणवत्ता के हिसाब से छांटकर बोरी में भरकर दूसरी जगह भेजता है, जिसमें उसे एक से दो रुपया किलो का ख़र्च आता है, ढुलाई का भी एक रुपया किलो का ख़र्च पड़ता है.&quot; </p><p>&quot;फिर ,वही प्याज़ उत्तर, पूर्व या दक्षिणी राज्य की मंडी में जाता है. आमतौर पर हर बिचौलिया इसमें 10 से 40 फ़ीसदी तक अपना मुनाफ़ा कमाता है. बिचौलिया मौक़ापरस्त होगा तो वह मुनाफ़ा बढ़ाएगा, इसपर किसी का नियंत्रण नहीं. अगर किसी को ग्राहक को सस्ता प्याज़ देना है तो वह दिल्ली सरकार का मॉडल अपना सकती है, उनके लोगों ने सीधे यहाँ से प्याज़ ख़रीदा और दिल्ली में मदर डेयरी के द्वारा बेचा.&quot; </p><p>&quot;इससे प्याज़ की क़ीमत में 40 से 50 फ़ीसदी तक की गिरावट आई. बस इसमें प्याज़ का चुनने का विकल्प आपको नहीं मिलता है. तमिलनाडु सरकार कई सालों से लासलगांव के एक प्रतिष्ठान ‘वेफ्को’ के माध्यम से प्याज़ ख़रीदती है. ‘वेफ्को’ किसानों की कंपनी है. मौसम का अनुमान देखकर उन्होंने अतिरिक्त प्याज़ भी ख़रीदा और लोगो को सस्ते में दिया है. ये एक अच्छा उदहारण है.&quot; </p><figure> <img alt="प्याज, नासिक" src="https://c.files.bbci.co.uk/15EA0/production/_110006798_onionfarm.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Pravin Thakare/BBC</footer> </figure><h1>भारत में प्याज़ की सबसे ज़्यादा खपत</h1><p>भारत ने दो महीने पहले ही प्याज़ के निर्यात पर रोक लगा दी थी.</p><p>नानासाहेब पाटिल कहते हैं, &quot;भारत प्याज़ का दुनिया का सबसे बड़ा ग्राहक है, और सबसे बड़ा प्याज़ उत्पादक भी है. महाराष्ट्र के प्याज़ का तीखा स्वाद किसी और देश के प्याज में नहीं है. ना ही कोई देश भारत के प्याज़ की ज़रूरत पूरा कर सकता है. इसलिए जब भारत में प्याज़ के दाम बढ़े हों तो पूरी दुनिया में यही हाल रहेने वाला है. पाकिस्तान या बांग्लादेश भारत की मांग पूरी नहीं कर सकता. चीन के प्याज़ के स्वाद को भारतीय पसंद नहीं करते. ईरान, अफ़ग़ानिस्तान या तुर्की जैसे देश से बड़े पैमाने पर प्याज़ आयात करना अब तक असंभव रहा है. अब भारत सरकार इस पर क्या क़दम उठाएगी, ये बड़ा सवाल है.&quot;</p><p>प्याज़ के आसमान छूते भाव के बीच देश में कुछ जगहों पर सेब और प्याज़ एक ही रेट पर मिल रहे हैं. मुश्किल सिर्फ़ यही है कि हमारे घर का खाना प्याज़ का मोहताज है न कि सेब का. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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