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ब्रिक्स देशों को बैंक की ज़रूरत क्यों?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली भारत समेत पांच देशों वाले संगठन ब्रिक्स ने ब्राज़ील में हुए शिखर सम्मलेन में 100 अरब डॉलर के ब्रिक्स विकास बैंक स्थापित करने की घोषणा की है. ब्रिक्स विकास बैंक का पहला अध्यक्ष भारत का होगा जिसे भारत के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है जबकि मुख्यालय […]

भारत समेत पांच देशों वाले संगठन ब्रिक्स ने ब्राज़ील में हुए शिखर सम्मलेन में 100 अरब डॉलर के ब्रिक्स विकास बैंक स्थापित करने की घोषणा की है.

ब्रिक्स विकास बैंक का पहला अध्यक्ष भारत का होगा जिसे भारत के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है जबकि मुख्यालय के मामले में चीन ने बाज़ी मार ली है.

इसका मुख्यालय शंघाई में होगा.ब्रिक्स में भारत चीन, रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीक़ा शामिल हैं.

बैंक की स्थापना का उद्देश्य सदस्य देशों के अलावा विकासशील देशों में आधारभूत संरचना के विकास के लिए क़र्ज़ देना है.

क़र्ज़ देने में नाकाम

ब्रिक्स देशों को एक अलग विकास बैंक की ज़रुरत क्यों पड़ी? अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाएं विकासशील देशों को उनकी ज़रुरत के हिसाब से क़र्ज़ देने में नाकाम रही है.

विश्व बैंक की वेबसाइट के अनुसार बैंक विकासशील देशों को हर साल 40 से 60 अरब डॉलर के क़रीब क़र्ज़ देता है जबकी उन्हें विकास के लिए एक खरब डॉलर की ज़रूरत है.

इसके इलावा ब्रिक्स देशों को शिकायत है कि इन संस्थाओं में अमरीका और यूरोप के देशों का पल्लड़ा भारी रहा है. ऐसा लगता है कि अनौपचारिक रूप से विकसित देशों ने ये तय कर लिया है कि विश्व बैंक का अध्यक्ष अमरीकी होगा जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अध्यक्ष यूरोप से होगा.

नोबेल पुरस्कार विजेता और वित्तीय मामलों के जानकार जोजेफ़ स्टिग्लिट्ज़ कहते हैं कि ब्रिक्स बैंक एक ऐसा आईडिया है जिसके पूरा होने का समय आ गया है.

उनके अनुसार इस बैंक की ज़रुरत इसलिए है कि विकासशील देश अब इस बैंक से क़र्ज़ ले सकते हैं. इसके इलावा वो अमरीका और यूरोप के बजाए अब उभरते बाज़ार में निवेश कर सकते हैं जिससे विकसित देशों के वित्तीय वातावरण के अनिश्चितता से बचा जा सकता है.

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