राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने वाले पश्चिम बंगाल के भारोत्तोलक सुखेन डे को 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में रजत जीतने के बाद राज्य सरकार ने फ़्लैट देने का वादा किया था. यह फ़्लैट उन्हें आज तक नहीं मिला है.
अब ममता बनर्जी सरकार ने उन्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया है.
क्या स्वर्ण जीतने के बाद अब उनसे किया गया वादा निभाया जाएगा? ग्लासगो में विजय राणा ने सुखेन डे से इस मुद्दे पर बात की.
आपको सरकार से जो उम्मीद है, क्या वह पूरी होगी?
केंद्र सरकार से हमें पूरी मदद मिलती है. खाने-पीने से लेकर हर चीज़ का ख़्याल रखा जाता है. वो हमारी पूरी मदद करते हैं. हमारी हर समस्या दूर करते हैं.
जीतने के बाद बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, क्या वो पूरे होते हैं?
नहीं, सभी वादे पूरे नहीं होते. मेरे राज्य पश्चिम बंगाल में सरकार ने वादा किया था कि मेडल जीतने वालों को फ़्लैट देंगे. कुछ लोगों को फ़्लैट मिला, लेकिन मुझे नहीं मिला. मैंने बात करने की भी कोशिश की, पर नाकाम रहा.
अड़चन कहां थी?
पहले बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे, बाद में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं. खेल मंत्री भी बदल चुके थे. मैंने खेल मंत्री से भी बात करने की कोशिश की. दो-तीन बार बात हुई, लेकिन अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला.
एक बार फ़ोन पर बात करते हुए खेल मंत्री ने कहा कि तुम कौन सुखेन हो, मैं तुम्हें नहीं पहचानता. मैं समझ गया कि शायद या तो मैं इसके लायक ही नहीं हूं या फिर मैं पश्चिम बंगाल का खिलाड़ी ही नहीं हूं. उसके बाद मैंने इस दिशा में प्रयास छोड़ दिए, क्योंकि वैसे भी यह तो मेरा लक्ष्य था नहीं.
उन्होंने फ्लैट न देने का क्या कारण बताया?
कोई साफ़ कारण नहीं बताया. मेरी बातों का ठीक से जवाब नहीं दिया. बस मेरी हर बात टालते रहे और आख़िर में तो उन्होंने यहां तक बोल दिया कि-कौन सुखेन, मैं तुम्हें नहीं पहचानता.
तब खेल मंत्री कौन थे?
उस समय खेल मंत्री मदन मित्रा थे.
71 देशों के खिलाड़ियों के बीच गोल्ड मेडल जीतना. मन में क्या कुछ उलझन होती है?
उलझन तो होती है, पर मैं इसे उस तरह नहीं लेता. मेरा लक्ष्य देश को मेडल दिलाना है और राष्ट्रीय ध्वज को ऊपर जाते देखना है.
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