बिन जिया जीवन’ संग्रह की कविताएं जीवन के भोगे हुए सच का प्रमाण हैं. संग्रह ने हमारे समाज के हर उस पहलू को छुआ है, जिन पर बात करना आज ज्यादा जरूरी है. स रल होना साधारण होना नहीं होता. आदमी में सरलता बहुत मुश्किल से आती है, क्योंकि सरल होना साहसिक होना होता है और साहस कविता के लिए बहुत जरूरी तत्व है.
साहस न हो, तो सरोकार की कविता नहीं फूट सकती. फूल-पत्ती, नदी-पहाड़ और मौसम-बहार की कविता कहनी हो, तो अलग बात है. इसके लिए साहस नहीं, सौंदर्यबोध चाहिए. पत्रकार और कवि कुलदीप कुमार में सरलता से भरा साहस भी है और सौंदर्यबोध भी, और यही उनकी कविता को पूर्णता प्रदान करते हैं.
अनामिका प्रकाशन से आये कुलदीप कुमार के कविता-संग्रह ‘बिन जिया जीवन’ के कई आयाम हैं. एक तरफ हमारे पहचान खोते समाज का सच है, जहां वे कहते हैं- ‘दिनभर देश और देशप्रेम और वसुधैव कुटुंबकम की बातें करते हैं/ लेकिन/ अपने कस्बे तक को ठीक से जानते नहीं…’ तो वहीं प्रेम का एक अनूठा सच भी है, जहां वे कहते हैं- ‘स्त्री/ सब कुछ सहती है/ प्रेम में/ पुरुष/ नहीं सह पाता/ प्रेम भी…’ संबंधों के मर्म और दर्द को छूती इनकी कविताएं हमारे भीतर ऐसे उतरती हैं, जैसे वो हमारी संवेदनाओं का हमखयाल हों- ‘प्रेम अंधा नहीं होता/ प्रेम में हम अंधे होते हैं…’
कितना भयानक है न, यह कह पाना कि- ‘बस बचा रहने दो/ सिर्फ एक मुट्ठीभर/ अवसाद.’ या फिर यह कहना कि- ‘मुझे रिहा कर दो न…/ दर्द की कैद/ फांसी से भी बुरी है.’ कितनी छटपटाहट है इन काव्य-पंक्तियों में, जो रिहाई मांगने के साथ अवसाद को भी बचाये रखना चाहती हैं!
कवि के लिए यह किसी अनमोल पूंजी से कम नहीं है कि वह संवेदना के उस धरातल पर पहुंच जाए, जहां वह महसूस कर सके कि विडंबनाओं से भरी दुनिया में मरने का सहज तरीका और जीने का कठिन सहारा क्या है.
‘बिन जिया जीवन’ संग्रह की कविताएं जीवन के भोगे हुए सच का प्रमाण हैं. इस संग्रह ने हमारे समाज के हर उस पहलू को छुआ है, जिन पर बात करना आज ज्यादा जरूरी है. किशोरवय समय के प्रेम-विक्षोहों से लेकर जीवन का द्वंद्व, लोकतंत्र, राजनीति, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था तक, सब कविता के केंद्र में हैं.
संग्रह में दो हिस्से हैं, एक में छोटी-छोटी कविताएं हैं, तो दूसरे हिस्से ‘महाभारत व्यथा’ में लंबी कविताएं हैं, जो महाभारत और उसके किरदारों की एक नये नजरिये से राजनीतिक समीक्षा है. कविता ‘गांधारी’ में वे कहते हैं- ‘महाभारत का युद्ध/ बलात्कार का ही परिणाम है’, यह एक साहस से भरा बयान है, क्योंकि महाभारत के युद्ध को हम नीति की लड़ाई जानते आ रहे हैं.
कवि के ‘रागदर्शन’ से उसकी शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ का पता चलता है, जो कविता की लयात्मकता बढ़ा देती है. ‘यही बांसुरी है/ जब बजती है तो/ चंद्रमा की नाभि से/ तिलक कामोद झरता है.’ कविताओं में कहीं-कहीं भदेस जीवन से जुड़े शब्दों-वाक्यों का ज्यों-का-त्यों आना कवि के यथार्थ जीवन का दर्शन है.
यह दर्शन इस संग्रह की खास खूबी भी है. संग्रह में तमाम मानवीय पक्ष सहज रूप में अभिव्यक्त तो हैं, जिसमें समाज के विविध आयामों को देखा और महसूस किया जा सकता है. बहरहाल, पत्रकार के साथ ही कवि के रूप में भी कुलदीप कुमार अपने पाठकों के बीच बेहद पसंद किये जायेंगे और नयी दृष्टि के साथ पढ़े जायेंगे, इस बात का पूरा यकीन है.
– वसीम अकरम